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पौष्टिक तत्वों से भरपूर गेहूं की इन खास किस्मों के बारे में जानते हैं?

भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल की अखिल भारतीय समन्वित गेहूं व जौ अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत, गेहूं की जैव संवर्धित किस्में विकसित करने की शुरुआत की गई है, जोकि पारम्परिक किस्मों की तुलना में अधिक पौष्टिक हैं। भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक इस लेख के जरिए गेहूं की कुछ ऐसी किस्मों की खासियतों के बारे में बता रहे हैं।
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विश्व में उगाई जाने वाली खाद्यान्न फसलों में गेहूं का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत में जलवायु विषमताओं व खानपान की आदतों के अनुरुप तीन प्रकार के गेहूं (चपाती, कठिया व खपली) की खेती दुनिया भर के लिए उदाहरण है। मनुष्यों में समुचित वृद्धि और विकास के लिए पौष्टिक आहार महत्वपूर्ण है। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए शरीर के उपापचय को बनाए रखने के अलावा बीमारियों को रोकने में मदद करता है।

भारत में उत्पादित कुल खाद्यान्न में 36.7 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ खाद्य टोकरी की खपत में गेहूं की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है। खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार द्वारा गेहूं को बड़े पैमाने पर खरीदा जाता है, ताकि भारत की अधिकांश आबादी को खाने के लिए वितरित किया जाता है। अनाजों से मिलने वाली ऊर्जा में गेहूं सबसे सस्ते स्रोतों में से एक है। देश में वर्ष 2020-21 के दौरान गेहूं की खेती 31.76 मिलियन हैक्टर क्षेत्रफल पर की गई, जिस पर अब तक का सबसे अधिक 109.52 मिलियन टन का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ।

विश्व भर में “पर्याप्त भोजन अपर्याप्त पोषण” एक ऐसी स्थिति है, जिससे शरीर में आवश्यक विटामिन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। सामान्य भूख की तुलना में इसके लक्षण कम दिखाई देते हैं। सूक्ष्म पोषक तत्व हीनता को आजकल लोग हिडेन हंगर (छिपी हुई भूख) के नाम से जानते हैं। दुनिया भर में 200 करोड़ लोग हिडेन हंगर की समस्या से ग्रसित हैं। हिडेन हंगर से अधिकांशतः गरीब परिवारों के बच्चे और गर्भवती महिलाएं प्रभावित होती हैं। भारतीय लोग आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे विटामिन (ए, बी12 एवं डी), आयरन, जिंक, कैल्शियम, आयोडीन व फॉलिक अम्ल आदि पर ध्यान न देकर कार्बोहाइड्रेट और वसा से भरपूर खाद्य पदार्थों पर जोर देते हैं। इसलिए, असंतुलित आहार हिडेन हंगर की समस्या का एक मुख्य कारण बनता है।

पौष्टिक भोजन राष्ट्र के विकास और समृद्धि का सूचक है। हालांकि, 21वीं सदी में हिडेन हंगर एक प्रमुख स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उभरा है। भारत सरकार द्वारा हिडेन हंगर को कम करने के लिए विभिन्न रणनीतियां जैसे खाद्य सुदृढ़ीकरण, चिकित्सा अनुपूरण और आहार विविधता का उपयोग किया जा रहा है। भारत सरकार की इन रणनीतियों के तहत जैवसंवर्धित फसलों का विकास एक सशक्त विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि पोषक तत्वों को प्राकृतिक रूप में लक्षित लोगों तक पहुंचाने के लिए यह एक टिकाऊ एवं लागत प्रभावी तकनीक है। भाकृअनुप-भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल की अखिल भारतीय समन्वित गेहूं एवं जौ अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत चपाती और कठिया गेहूं की अनेकों किस्में विकसित की गई हैं। संस्थान के इस प्रयास से सही पोषण और देश रौशन के तहत विजन 2022 ”कुपोषण मुक्त भारत”, राष्ट्रीय पोषण रणनीति को भी बढ़ावा मिलेगा।

