मोबाइल रोकेगा फसलों में कीट 

Ashish DeepAshish Deep   6 Oct 2016 9:46 AM GMT

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मोबाइल रोकेगा फसलों में कीट मोबाइल रोकेगा फसलों में कीट  

लखनऊ । डेढ़ दशक पहले एक नामचीन टेलीकॉम कंपनी 'लो कर लो दुनिया मुट्ठी में' के स्लोगन के साथ देश में मोबाइल सेवा लेकर आई। लगा कि सात समुंदर पार बैठे अपनों तक से मोबाइल से बातचीत हो सकेगी, संदेश भेज सकेंगे । पर वक्त बदलने के साथ मोबाइल इतना लोकप्रिय हुआ कि अब हर मर्ज की दवा बन गया है। शहरी युवा तो इसके कायल हैं। यहां तक नौकरी पेशा लोगों की 80 फीसदी जरूरतें मोबाइल से पूरी होती हैं। अब वैज्ञानिकों ने इसे किसानों के लिए भी उपयोगी बना दिया है। किसान अब इससे फसल में लगने वाले कीड़ों की पहचान कर सकते हैं।

सस्ती है तकनीक

पेंसिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि किसान स्मार्टफोन की मदद से किसी भी फसल को कीड़ों से बचा सकते हैं। यही नहीं समय रहते उन्हें बीमारियों से बचा सकते हैं। भारत जैसे विकासशील देश में यह तकनीक काफी कारगर होगी और किसानों को काफी सस्ती भी पड़ेगी। क्योंकि यहां फसलों को बीमारियों से बचाने के लिए शोध और विकास न के बराबर हैं। किसानों को सरकार इस स्तर तक मदद पहुंचाने में असफल रही है।

शोधकर्ता दल के सह मुखिया डेविड हजेज के अनुसार दुनिया में वैश्विक खाद्य असुरक्षा तेजी से घर कर रही है, इसका मुख्य कारण फसल में कीड़े लगना है। कभी-कभार तो पूरी की पूरी तैयार फसल कीड़े लगने से बरबाद हो जाती है। किसान की साल भर की मेहनत धरी की धरी रह जाती है।

एक अनुमान के मुताबिक विकासशील देशों में कृषि उत्पादन का 80 फीसदी हिस्सा छोटे किसानों द्वारा तैयार किया जाता है। हजेज के मुताबिक फसल पर कीटनाशक के समय से छिड़काव से ज्यादा जरूरी उसमें लगने वाले कीड़े की पहचान है। इससे न सिर्फ समय रहते फसल बचेगी बल्कि पैदावार भी बढ़ेगी।

कैसे काम करती है तकनीक

हजेज के अनुसार जिस तरह स्मार्टफोन का इस्तेमाल बढ़ रहा है उससे भविष्य में फसलों की कीड़ों से बरबादी रोकी जा सकेगी। फसल में रोग को स्वचालित फोटो पहचान तकनीक से पकड़ा जा सकता है। वैज्ञानिकों ने शोध के दौरान एक न्यूरल नेटवर्क बनाया यानि सैकड़ों कम्प्यूटर एक जगह पर इकट‍्ठा किए। उनमें ग्राफिकल प्रोसेसिंग यूनिट यानि तस्वीरों में कीड़ों की पहचानने की क्षमता थी। कम्पयूटर तस्वीरों में एक जैसी दिखने वाली बीमारी पहचानते थे। वैज्ञानिकों ने करीब कीड़े लग चुकी फसलों की 53 हजार तस्वीरें कम्प्यूटरों में डालीं। उसके बाद शुरू हुई एक जैसी बीमारी वाली फसल की तस्वीर पहचानने की मशक्कत।

क्या है न्यूरल नेटवर्क

न्यूरल नेटवर्क दरअसल तंत्रिका तंत्र का नेटवर्क है। यह कीड़े लगी फसल और उससे ग्रस्त तैयार फसल में समानता तलाश लेता है। फसल में वक्त से पहले रोग की पहचान इसी तरीके से संभव हुई। शोधकर्ता दल के मु्खिया शरद मोहंती ने बताया कि कम्प्यूटर की मदद से फसलों में लगने वाले 26 रोगों को पकड़ा। यह तस्वीरो बीते सालों में फसल में लगने वाले विभिन्न रोगों की थी, जो वैज्ञानिकों के पास पहले से संकलित थीं।

शोधकर्ताओं का दावा है कि यह तकनीक 99 फीसदी तक फसल में कीड़े की पहचान करने में कारगर है। मोहंती के अनुसार अगर इस तकनीक का इस्तेमाल स्मार्टफोन में किया जाए तो इसे बड़े पैमाने पर प्रयोग में लाया जा सकता है। विकासशील देशों में कृषि वैज्ञानिक इस तकनीक के इस्तेमाल से लाखों किसानों की फसल बरबाद होने से रोक सकते हैं। इस टूल से मौजूदा फसलों को कीटों से बचाने वाली तकनीक और मजबूत होगी।

   

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