प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना : पिछले वर्ष खरीफ सीजन का 1900 करोड़ रुपए का क्लेम बाकी 

Ravish Kumar

लखनऊ। इस साल खरीफ के सीजन में फसल बीमा कराने की आखिरी तारीख 31 जुलाई है। सरकार योजना का जोरशोर से प्रचार-प्रसार भी कर रही है,लेकिन किसानों में आपेक्षित उत्साह नहीं जगा पाई है। इसकी वजह योजना में अड़ंगेबाजी और क्लेम मिलने में दिक्कत भी बड़ी वजह हैं। पिछले वर्ष के किसानों के करीब 1900 करोड़ बाकी हैं।

हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में सामने आया कि पिछले साल खरीफ सीजन में सरकार के पास फसल बीमा प्रीमियम के लिए 16,675 करोड़ की राशि इकट्ठा हुई थी जबकि 2016 के ख़रीफ सीजन में किसानों ने 1,37,535 करोड़ का बीमा कराया।

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इसमें किसानों ने करीब 6583 करोड़ का क्लेम किया जबकि उन्हें केवल 4649 करोड़ की राशि ही अब तक मिल पाई यानी अभी भी 1934 करोड़ यानी दो हजार करोड़ के करीब किसानों को फसल बीमा योजना का फायदा नहीं मिल पाया है। सात महीने बीत चुके हैं । ये हालात तब हैं जब सरकार ने 45 दिनों के भीतर भुगतान होने का दावा किया था।

जल्द से जल्द भुगतान न होने की वजह से किसानों अगली फसल नहीं लगा पाते। ऐसे में वे आढ़तियों से कर्ज लेते हैं और वे किसानों से ज्यादा ब्याज वसूलते हैं। सरकार की जवाबदेही होनी चाहिए और किसानों के लिए उचित एक्शन लेने चाहिए।

रमनदीप मान, कृषि विशेषज्ञ

बीमा भुगतान न होने से अगली फसल नहीं लगा पाते किसान

इनमें सबसे ज्यादा बुरा हाल बिहार और तेलंगाना का है, जहां किसानों को फसल बीमा की कोई राशि नहीं मिली। इसी तरह उत्तर प्रदेश में 453.13 करोड़ राशि का दावा करने के बाद भी 427.74 करोड़ का ही भुगतान किया गया है। वहीं मध्य प्रदेश, जहां पिछले महीनों में किसान आंदोलन हो चुका है वहां 1712.75 करोड़ राशि के दावे के बाद सिर्फ 93.61 करोड़ का ही भुगतान हुआ है।

कृषि विशेषज्ञ रमनदीप मान दिल्ली से फोन पर गांव कनेक्शऩ को बताते हैं, “जल्द से जल्द भुगतान न होने की वजह से किसानों अगली फसल नहीं लगा पाते। ऐसे में वे आढ़तियों से कर्ज लेते हैं और वे किसानों से ज्यादा ब्याज वसूलते हैं। सरकार की जवाबदेही होनी चाहिए और किसानों के लिए उचित एक्शन लेने चाहिए।”

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बैंक से लेकर सरकारों को किसानों की कोई चिंता नहीं है

एनडीटीवी के सीनियर एग्जीक्यूटिव एडिटर रवीश कुमार ने पिछले दिनों अपने लेख में लिखा था कि बीमा भुगतान के दावों को निपटाने में सात से आठ महीने लग जाते हैं। जबकि नियम है कि 45 दिन में दावों का निपटारा होगा। देरी के अनेक कारण बताए गए हैं, उन कारणों को पढ़कर लगा कि बैंक से लेकर सरकारों को किसानों की कोई चिन्ता नहीं है। इस स्कीम को लागू करने वाली एजेसिंयों की तरह मॉनिटरिंग भी बेहद ख़राब है।

वहीं बीते शुक्रवार को संसद में सवाल उठा कि प्राइवेट बीमा कंपनियां मुनाफ़ा कमा रही हैं तो कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि राज्यों को भी कहा गया है कि वे अपनी बीमा कंपनी बना सकती है। इसमें रुचि लेने वाले राज्यों में गुजरात और हरियाणा आगे आए हैं।

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बीमा भुगतान के दावों को निपटाने में सात से आठ महीने लग जाते हैं। जबकि नियम है कि 45 दिन में दावों का निपटारा होगा। देरी के अनेक कारण बताए गए हैं, उन कारणों को पढ़कर लगा कि बैंक से लेकर सरकारों को किसानों की कोई चिन्ता नहीं है।

रवीश कुमार, एक लेख में

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 2016 में लांच की गई थी। इसके पैनल में 5 सरकारी और 13 निजी बीमा कंपनियां हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में प्रावधान है कि सभी खरीफ़ फसलों (जुलाई से अक्टूबर) के लिए किसानों को दो प्रतिशत और सभी रबी फसलों (अक्टूबर से मार्च) के लिए 1.5 प्रतिशत का प्रीमियम देना होता है, जबकि वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए पांच प्रतिशत प्रीमियम देना होता है।

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