हिडेन हंगर का वैश्विक परिदृश्य

मानव के समुचित विकास और वृद्धि के लिए पौष्टिक आहार अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आहार में विद्यमान पोषण अवरोधी तत्व मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। असंतुलित भोजन का उपभोग करने से विश्व में करोड़ों लोग प्रभावित हो रहे हैं, जो उन्हें कमजोर स्वास्थ्य एवं निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर की ओर ले जा रहा है। विश्व में लगभग 200 करोड़ जनसंख्या हिडेन हंगर से प्रभावित है जबकि 82 करोड़ जनसंख्या कुपोषित है। दक्षिण एशिया में विश्व की कुल जनसंख्या के 35 प्रतिशत गरीब लोगों का वास है तथा भारत की 21.9 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे रहती है। भारत विश्व के सबसे अधिक (15.2 प्रतिशत़) कुपोषित लोगों का घर है, जहां 5 वर्ष से कम उम्र के 38.4 प्रतिशत बच्चे छोटे कद के एवं 35.7 प्रतिशत बच्चे कम वजन के होते हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 70 प्रतिशत बच्चों (5 वर्ष से कम) में आयरन की कमी और 38 प्रतिशत बच्चों में जिंक की कमी है। विटामिन एवं खनिज लवणों की कमी के कारण सकल घरेलू उत्पाद में भारत को प्रति वर्ष लगभग 12 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है।

चपाती गेहूं (ट्रिटिकम एस्टीवम)

दुनिया में उगाई जाने वाली गेहूं की प्रमुख प्रजातियों में चपाती गेहूं एक प्रमुख प्रजाति है और इसे देश के लगभग सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जाता है। इसका भारत में गेहूं के कुल उत्पादन में लगभग 95 प्रतिशत का योगदान है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मार्गदर्शन में कृषि अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रमों के माध्यम से भाकृअनुप-भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल की अखिल भारतीय समन्वित गेहूं एवं जौ अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत, गेहूं की जैव संवर्धित किस्में विकसित करने की शुरुआत की गई है, जो पारम्परिक किस्मों की तुलना में अधिक पौष्टिक हैं। जैव संवर्धित किस्में न केवल शरीर के लिए पर्याप्त कैलोरी प्रदान करती हैं, अपितु इनके उपयोग से समुचित शारीरिक और मानसिक विकास होता है।

कठिया गेहूं (ट्रिटिकम ड्यूरम)

भारत में उगाई जाने वाली गेहूं की तीन प्रकारों में उत्पादन की दृष्टि से कठिया गेहूं का दूसरा स्थान है। गेहूँ के कुल उत्पादन में कठिया गेहूं लगभग चार प्रतिशत का योगदान देता है। कठिया गेहूं की खेती बहुत पुराने समय में उत्तर में पंजाब, दक्षिण में कर्नाटक, पश्चिम में गुजरात और पूर्व में बंगाल तक की जाती थी। लेकिन कालांतर में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पीला रतुआ के बढ़ते प्रकोप, चपाती गेहूं की तुलना में कम उपज एवं भारतीय बाजार में घटती मांग और कीमत के कारण उत्तर भारत के अधिकतर भागों में कठिया गेहूँ की खेती लगभग समाप्त हो गई।

इस दौरान कठिया गेहूं की खेती के लिए लम्बी बढ़ने वाली बंसी, होरा, कठिया, जलालिया, खंडवा, गंगाजली और मालवी नामक प्रजातियों को उपयोग में लाया जाता था। विगत तीन दशकों के दौरान भाकृअनुप-भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल की अखिल भारतीय समन्वित गेहूँ एवं जौ अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत विकसित कठिया गेहूं की अधिक उत्पादन, उच्च गुणवत्ता और रतुआ प्रतिरोधी बौनी किस्मों की सिंचित परिस्थितियों में खेती के द्वारा क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है। इस प्रकार कठिया गेहूँ की खेती ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक जैसे राज्यों में फिर से लोकप्रियता बढ़ी है। इस समय उगाई जाने वाली किस्मों के दानों का आकार चपाती गेहूँ की तुलना में बड़ा एवं रंग मुख्यतः सुनहरा होता है, तथा इन किस्मों में प्रोटीन, जिंक एवं आयरन की मात्रा प्रचलित किस्मों की तुलना में अधिक होने के कारण इनको जैव संवर्धित किस्मों की श्रेणी में रखा गया है। कठिया गेहूँ को निर्यात की वस्तु बनाने में इसकी उच्च गुणवत्ता, अच्छी कीमत, करनाल बंट रोगरोधिता, वैश्विक मांग एवं न्यूनतम संगरोध आदि की अहम भूमिका निभाते हैं।

