अगर आप उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश या फिर जम्मू-कश्मीर के किसान हैं और इस सीजन में किसी बढ़िया किस्म के गेहूँ की खेती करना चाहते हैं तो आप इन दो किस्मों की खेती कर सकते हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के शिमला स्थित क्षेत्रीय केंद्र ने गेहूँ की दो उन्नत किस्में विकसित की हैं, किसानों के लिए इस सीजन में गेहूँ की दो नई किस्मों एचएस 542 और 562 का बीज उपलब्ध होगा।
कृषि विभाग हिमाचल प्रदेश को इस बार इन दोनों किस्मों के 300 क्विंटल प्रजनन उपलब्ध कराया गया है, किसान अपने ब्लॉक स्थित कृषि विभाग के सरकारी बीज विक्रय केंद्रों से बीज खरीद सकता है। हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में बिजाई के लिए उपयुक्त इन किस्मों में फाइबर और प्रोटीन के अलावा जिंक और आयरन भी मिलेगा।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, शिमला के केंद्र प्रमुख डॉ. धर्मपाल गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “ये खासकर के पहाड़ी राज्यों के लिए विकसित की गईं किस्में हैं, किसान अपने जिले या फिर ब्लॉक के सरकारी बीज बिक्री केंद्र से एचएस 542 और एचएस 562 बीज खरीद सकते हैं। इनकी खास बात ये है कि ये दोनों किस्में पीला और भूरा रतुआ रोग प्रतिरोधी हैं और ब्रेड और चपाती बनाने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है।”
गेहूँ की इन दोनों किस्मों को किसान अक्टूबर महीने में बो सकते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय केंद्र ने गेहूँ की करीब 20 उन्नत किस्में विकसित की हैं।
हिमाचल सहित उत्तर पर्वतीय और पूर्वोत्तर के राज्यों में मुख्यतया रबी के मौसम में गेहूँ की खेती होती है। इसके अलावा अत्याधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों हिमाचल के किन्नौर, लाहौल स्पीति, पांगी व भरमौर और जम्मू-कश्मीर के कारगिल, लेह व लद्दाख में गेहूं की खेती गर्मियों में भी की जाती है।
इन किस्मों की भी कर सकते हैं बुवाई
अगर किसानों को एचएस 542 और एचएस 562 किस्में नहीं मिलती हैं तो गेहूँ की दूसरी किस्मों जैसे एचएस 507 (पूसा सुकेती), एचपीडब्ल्यू 349, वीएल 907, वीएल 804, एसकेडब्ल्यू 196, वीएल 829, एचएस 490 और एचएस 375 जैसी किस्मों की भी बुवाई कर सकते हैं। ये सभी किस्में उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र के लिए विकसित की गईं हैं।
गेहूँ की खेती में इन बातों का रखें ज़रूर ध्यान
हमेशा अपने क्षेत्र के लिए विकसित किस्मों की ही बुवाई करें।
किसी भी एक किस्म की बीजाई अधिक क्षेत्र में न करें। उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करें।
जनवरी माह के प्रथम सप्ताह से खेतों का लगातार निरीक्षण करें।
खेतों में लगे पॉपुलर जैसे पेड़ों के बीच या उनके आस-पास उगाई गई फसल पर विशेष निगरानी रखें।
पीले रतुआ के लक्षण दिखाई देने पर नजदीक के कृषि विशेषज्ञों से सम्पर्क करें।