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कृषि विशेषज्ञों की सलाह: रबी की चने की उन्नत किस्मों के साथ ही करें इन सब्जियों की बुवाई की तैयारी

इस समय किसान धान की फसल में कीट-रोग प्रबंधन कैसे करें, साथ ही रबी की किन फसलों की बुवाई कर सकते हैं, ऐसी कई जानकारियों के लिए पढ़िए कृषि विशेषज्ञ की सलाह।
agriculture advisory

इस समय धान की पछेती फसलों में कई तरह के रोग व कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, ऐसे में किसानों को चाहिए कि सही समय पर इनका नियंत्रण करके नुकसान से बच सकें। आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, हर हफ्ते पूसा समाचार और कृषि सलाह के जरिए उनकी समस्याओं का समाधान करता है।

आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसंधान विभाग के वैज्ञानिक सी भारद्वाज चने की खेती के बारे में जानकारी देते हुए कहते हैं, “इस समय महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बुंदेलखंड के किसान पूसा चना मानव की बुवाई कर सकते हैं। यह किस्म उकटा रोग प्रतिरोधी किस्म होती है। इसकी औसत उपज 3 टन प्रति हेक्टेयर है।”

वो आगे कहते हैं, ” इसी तरह महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बुंदेलखंड के किसान पूसा चना 10216 (PGM 10246) और पूसा चना 4005और राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए विकसित की है। ये दोनों किस्में सूखा क्षेत्रों में भी अच्छा उत्पादन देती हैं।

“पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार के किसान जो धान के बाद चना लगाते हैं वो 108 से 110 दिनों में तैयार होने वाली किस्म पूसा चना 3043 की बुवाई कर सकते हैं, “उन्होंने आगे बताया। पूसा चना 3043 किस्म की औसत उपज 2.2 टन प्रति हेक्टेयर मिलती है।

इस समय धान की पछेती फसलों में कई तरह के रोग व कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, ऐसे में किसानों को चाहिए कि सही समय पर इनका नियंत्रण करके नुकसान से बच सकें।

रबी की फसलों की बुवाई से पहले किसान अपने-अपने खेतों को अच्छी प्रकार से साफ-सुथरा करें। मेड़ों, नालों, खेत के रास्तों व खाली खेतों को साफ-सुथरा करें ताकि कीटों के अंडे, रोगों के कारक नष्ट हो सके और खेत में सड़े गोबर की खाद का उपयोग करें क्योंकि यह मृदा के भौतिक और जैविक गुणों को सुधारती है व मृदा की जल धारण क्षमता भी बढ़ाती है।

मौसम की अनुकूलता को ध्यान में रखते हुए किसान सरसों की बुवाई कर सकते हैं। उन्नत किस्में- पूसा सरसों-25, पूसा सरसों-26, पूसा अगर्णी, पूसा तारक, पूसा महक। बीज दर– 5-2.0 किग्रा. प्रति एकड़। बुवाई से पहले खेत में नमी के स्तर को अवश्य ज्ञात कर ले ताकि अंकुरण प्रभावित न हो। बुवाई से पहले बीजों को थायरम या केप्टान @ 2.5 ग्रा. प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचार करें। बुवाई कतारों में करना अधिक लाभकारी रहता है। कम फैलने वाली किस्मों की बुवाई 30 सेमी. और अधिक फैलने वाली किस्मों की बुवाई 45-50 सेमी. दूरी पर बनी पंक्तियों में करें। विरलीकरण द्वारा पौधे से पौधे की दूरी 12-15 सें.मी. कर ले। मिट्टी जांच के बाद यदि गंधक की कमी हो तो 20 किग्रा. प्रति हैक्टर की दर से अंतिम जुताई पर डालें।