जैव संवर्धित किस्मों का विस्तृत विवरण

भारत में अब तक गेहूं, धान और मक्का सहित लगभग 16 फसलों की 71 जैव संवर्धित किस्में विकसित की जा चुकी हैं, जिनमें 32.4 प्रतिशत गेहूं की किस्में शामिल हैं। जैव संवर्धित गेहूं की किस्में रोग प्रतिरोधकता, उत्पादकता, गुणवत्ता एवं पोषक तत्वों (प्रोटीन, आयरन एवं जिंक) की दृष्टि से आम किस्मों की तुलना में बेहतर हैं। इन किस्मों के अंगीकरण से किसानों की आय एवं पोषण में वृद्धि होगी। जैव संवर्धित किस्मों की विस्तृत जानकारी निम्नलिखित तालिका में दी गई हैं।

गेहूं की जैव संवर्धित किस्में और इनकी मुख्य विशेषताएं

उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र: पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा एवं उदयपुर संभाग को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड का तराई क्षेत्र, जम्मू कश्मीर के जम्मू एवं कठुआ जिले व हिमाचल प्रदेश का ऊना जिला एवं पोंटा घाटी के लिए विकसित किस्में

प्रजातियों के नाम

बुवाई की दशा

उपज (कुंतल/हेक्टेयर)

उपज (कुंतल/हेक्टेयर)

गुणवत्ता मानक

औसत क्षमता प्रोटीन (प्रतिशत) जस्ता (पीपीएम) लोहा (पीपीएम)

डीबीडब्ल्यू 332

सिंचित, समय से बुवाई

78.3

83.3

12.2

35.7

39.2

डीबी डब्ल्यू 327

सिंचित, समय से बुवाई

79.4

87.7

11.9

40.6

39.4

डीबीडब्ल्यू 303 (करण वैष्णवी)

सिंचित, समय से बुवाई

81.40

97.40

12.1

36.9

35.8

डी बी डब्ल्यू 187 (करण वंदना)

सिंचित, समय से बुवाई

75.50

96.60

11.6

32.1

43.1

डी बी डब्ल्यू 173

सिंचित, देर से बुवाई

47.20

57.00

12.5

33.1

40.7

एच डी 3298

सिंचित, देर से बुवाई

39.00

47.40

12.1

39.6

43.1

पीबीडब्ल्यू 771

सिंचित, देर से बुवाई

50.30

62.30

11.0

41.4

38.4

पी बी डब्ल्यू 757

सिंचित, देर से बुवाई

36.70

44.90

13.0

42.3

36.5

उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र: पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल की पहाड़ियों को छोड़कर, असम एवं उत्तर पूर्वी राज्यों के मैदानी भाग

एचडी3171

वर्षा आधारित

समय से बुवाई

28.01

46.30

12.0

33.4

47.1

एचडी3293

वर्षा आधारित

समय से बुवाई

38.87

41.60

10.7

37.7

34.9

एचडी3249

वर्षा आधारित

समय से बुवाई

48.75

65.70

10.7

27.0

42.5

मध्य क्षेत्र: मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान के कोटा एवं उदयपुर संभाग और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र (झांसी एवं चित्रकूट सम्भाग)

एचआई 8759 (पूसा तेजस)

सिंचित, समय से बुवाई

56.00

75.00

12.0

42.8

42.1

डीडीडब्ल्यू 47 (कठिया)

सीमित सिंचित, समय से बुवाई

37.00

74.10

12.7

39.5

40.1

प्रायद्वीपीय क्षेत्र: महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, गोवा एवं तमिलनाडु के मैदानी भाग, तमिलनाडु के नीलगिरी एवं पलनी पर्वतीय क्षेत्र तथा केरल के वायनाड एवं इडुक्की जिले

डीडीडब्ल्यू 48 (कठिया)

सिंचित, समय से बुवाई

47.40

72.00

12.1

39.7

38.8

एमएसीएस 4028

सीमित सिंचाई/वर्षा आधारित, समय से बुवाई

19.30

28.70

14.7

40.3

46.1

एमएसीएस 4058

सीमित सिंचाई, समय से बीजाई

29.60

37.10

12.8

37.8

39.5

एचआई 1605 (पूसा उजाला)

