आलू छोड़ चिकोरी उगा रहे पश्चिमी यूपी के किसान

Vineet BajpaiVineet Bajpai   23 Feb 2017 3:37 PM GMT

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एटा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई जिले जहां के किसान आलू की खेती के लिए जाने जाते थे, अब उनका आलू की खेती से मोहभंग हो रहा है। आलू की जगह अब किसान चिकोरी की खेती करने लगे हैं। चिकोरी की किसानों से इतना फायदा हो रहा कि सिर्फ एटा ज़िले में 15000 हेक्टेयर में चिकोरी की खेती की रही है।

एटा जिले में पहले आलू की खेती किसान ज्यादा करते थे, जिसमें हर वर्ष किसानों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता था। कभी आलू स्टोर करने में असुविधा होती तो कभी बेचने के समय आलू सस्ता हो जाता था, लेकिन जब से किसानों को चिकोरी की फसल के बारे में पता चला है तब से ज़्यादातर किसानों ने चिकोरी की खेती शुरू कर दी है।

एटा जिले के सीतलपुर ब्लॉक के कठौली गाँव के किशनलाल (45 वर्ष) के पास सात एकड़ जमीन है और वो पूरी ज़मीन पर चिकोरी की खेती करते हैं, अन्य फसलों के लिए उन्होंने पट्टे पर जमीन ले रखी है। वो कहते हैं, ‘‘आलू की खेती में जोखिम रहता था, लेकिन चिकोरी में ऐसा बिलकुल नहीं है। इसलिये अब मैं आलू की खेती कम करता हूं और चिकोरी की ज़्यादा।’’ किशनलाल पहले 10-11 एकड़ में आलू की खेती करते थे, लेकिन अब वो आलू की खेती सिर्फ तीन एकड़ में ही कर रहे हैं।

एटा जिले के जिला कृषि अधिकारी सर्वेश यादव द्वारा बताए गए आंकड़ों के अनुसार जिले में करीब 15000 हेक्टेयर में चिकोरी की खेती हो रही है और आठ हजार हेक्टेयर में आलू की खेती हो रही है। सर्वेश यादव बताते हैं, ‘‘चिकोरी की खेती एक सुरक्षित खेती है। चाहे बारिश हो चाहे ओले पड़े चिकोरी पर कोई नुकसान नहीं होता है। इसीलिए किसान इसे ज्यादा पसंद कर रहे हैं।’’

चिकोरी की बुवाई नवंबर महीने में की जाती है चिकोरी तैयार होने में अन्य फसलों के मुकाबले अधिक समय लेती है। इसके बावज़ूद लोग इसे पसंद कर रहे हैं, क्योंकि इसमें किसान को किसी तरह की चिंता रहती। न तो रोग लगने का झंझट और न ही जंगली जानवरों से नुकसान का डर। यह दिखने में शकरकंद जैसी लगती है। इसको सुखाकर, भूनकर पाउडर बनाकर कॉफी में मिलाया जाता है। चिकोरी की खेती में बीज खरीदने से लेकर फसल की खुदाई करवाने तक प्रति एकड़ कुल खर्च मात्र 10000 रुपए आता है। एक एकड़ में करीब 200 कुंतल की पैदावार होती है और इस बार इसका मूल्य 400 रुपए प्रति कुंतल निर्धारित किया गया है।

एटा जिले में स्थित मुरली कृष्णा प्राइवेट लिमिटेड संस्था किसानों को चिकोरी की खेती करने के लिये बीज उपलब्ध कराती है और फसल तैयार होने पर उनसे खरीद लेती है। मुरली कृष्णा प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के कार्यकर्ता धर्मवीर सिंह चिकोरी के बड़े क्षेत्रफल के बारे में कहते हैं, ‘‘चिकोरी में किसानों को किसी प्रकार की असुविधा नहीं होती है। किसानों ने अन्य फसलों की बुवाई कुछ कम करके चिकोरी की खेती कर रहे हैं।’’

एटा के साथ-साथ कासगंज के भी तीन ब्लॉकों पटियारी, गंजडुंडवारा और सोरो में भी पिछले चार वर्षों में ही करीब 300 हेक्टेयर में चिकोरी की खेती होने लगी है। कासगंज जिले के सोरो ब्लॉक के गंगागढ़ के विमल कुमार पिछले कई वर्षों से चिकोरी की खेती कर रहे हैं। वो कहते हैं, ‘‘पहली बार मैैने सिर्फ एक एकड़ में चिकोरी बोई थी। अच्छा फायदा हुआ तो इस बार पांच एकड़ में बोई है। एक एकड़ में करीब 40 कुंतल चिकोरी निकल आती है।’’

चिकोरी के दाम के बारे में विमल कहते हैं, ‘‘सबसे अच्छी बात ये है कि हमे बुआई के समय ही हमारी फसल का मूल्य पता चल जाता है। उसके बाद वो मूल्य बढ़ा तो देतेे हैं, लेकिन घटाते नहीं हैं। इस बार फसल का मूल्य 400 रुपए प्रति कुंतल निर्धारित किया गया था।’’

गंगागढ़ के ही वेदप्रकाश प्रजापति (42 वर्ष) के पास 12 एकड़ खेत है और वो आठ एकड़ में चिकोरी की खेती कर रहे हैं। वेदप्रकाश कहते हैं, ‘‘पहले मैं आलू की खेती करता था, उसमें अक्सर परेशानी आती थी। कभी स्टोर करने की दिक्कत होती थी तो कभी बेचने के समय आलू सस्ता हो जाता था। इस लिये मैने आलू की खेती करनी बंद कर दी और चिकोरी की खेती शुरू कर दी।’’

    

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