100 करोड़ मोबाइल बदल सकते हैं देश में खेती की किस्मत

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100 करोड़ मोबाइल बदल सकते हैं देश में खेती की किस्मतgaon connection, trilochan mohapatra

ICAR के निदेशक त्रिलोचन महापात्रा का ये साक्षात्कार गांव कनेक्शन में मूल रूप से फरवरी 2016 में प्रकाशित हुआ, जब से लेकर अब तक भारतीय खेती में आई समस्याएं और उपलब्धियां का आंकलन हम लोगों का करना है...

देश के सर्वोच्च कृषि अनुसंधान संस्थानों में से एक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के निदेशक त्रिलोचन महापात्रा से खेती की दशा और दिशा को लेकर गांव कनेक्शन की बात।

प्रश्न- देश में उन्नत तकनीकों और नई किस्मों पर हो रहा शोध किसान तक नहीं पहुंच पाता?

उत्तर- इस सवाल के जवाब के लिए अगर हम गेहूं की एचडी-2967 किस्म का ही अगला उदाहरण लें। पिछले पांच सालों में पंजाब और हरियाणा के किसानों में ये किस्म बहुत मशहूर हुई, वर्तमान समय में देशभर में गेहूं की खेती का एक-तिहाई भाग इसी किस्म का है। ऐसा इसलिए हुआ कि किसान हमारे पास आकर नई तकनीक और बीज लेकर गए, उन्हें फायदा हुआ और नई किस्म या तकनीक तेजी से फैल गई। ऐसा ज्य़ादातर उन स्थानों में होता है जहां किसान पहले से जागरूक हो। उन स्थानों में जहां का किसान अभी जानकार नहीं है, कृषि विस्तार के महकमे को वहां पहुंचना होगा, नई तकनीक पहुंचानी होगी। शोध और किसानों के बीच दूरी इसलिए है क्योंकि राज्यों का किसानों तक पहुंचने का कृषि विस्तार का ढांचा कमज़ोर है। न सारे किसानों तक योजनाएं पहंचती हैं, न उन्नत बीज और न ही उनके उत्पाद की अच्छे से खरीद हो पाती हैं राज्य सरकारें, जो कि उनकी जि़म्मेदारी है।

त्रिलोचन महापात्रा, निदेशक ICAR

प्रश्न- कृषि विस्तार की समस्या केवल वैज्ञानिकों की कमी की वजह से है?

उत्तर- कृषि विस्तार सिर्फ वैज्ञानिक नहीं करते। हर राज्य सरकार का एक विभाग होता है कृषि विस्तार के लिए। उत्तर प्रदेश का ही उदाहरण लें, मैंने वहां सरकार के साथ काम किया है, कृषि विस्तार की योजनाओं में उत्तर प्रदेश में कुछ अजीब दिक्कते हैं। वहां शोध संस्थानों की लैब में जो नई तकनीक है उसके और किसानों के बीच वाकई बहुत दूरी है, जिसे कोई नकार नहीं सकता है। मैं जब केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक (ओडिशा) का अध्यक्ष हुआ करता था तब भी मैंने खुद उन्नत किस्मों की लिस्ट बनाकर उत्तर प्रदेश को भेजी थी, जिसका क्या हुआ नहीं पता। हालांकि उत्तर प्रदेश इतना बड़ा राज्य है कि मैं समझ सकता हू चीज़ें आसान नहीं होंगी, लेकिन योजना बनाने की प्रदेश में बड़ी कमी है।

प्रश्न- देश में कमज़ोर कृषि विकास और विस्तार के ढांचे को देखते हुए चुनौती यह है कि आगे कैसे बढ़ा जाए?