सीमित सिंचाई, समय से बीजाई

29.10

44.00

13.0

35.0

43.0

एचआई 1633 (पूसा वानी)

सिंचित, देर से बीजाई

41.70

65.80

12.4

41.1

41.6

एचआई 8805 (कठिया)

सीमित सिंचाई, समय से बीजाई

30.40

35.40

12.8

33.9

40.4

एचआई 8802 (कठिया)

सीमित सिंचाई, समय से बीजाई

29.10

36.00

13.0

35.9

39.5

एचआई 8777 (कठिया)

सीमित सिंचाई/वर्षा आधारित, समय से बीजाई

18.80

28.80

14.3

43.6

48.7

यूएएस 375

सीमित सिंचाई/वर्षा आधारित, समय से बीजाई

22.25

30.75

13.8

32.1

43.6

पोषक तत्वों का विश्लेषण

स्वस्थ और सक्रिय मानव जीवन के लिए उचित और पर्याप्त पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। शरीर में पोषक तत्वों की प्राप्ति के लिए पौष्टिक आहार का सेवन अत्यधिक महत्वपूर्ण है। नियमित शारीरिक गतिविधियों के कार्यान्वयन के साथ-साथ पर्याप्त, उचित एवं संतुलित आहार अच्छे स्वास्थ्य का आधार है। अच्छे पोषण के सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता, उत्पादकता व शारीरिक एवं मानसिक विकास में वृद्धि होती है। अच्छा भोजन हमारी दैनिक उपापचय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उर्जा, प्रोटीन, वसा, विटामिन, एंटीऑक्सीडेंट एवं खनिज लवण प्रदान करता है, जिनका कार्यात्मक विवरण निम्नलिखित है।

कार्बोहाइड्रेट्स: यह कार्बनिक पदार्थ हैं जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन व आक्सीजन होते हैं। यह शरीर के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व हैं, जिनसे हमारे शरीर को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए ऊर्जा मिलती है। कार्बोहाइड्रेट की 225-335 ग्राम मात्रा संतुलित आहार में प्रतिदिन शामिल करने की आवश्यकता होती है, जिसे हमारे शरीर को 2000 कैलोरी आहार का सेवन करके प्राप्त किया जा सकता है। गेहूँ में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा 65-75 प्रतिशत होती है। अतः यह कार्बोहाइड्रेट की आवश्यकता को पूरा करने का अच्छा स्रोत है।

प्रोटीन: इसका मुख्य कार्य शरीर की आधारभूत संरचना की स्थापना एवं एंजाइम के रूप में शरीर की जैव रासायनिक क्रियाओं का संचालन करना है। यह वृद्धि और ऊतकों की मरम्मत के लिए आवश्यक अमीनो एसिड प्रदान करता है। इससे शरीर को आवश्यकतानुसार ऊर्जा मिलती है। एक ग्राम प्रोटीन के प्रजारण से शरीर को 4.1 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। गेहँ की जैव संवर्धित किस्मों में प्रोटीन का स्तर 10.7-14.7 प्रतिशत होता है। अतः गेहूँ के माध्यम से भी प्रोटीन की आवश्यकता पूरी की जा सकती है। इसकी कमी से बौद्धिक विकास, शारीरिक क्रियाशीलता और यहां तक ​​कि मृत्यु दर भी प्रभावित होती है।

ऊर्जा:  मानव शरीर हमारे द्वारा सेवन किए गए भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करता है। भोजन द्वारा प्रदान की जाने वाली ऊर्जा की मात्रा को आमतौर पर कैलोरी या किलोजूल में मापा जाता है। विभिन्न प्रकार के भोजन में अलग-अलग मात्रा में ऊर्जा होती है। ऊर्जा की मात्रा कार्बोहाइड्रेट (3.75 कैलोरी प्रति ग्राम) और प्रोटीन (4 कैलोरी प्रति ग्राम) की तुलना में वसा (9 कैलोरी प्रति ग्राम) और अल्कोहल (7 कैलोरी प्रति ग्राम) में अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होती है। इस प्रकार शरीर को मिलने ऊर्जा की मात्रा न केवल उपभोग किए गए भोजन की मात्रा पर निर्भर करती है, बल्कि उपभोग किए गए भोजन के प्रकार पर भी निर्भर करती है। मानव शरीर में भोजन से उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग शरीर के आवश्यक कार्यों जैसे कोशिका वृद्धि व उनकी मरम्मत, श्वसन, रक्त परिवहन को बनाए रखने, व्यायाम एवं मनोरंजक गतिविधियों सहित शारीरिक कार्यों को करने के लिए किया जाता है। गेहूँ के सेवन से अच्छी मात्रा में ऊर्जा की प्राप्ति हो सकती है। इसके भीगे हुए दानों का नियमित सेवन इस दशा में बहुत ही लाभकारी है।

