जीएम सरसों के बाद अब जीएम मक्के पर रार

Ashwani NigamAshwani Nigam   5 July 2017 7:56 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
जीएम सरसों के बाद अब जीएम मक्के पर रारपंजाब सरकार ने परीक्षण के लिए दी मंजूरी।

लखनऊ। जीएम सरसों की व्यवसायिक खेती को लेकर हो रहे विरोध के बीच पंजाब सरकार ने अंतराष्ट्रीय कंपनियों के जीएम मक्का के द्वितीय चरण के परीक्षण का मंजूरी दी है। जीएम मक्का को लेकर पंजाब राज्य की विशेषज्ञ कमेटी बनाई गई थी जिसका नेतृत्व पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बीएस ढिल्लो कर रहे थे। पंजाब सरकार के कृषि निदेशक डॉ. जेएस बेंस ने कहा कि राज्य सरकार ने इन परीक्षणों के लिए हरी झंडी देने के साथ ही केन्द्र सरकार की जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) को भेज दिया है। पंजाब सरकार इस फैसले का देश के जानेमाने कृषि एवं पर्यावरण विशेषज्ञ और किसानों ने विरोध करना शुरू कर दिया है।

बीजेपी के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के फ्रंटल संगठन स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक डॉ. अश्विनी महाजन ने कहा '' जीएम मक्के के परीक्षण को मंजूरी देने का पंजाब सरकार का फैसला गैर कानूनी है। राज्य को यह अधिकार ही नहीं है वह जीएम मक्के के परीक्षण का मंजूरी दे।''

ये भी पढ़ें-शहद के निर्यात पर असर डालेगी जीएम सरसों

उन्होंने कहा कि अंतराष्ट्रीय बीज कंपनियों के दबाव में देश के कुछ कृषि वैज्ञानिक जीएम फसलों को बढ़ावा देने में लगे हैं लेकिन जीएम फसलों से कृषि को फायदा कम और नुकसान ज्यादा होगा पंजाब में साल 2010 में अकाली-बीजेपी की सरकार ने जीएम मक्का के परीक्षणों पर कुछ किसान संगठनों के विरोध के कारण ठंडे बस्ते में डाल दिया था लेकिन पंजाब की वर्तमान कांग्रेस सरकार ने इसे मंजूरी दी है। पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बीएस ढिल्लो ने कहा '' जीएम मक्का का परीक्षण इसलिए किया जा रहा है कि आने वाले समय में हम मक्का की अच्छी किस्में तैयार कर सकें। ''

पिछले दिनों भारत सरकार के वन एंव पर्यावरण मंत्रालय के अंतगर्त आने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) ने जेनेटिकली मोडिफाइड सरसों के व्यवसायिक इस्तेमाल को लेकर अपनी सिफारिश भेजी थीं। माना जा रहा है कि जल्द ही पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिलने के बाद जीएम सरसों की देश में व्यवसायिक खेती शुरू हो जाएगी लेकिन इसका भी भारी विरोध हुआ था। ऐसे में जीएम मक्के के परीक्षण को लेकर भी विरोध शुरू हो गया है।

ये भी पढ़ें- खीरे, बादाम और सरसों पैदा होने में मधुमक्खियों का भी हाथ, जानिए ऐसी पांच बातें

जीएम फसलों की वकालत कर रहे कृषि वैज्ञानिकों का जहां दावा है कि जीएम फसलों से उत्पादकता बढ़ती है इस फसल की प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है, वहीं जीएम फसलों का विरोध कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि जीएम फसलों का स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा, इस पर विस्तृत और पूरा अध्ययन किए बना ही इसे मंजूरी दी जा रही है, जो गलत है।

जीएम फसलों का देश में पिछले कई दशक से विरोध हो रहा है। देश में अभी तक केवल जीएम फसलों के रूप में बीटी काटन की ही व्यवसायिक खेती हो रही है। भारत में साल 2003 में बीटी काटन की व्यवसायिक खेती को मंजूरी मिली मिली थी। बीटी काटन से देश के कपास उत्पादक किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा इसको लेकर संसद की कृषि मामलों की स्थायी समिति ने संसद में 37वीं रिपोर्ट में काफी कुछ कहा था।

''कल्टीवेशन आफ जेनेटिक माडीफाइड फूड क्राप- प्रास्पेक्ट्स एंड इफेक्ट्स '' नामक इस रिपोर्ट में बताया गया है कि बीटी काटन की व्यवसायिक खेती करने कपास उत्पादक किसानों की माली हालत सुधरने की बजाया बिगड़ गई। बीटी काटन की खेती में किसानों को अधिक लागत लगानी पड़ी। बीटी काटन में कीटनाशकों को अधिक प्रयोग करना पड़ा। इसके साथ ही बीज के लिए किसान बीज कंपनियों पर निर्भर हो गए और कर्ज में डूब गए।

ये भी पढ़ें-मक्का उगाने वाले इलाकों में भी बढ़ रही है पॉपकार्न की मांग, कस्बे-कस्बे घूम रही हैं गाड़ियां

मजदूर किसान शक्ति संगठन के निखिल डे कहना है कि जीएम फसलों को अपनाना मतलब प्रकृति को बदलना है। यह देश की खेती-किसानी को बर्बाद कर देगा। जीएम फसलों से खेत की उर्वरा शक्ति भी बर्बाद होगी। उन्होंने बताया कि जीमए फसलों को लेकर दावा किया जाता है कि इनमें बीमारियों नहीं लगेंगे लेकिन बीटी काटन का अनुभव बताता है कि जीएम में तरह-तरह की बीमारियां लगती हैं और उनको दूर करने के लिए अधिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करना पड़ता है।

जीएम फसलों की खेती से मधुमक्खियों के जीवन पर खतरा उत्पन्न हो सकता है। ऐसे में इसके विरोध में मधुमक्खी पालक किसान भी हैं। भारतीय मधुमक्खी पालक संघ के अध्यक्ष देवव्रत शर्मा ने एक रिपोर्ट का हवाल देते हुए बताया कि जीएम काटन की जहां खेती हो रही हैं वहां से मधुमक्खियां समाप्त हो गई हैं। अंतराष्ट्रीय संगठन ''जीएम वाच '' ने एक शोध रिपोर्ट को प्रकाशित करते हुए बताया है कि जीएम फसलों को कीटरोधी बनाने के लिए ग्लाइफोसेट का इस्तेमाल किया जाता है, जो मधुमक्खियों के लिए घातक है।

           

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.