उत्तर- जवाब है हर संभव संचार तकनीक का प्रयोग। ये संचार तकनीकों का युग है खेती को इससे दूर नहीं रखा जा सकता। हमारे पास 14 करोड़ किसान हैं और लगभग 100 करोड़ मोबाइल फोन, मतलब लगभग हर किसान के पास मोबाइल फोन हैं, जिनकी पहुंच का अभी हम इस्तेमाल ही नहीं कर रहे हैं खेती के लिए। किसान चैनल आया है अब, जिसे कई सालों पहले ही आ जाना चाहिए था। उसके अलावा हम कृषि दर्शन कार्यक्रम करते हैं कम समय का डीडी पर, लेकिन उसे भी बहुत बेहतर प्लानिंग की ज़रूरत है। अभी जो दिखाया जा रहा है वो बहुत सतही है। इन संसाधनों के साथ भी हम जो कर सकते थे, उस दिशा में नहीं गए।

प्रश्न- आने वाले कृषि बजट से क्या आशाएं हैं?

उत्तर- आने वाले बजट से कृषि के बारे में मेरी जो आशा है वो यह कि कृषि की जो नई योजनाएं लाए हैं, चाहे वो बीमा की योजना हो, सिंचाई की योजना हो या फिर मृदा कार्ड की योजना हो, इन्हें सफल बनाने के लिए ठीक-ठाक पैसों का प्रावधान किया जाना चाहिए। इसके अलावा बहुत ज़रूरी है कि सरकार दलहन और तिलहन को बढ़ावा देने के लिए विशेष कार्यक्रम तैयार करे। तिलहन में अकेले हम 55 हज़ार करोड़ रुपए का केवल आयात कर रहे हैं, मुझे जिम्मेदारी मिले तो मैं पांच साल में इसे खत्म कर दूं। एक तो इतने बड़े स्तर पर हम आयात कर रहे हैं वो भी अधोमानक। पाल्म ऑयल जो हम बाहरी देशों से मंगा रहे हैं, खराब किस्म का है। हम उसे बाकी तेलों में मिला-जुला कर लोगों को खिला दे रहे हैं।

प्रश्न- नई कृषि सिंचाई योजना बनाई जा रही है, इससे खेती की कितनी समस्या हल होगी?

उत्तर- यह योजना बड़ा अंतर ला सकती है क्योंकि सरकार जि़ला स्तर से सिंचाई विस्तार का प्लान बना रही है। बस मेरी ये सलाह है कि ये योजना अकेले सिंचाई के लिए न बनाई जाए। इस पूरे प्लान को फसलों के साथ भी जोड़ा जाए। कहने का मतलब है कि जिन स्थानों पर पानी की उपलब्धता कम है वहां अधिक पानी की खपत वाली फसलों की बजाए, कम पानी की फसलों को प्रोत्साहित किया जाए।

प्रश्न- बहुत से विश्लेषक कहते हैं कि देश में फसल विविधता खत्म हो गई है, गेहूं-धान को बढ़ावा देने के चक्कर में?

उत्तर- गेहूं और धान उगाना हमारी आवश्यकता हमेशा रहेगी। देश की 125 करोड़ की जनसंख्या को खिलाना इतना आसान नहीं है। इन अनाजों के केंद्रीय भण्डार के दम पर हम नहीं बैठ सकते, दो-तीन साल और फसलें खराब हो गईं तो हमें फिर गेहूं-धान बाहरी देशों से मंगवाना पड़ेगा। इसलिए अभी आवश्यकता इन फसलों से ध्यान हटाने के बजाए, इनकी प्रति हेक्टेयर उत्पादकता को बढ़ाने की है। इसके बाद जो खेत बचे उसका प्रयोग अन्य फसलों को उगाने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर हम 44 मिलियन हेक्टेयर में चावल न करें, चार मिलियन हेक्टेयर वहां से कम करके उस पर अन्य फसलें उगाएं। लोगों ने इसके लिए नीतियां भी बनाई ही होंगी, लेकिन कमी यह है कि आज तक हम उन नीतियों को लागू नहीं करवा पाए।

प्रश्न- मौसम के साथ-साथ किसान बाज़ार के दबावों से कैसे उबरेगा?

उत्तर- सरकार का जो सिंगल प्लेटफॉर्म मार्केट सिस्टम आने जा रहे हैं, ये बहुत हद तक बाज़ार और बिचौलिए के दबाव से किसान को मुक्त करा देगा। उसको लागू होने के बाद देखते हैं कि लागू होने पर इसका कैसा परिणाम रहता है।

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