विटामिन: शारीरिक पोषक के लिए विटामिन जैविक की थोड़ी मात्रा में आवश्यकता होती है। इसकी कमी के कारण शरीर में कई प्रकार की बीमारियाँ हो सकती है। गेहूँ आधारित खाद्य उत्पादों में विटामिन ए, बी, ई एवं के की प्रचुर मात्रा होती है। इसलिए इन उत्पादों को अपने दैनिक आहार में शामिल करके बेहतर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

कैल्शियम: गेहूं आधारित खाद्य पदार्थों में कैल्शियम (34.00 मिलीग्राम/100 ग्राम) अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जिसकी शारीरिक प्रक्रियाओं एवं हड्डियों व दांतों के विकास के लिए आवश्यकता होती है। यह मांसपेशियों की गति और हृदय प्रक्रिया में भी अहम भूमिका निभाता है। शरीर में इसकी कमी से दांतों की समस्या, मोतियाबिंद, मस्तिष्क में बदलाव एवं अन्य सम्बंधित विकृतियाँ देखी जा सकती हैं।

आयरन: आयरन शरीर के रक्त में हीमोग्लोबिन का सबसे महत्वपूर्ण घटक है। यह पूरे शरीर में ऑक्सीजन पंहुचाने का कार्य करता है। जब हमारे शरीर में आयरन पर्याप्त मात्रा में होता है तब शरीर की समस्त कोशिकाएं ऊर्जा से पूरी तरह भरी हुई होती हैं। गेहँ की जैव संवर्धित किस्मों में आयरन का स्तर 34.9-48.7 पीपीएम होता है। अपने दैनिक आहार में इन किस्मों के गेहूँ को शामिल करने से आयरन की कमी को पूरा किया जा सकता है। आयरन तत्‍व की कमी के कारण सामान्‍य पीलापन, नेत्र-श्‍लेष्‍मा, जीभ, नख-परतों एवं कोमल तालु में पीलापन के साथ-साथ बच्‍चों में संज्ञानात्‍मक क्रियाएँ (एकाग्र रह पाने की अवधि, स्‍मरण शक्‍ति, ध्‍यान केंद्रित करना) बुरी तरह से प्रभावित होती हैं। गेहूँ ग्रास जूस के नियमित सेवन से भी शारीरिक आयरन मांग की पूर्ति तथा रक्त की कमी को दूर किया जा सकता है।

जस्ता: यह एक महत्वपूर्ण खनिज तत्व है, जो मनुष्यों में आवश्यक 300 से अधिक एंजाइमों में सहकारक के रूप में कार्य करता है। यह न्यूक्लिक एसिड, प्रोटीन, लिपिड और कार्बोहाइड्रेट के संश्लेषण और गिरावट के नियमन के लिए आवश्यक है। जिंक की कमी से विकास में मंदता, भूख में कमी, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी एवं संक्रमण की संवेदनशीलता बढ़ जाती है। जैव संवर्धित गेहूँ का सेवन इसकी कमी को दूर करने में लाभदायक सिद्ध हो सकता है।

पोटेशियम: शरीर में रक्तचाप और मांसपेशियों पर नियन्त्रण रखने के लिए पोटाशियम की जरूरत होती है। यह सोडियम के साथ शरीर में पानी की मात्रा को नियन्त्रित रखने का काम करता है। गेहूँ आधारित खाद्य पदार्थों में पोटाशियम की मात्रा 363.00 मिलीग्राम/100 ग्राम होती है। पोटाशियम की कमी से उल्टी, दस्त, हृदय में असामान्यता या दिल का दौरा पड़ना एवं पाचन सम्बन्धी समस्या हो सकती हैं।