इस मौसम में किसान मटर की बुवाई कर सकते है। बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। उन्नत किस्में -पूसा प्रगति, आर्किल। बीजों को कवकनाशी केप्टान या थायरम @ 2.0 ग्रा. प्रति किग्रा. बीज की दर से मिलाकर उपचार करें उसके बाद फसल विशेष राईजोबियम का टीका अवश्य लगायें। गुड़ को पानी में उबालकर ठंडा कर ले और राईजोबियम को बीज के साथ मिलाकर उपचारित करके सूखने के लिए किसी छायेदार स्थान में रख दें तथा अगले दिन बुवाई करें।

इस मौसम में किसान गाजर की बुवाई मेड़ो पर कर सकते हैं। उन्नत किस्में – पूसा रूधिरा, पूसा असिता। बीज दर 4.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़। बुवाई से पूर्व बीज को केप्टान @ 2 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार करें तथा खेत में गोबर की खाद, पोटाश और फास्फोरस उर्वरक अवश्य डालें। गाजर की बुवाई मशीन द्वारा करने से बीज 2.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है जिससे बीज की बचत तथा उत्पाद की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है।

इस मौसम में किसान अपने खेतों की नियमित निगरानी करें। यदि फसलों व सब्जियों में सफ़ेद मक्खी या चूसक कीटों का प्रकोप दिखाई दें तो या नीम-तेल (5 %) प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़­काव करें।

सब्जियों (मिर्च, बैंगन) में यदि फल छेदक, शीर्ष छेदक एवं फूलगोभी व पत्तागोभी में डायमंड़ बेक मोथ की निगरानी के लिए फीरोमोन प्रपंच 4-6 प्रति एकड़ की दर से लगाए तथा प्रकोप अधिक हो तो स्पेनोसेड़ दवाई 1.0 मि.ली./4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़­काव करें।

किसान इस समय सरसों साग- पूसा साग-1, मूली- पूसा चेतकी, समर लोंग, पूसा चेतकी; पालक- आल ग्रीन मेथी- पी. ई. बी. तथा धनिया- पंत हरितमा या संकर किस्मों की बुवाई मेड़ों (उथली क्यारियों) पर करें।

जिन किसानों की हरी प्याज की पौध तैयार हैं तो रोपाई मेड़ों (उथली क्यारियों) पर करें। जिनको पौधशाला तैयार करनी है तो पौधशाला जमीन से थोड़ा ऊपर बनाये।

अगेती आलू की बुवाई से किसानों को अधिक लाभ की प्राप्ति हो सकती है,क्योंकि यह फसल 60-90 दिन में तैयार हो जाती है।उन्नत किस्म- कुफरी सुर्या, इसके बाद रबी की कोई अन्य फसल जैसे पछेता गेहूँ को लिया जा सकता है।

इस मौसम में कीटों की रोकथाम के लिए प्रकाश प्रपंच का भी इस्तेमाल कर सकते है।इसके लिए एक प्लास्टिक के टब या किसी बरतन में पानी और थोडा कीटनाशी मिलाकर एक बल्ब जलाकर रात में खेत के बीच में रखे दें। प्रकाश से कीट आकर्षित होकर उसी घोल पर गिरकर मर जायेंगें इस प्रपंच से अनेक प्रकार के हानिकारक कीटों का नाश होगा।

इस मौसम में धान की फसल में तना छेदक कीट की निगरानी के लिए फीरोमोन प्रपंच 4-6 प्रति एकड़ की दर से लगाए तथा प्रकोप अधिक हो तो करटाप दवाई 4% दानें 10 किलोग्राम/एकड़ का बुरकाव करें।

इस मौसम में धान की फसल को नष्ट करने वाली ब्राउन प्लांट होपर का आक्रमण आरंभ हो सकता है अतः किसान खेत के अंदर जाकर पौध के निचली भाग के स्थान पर मच्छरनुमा कीट का निरीक्षण करें। यदि कीट की संख्या अधिक हो तो ओशेन (Dinotefuran) 100 ग्राम/ 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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