आखिर किसान कैसे ख़रीदे सरकारी बीज?

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उन्नाव। सिकंदरपुर सरोसी के निवासी श्याम (40 वर्ष) को प्राइवेट में गेहूं का बीज खरीदना पड़ा क्योंकि ऑनलाइन प्रक्रिया के तहत बीज खरीदने के चक्कर में खेत में बुवाई का समय लेट हो जाता।

सरकारी बीजों की खरीद पर किसानों को मिलने वाली सब्सिडी सीधे किसान तक पहुंचाने की योजना किसानों के साथ ही सरकारी अमले के लिए परेशानी का सबब बन गई है। योजना के तहत किसानों को सब्सिडी का लाभ लेने के लिए बैंक में उनका खाता होना अनिवार्य कर दिया गया था। वहीं ऑनलाइन प्रक्रिया के तहत ही किसानों को बीज उपलब्ध कराया जाना था।

योजना की शुरुआत बीज वितरण को अत्यधिक पारदर्शी बनाने व हर किसान के हाथ तक सब्सिडी पहुंचाने के लिए की गई थी, लेकिन अब यह योजना सरकारी अमले के साथ ही किसानों के लिए भी परेशानी खड़ी कर रही है। ऑनलाइन प्रक्रिया के तहत आवेदन कर गेहूं बीज खरीदने में किसानों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। पहले ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है, फिर सूची तैयार होती है। इसके बाद तीन हजार रुपए प्रति क्विंटल की दर से पैसा जमा कराया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में करीब एक हफ्ते का समय लगता है। इस कारण किसान बाहर से बीज लाना आसान समझ रहे हैं।

उन्नाव के अलावा बाराबंकी, रायबरेली व अन्य कई जि़लों में अभी भी सरकारी बीज एक चौथाई तक ही बिक पाया है। सिकंदरपुर सरोसी के निवासी श्याम बताते है, ”मैंने दस बीघे में गेहूं बोया था। खेत की जुताई से पूर्व बीज के लिए रजिस्ट्रेशन करा लिया था, इसके बाद सूची ही नहीं आ पाई। फिर बुवाई के लिए विलंब होने लगा तो प्राइवेट में ढाई हजार रुपए प्रति क्विंटल का बीज लाकर खेतों में बो दिया।” सब्सिडी के संबंध में पूछने पर श्याम ने बताया कि सरकारी बीज लाते तो तीन हजार रुपए प्रति क्विंटल धनराशि देनी पड़ती। बाद में सब्सिडी करीब 14 रुपए वापस आती लेकिन अगर बुवाई ही लेट हो जाती तो फायदा क्या था। सब्सिडी का भी क्या भरोसा आती या नहीं पता नहीं।

सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2015 में जिले के पांच लाख किसानों के लिए सरकार ने सात हजार क्विंटल गेहूँ बीज उपलब्ध कराया था। नवंबर माह बीतने को है लेकिन अब तक पांच लाख किसानों में से मात्र पचास हजार किसानों ने ही गेहूँ बीज खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है। असोहा ब्लॉक के सरवन गाँव के निवासी नरेश (35 वर्ष) बताते है, ”जब हम लोग अधिकारियों से पूछते हैं कि सब्सिडी का पैसा कब मिलेगा साहब तो वो बताते हैं सरकारी योजना है, पैसा आ ही जाएगा। ऐसे में कौन चक्कर काटे, घंटों कंप्यूटर के सामने खड़े रहो, तब एक पर्ची मिलती है। फिर लिस्ट में नाम देखने के लिए जाओ। इससे अच्छा है कि प्राइवेट से बीज ले आए हैं। बुवाई तो समय से कर पाएंगे।” 

गेहूँ बुवाई का है सही समय

यह हाल तब है जब गेहूं बुवाई का सबसे मुफीद समय चल रहा है। कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि 15 नवंबर से 30 नवंबर के बीच का समय गेहूं बोने के लिए उत्तम होता है। बावजूद इसके किसान सरकारी बीज खरीदने को उत्सुक नहीं दिखाई दे रहे। जिले में यह पहली बार ही हो रहा है कि किसान सरकारी बीज खरीदने को तैयार नहीं है। जबकि इससे पहले जब भी सरकारी गोदामों में गेहूँ बीज पहुंचता था तो किसानों के बीच मारामारी मच जाती थी। सरकारी गेहूं बीज वितरण की प्रक्रिया जटिल हो जाने के बाद अब किसान खुले बाजार से गेहूं बीज खरीदने को मजबूर हो रहे हैं। यही हाल दलहनी बीजों का भी है। दलहनी बीजों पर सरकार तीस प्रतिशत तक की सब्सिडी दे रही है लेकिन किसान इस आेर ध्यान नहीं दे रहे हैं। जिला कृषि अधिकारी यतींद्र सिंह ने बताया कि अभी तक करीब 30 प्रतिशत ही दलहनी बीज बिक सका है।

लगेगी करोड़ों की चपत

जिले के पांच लाख किसानों के लिए सात हजार क्विंटल गेहूं बीज उपलब्ध कराया गया था। गेहूं बुवाई का समय खत्म होने को है और अब तक मात्र पन्द्रह सौ क्विंटल गेंहू का बीज बंट पाया है। कृषि अधिकारियों का मानना है कि अधिक से अधिक दो हजार क्विंटल तक ही गेहूं का बीज बंट सकेगा। एेसे में जो पांच हजार क्विंटल गेहूं का बीच बचेगा उसे कोई पूछने वाला नहीं है। सरकारी सिस्टम की लापरवाही से वह बीज या तो सरकारी गोदाम में सड़ेगा या फिर औने पौने दाम में बेच दिया जाएगा। 

बाराबंकी में भी किसान परेशान

बाराबंकी जिले में भी कई किसानों को ऑनलाइन बीज खरीदने में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर हरख ब्लॉक के बृजेश कुमार (56 वर्ष) बताते है, ”मैं छोटा किसान हूं, मेरे पास 3 बीघा खेती है जिसके लिए ऑनलाइन रजिस्टेशन करवाना पड़ेगा जिसके लिए चक्कर लगाने पड़ेंगे। ऑनलाइन सुविधा देने से क्या फायदा जब काम जल्दी नहीं होता है, बीज आज खरीदना है तो चार दिन बाद मिलेगा। प्राइवेट में तुरन्त बीज मिल जाता है और सस्ता भी।” इस संबंध में जिला कृषि अधिकारी डॉ. एसपी सिंह ने बताते है, ”निर्देशों के मुताबिक गेहूँ का रकबा चार हेक्टेयर है तो हम केवल एक क्विंटल ही दे सकते हैं। दूसरी तरफ प्राइवेट में चार से पांच क्ंिवटल बीज आसानी से मिल जाता है। छोटा किसान रजिस्ट्रेशन से भाग रहा है क्योंकि सरकारी बीज के लिए उसे तीन हजार रुपए प्रति क्विंटल जमा करना पड़ता है जबकि बाहर ढाई हजार रुपए तक में बीज मिल जाता है। हालांकि सब्सिडी के चौदह सौ रुपए उसे वापस होते हैं लेकिन किसानों को विश्वास ही नहीं है कि सब्सिडी वापस आएगी। पिछली बार चार हजार किसान को इसका लाभ दिया गया था। इस बार तीस हजार किसानों ने रजिस्ट्रेशन करा लिया है। समस्या यह है कि किसान झंझट में नहीं पडऩा चाहता और वो पासबुक की कॉपी, फोटो देने में कोताही बरतते हैं।”

रिपोर्टर – श्रीवत्स अवस्थी

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