फॉस्फोरस: शरीर की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करने, एनिमिया जैसी बीमारी से बचाव तथा हड्डियों के गलत आकार में बढ़ने से रोकने के लिए शरीर में फॉस्फोरस की पर्याप्त मात्रा का होना बहुत आवश्यक है। गेहूँ आधारित खाद्य पदार्थों में फॉस्फोरस खनिज की मात्रा 357.00 मिलीग्राम/100 ग्राम होती है।

मैग्नीशियम: शारीरिक विकास के लिए मैग्नीशियम एक प्रमुख खनिज तत्व हैं, जिसकी 75 प्रतिशत से ज्यादा कमी भारतीयों में पाई जाती है। मैग्नीशियम शरीर में 300 से अधिक जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं (बायोकेमिकल रिऐक्शन्स) में मदद करता है। मस्तिष्क, हृदय, आँख, इम्यून सिस्टम, नर्व्स (तंत्रिकाएं) और मसल्स (मांसपेशियों) को अच्छी तरह काम करने के लिए मैग्नीशियम की जरूरत होती है। गेहूँ में मैग्नीशियम (137.00 मिलीग्राम/100ग्राम) की भरपूर मात्रा होती है। इसलिए गेहूँ आधारित खाद्य पदार्थों को दैनिक आहार में शामिल करके शरीर में मैग्नीशियम की कमी को पूरा किया जा सकता है।

सेलेनियम: सेलेनियम बहुत ही आवश्यक पोषक तत्व है, जो मानव शरीर में एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है। यह प्राकृतिक रूप से पानी एवं कुछ खाद्य पदार्थों में पाया जाता है। हमारे शरीर को बहुत कम मात्रा में इसकी आवश्यकता होती है। 14 वर्ष से अधिक आयु के युवाओं के लिए 55 माइक्रोग्राम (एमसीजी), गर्भवती महिलाओं के लिए 60 माइक्रोग्राम तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए 70 माइक्रोग्राम प्रतिदिन आवश्यकता होती है (आहार अनुपूरक कार्यालय, 2019)। गेहूँ आधारित खाद्य पदार्थों (61.8 माइक्रोग्राम प्रति 100 ग्राम) को अपने आहार में शामिल करके इस अनुशंसित मात्रा को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। शरीर में सेलेनियम की संतुलित मात्रा हार्ट अटैक, कैंसर, एथेरोस्क्लेरोसिस एवं अस्थमा जैसी बीमारियों को रोकने में मदद करती है। शरीर में उपस्थित टॉक्सिन को बाहर निकालने, प्रतिरोधक क्षमता एवं प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में भी मददगार है।

नियासिन: यह खाने को ऊर्जा में परिवर्तित करने के साथ-साथ वसा, अम्ल और कॉलेस्ट्रॉल को नियन्त्रित रखने का कार्य करता है। खाद्य एवं पोषक बोर्ड के अनुसार पुरूष एवं महिलाओं को क्रमशः 16 व 14 मिलीग्राम नियासिन की प्रतिदिन जरूरत होती है। गेहूँ आधारित खाद्य पदार्थों में नियासिन की यह मात्रा (4.957 मिलीग्राम/100 ग्राम) आसानी से उपलब्ध हो जाती है।

आहार में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए यह एक वैकल्पिक दृष्टिकोण है। जैव-सुदृढ़ीकरण ब्रीडिंग के माध्यम से प्रोटीन, विटामिन एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों (जिंक, आयरन) को मूल किस्मों में समाहित कर दिया जाता है। जैव संवर्धित किस्मों के पौधे अपने विकास के दौरान जिंक और आयरन जैसे जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्वों को भूमि से अवशोषित करते हैं, जबकि प्रोटीन को पौधों द्वारा संश्लेषित किया जाता है। गेहूँ की जैव सम्वर्धित किस्में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों का समृद्ध स्रोत है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा प्रायोजित स्वास्थ्य कार्यक्रमों में मूल्यवर्धित उत्पादों को शामिल करने से पोषण की स्थिति और उनके तेजी से प्रसार में सुधार लाने में मदद मिल सकेगी। 

(मंगल सिंह, अनुज कुमार, सत्यवीर सिंह, ओम प्रकाश अहलावत, अनिल कुमार खिप्पल, लोकेन्द्र कुमार व ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह, भाकृअनुप-भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा)

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