ऑटोमेटिक तेल मिल एक ऐसी मशीन है जो सरसों के साथ कई तिलहनी फसलों का तेल निकाल सकती है। एशिया की कृषि आनंद एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने इस मशीन को भारत की पहली मशीन बताया है जो तम्बाकू से तेल निकाल सकती है। इस तेल की एक खूबी यह भी है कि ये गाँव में डीजल इंजन से भी चल जाती है।
गुजरात के किसान किरनीभाई चौकसी (56 वर्ष) का कहना है, “किसान अगर एक बार इस तेल मिल को लगवा लेता है तो उसकी लागत एक साल में निकल आएगी। इस तेल मिल से निकले तेल की ये विशेषता है कि अगर आप तेल में एक रुपए का सिक्का डालेंगे, ऊपर से देखने पर सिक्का स्पष्ट रूप से दिखाई देगा।” ये किसान गुजरात के राजकोट जिला मुख्यालय से 32 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में गोडल गाँव के रहने वाले हैं।
गुजरात में किरन भाई चौकसी के यहां 33 वर्षों से ये मशीनें बनाई जा रहीं हैं। यहां बनने वाली मशीनें ज्यादातर अफ्रीका में जाती हैं। चार लाख से शुरू होने वाली इन मशीनों की कीमत दस लाख रुपए तक है। मशीन की क्षमता के हिसाब से प्रति घण्टा 60 किलो से लेकर 200 किलो तक तेल की पिराई की जाती है।
इस मशीन में मुंगफली, सूरजमुखी, सरसों, सोयाबीन, तिली,नारियल, मक्का, निम्बोड़ी, अरंडी का तेल बहुत बढ़िया निकलता है। जहां एक तेलमिल को लगाने के लिए 12-15 लाख रुपए का खर्च आता है और वहीं इलेक्ट्रिक पावर और मजदूर भी ज्यादा लगाने पड़ते हैं। जबकि इस मशीन की विशेषता यह है कि ये मशीन कम लागत में लगती है और लेबर की भी बहुत कम जरूरत होती है।
किरन भाई चौकसी गाँव कनेक्शन संवाददाता को फोन पर बताते हैं, “एक मिनी तेलमिल को लगाने में 20 गुणा 20 इंच की जगह चाहिए। मिनी तेलमिल लगाने में एक्सपेलर मशीन,स्टीम कॅटल, स्टीम बायलर ,फिल्टर प्रेस, मूँगफली की भूसी निकालने वाला मशीन, 12 हार्सपावर का इंजन या 10 हार्सपावर इलेक्ट्रिक मोटरफिल्टर पंप, बायलर पंप, बायलर चिम्नी का उपयोग होता है।” उन्होंने आगे कहा, “कोई भी मशीन लगाने में 28 सीमेंट स्ट्रक्चर बनाने पड़ते हैं। फ़िल्टर प्रेस तेल को शुद्ध और साफ़ करने का काम करता है। एक मशीन को बनाने में तीन से चार महीने का समय लगता है।”
इस ऑटोमैटिक तेल मिल की दो वर्ष तक पूरी गारंटी है। तेलमिल लगाने के एक साल के अन्दर इसकी पूरी लागत निकल आती है। जो भी किसान तेलमिल लगवाते हैं उनके यहां पूरी टीम ये तेलमिल फिट करने के लिए जाती है।