बायो डिकंपोजर से खाद बन रहा खेत का कचरा, मंगाने के लिए इन नंबरों पर करिए कॉल

ज्यादातर देखने में आता है कि खास तौर पर पुवाल वगैरह तो खेत में ही जला दिया जाता है, जिससे सिर्फ खेत को नुकसान ही होता है। फसल अवशेषों को जलाने से खेत के लाभदायी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं, इससे खेत को दोहरा नुकसान होता है।

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बायो डिकंपोजर से खाद बन रहा खेत का कचरा, मंगाने के लिए इन नंबरों पर करिए कॉल

मनीष अग्रहरि

देश में सदियों से रवायत रही है कि अज्ञानता के कारण किसान भाई खेत के फसल अवशेषों को कचरा समझकर या तो खेत में ही जला देते हैं या फिर उन्हें पशुओं को खिलाने के काम में लेते हैं। ज्यादातर देखने में आता है कि खास तौर पर पुवाल वगैरह तो खेत में ही जला दिया जाता है, जिससे सिर्फ खेत को नुकसान ही होता है। फसल अवशेषों को जलाने से खेत के लाभदायी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं, इससे खेत को दोहरा नुकसान होता है। एक ओर जहां लाभदायी सूक्ष्म जीव मर जाते हैं, दूसरी ओर खेत की मिट्टी इन अवशेषों में पाए जाने वाले महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से महरूम हो जाती है।

अवशेषों को जला देने से पर्यावरणीय नुकसान सबसे ज्यादा है, हाल के वर्षों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में धुंध के कारण हुई फजीहत की जड़ फसल अवशेष को ही माना गया। पर्यावरणीय समस्याओं को देख्रते हुए साल 2015 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने जो आदेश दिया है, उसके अनुसार सभी तरह के सीमांत, लघु और बड़े किसानों पर पर्यावरण शुल्क के तौर पर 15 हजार रुपए तक जुर्माना और जेल दोनों का प्रावधान है।


मौजूदा समय में सबसे बड़ी समस्या इन अवशेषों को बिना जलाए ख्रेत में मिलाना है, क्योंकि ऐसी मशीनें जो अवशेषों को खेत में मिला सके बहुत मंहगी हैं। दूसरा अवशेषों का डिकंपोजीशन (अपघटन) यूरिया आदि के मिलाने पर भी काफी समय लेता है।

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नतीजतन देश की उर्वरक बनाने वाली सबसे बड़ी सहकारी कंपनी इफको की फूलपुर (इलाहाबाद) स्थित सहयोगी संस्था कोऑपरेटिव रूरल डेवलपमेंट ट्रस्ट (कोरडेट) ने एक नायाब बायो डिकंपोजर का व्यावसायिक उत्पादन शुरू किया है, जो किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है। यह बायो डिकंपोजर न केवल सस्ता है, बल्कि बहुत ही जल्द फसल के अवशेषों को पूरी तरह से अपघटित (डिकंपोज)कर देने में सक्षम है।

क्या है बायो डिकंपोजर

एक एैसा सूक्ष्म मित्र फंफूद (फंगस) जिसके अंदर फसल अवशेषों के लिग्निन युक्त सेल्यूलोज को सड़ाने की भरपूर कूवत हेती है। दरअसल फसलों के अवशेषों के न विघटित हो पाने का एक प्रमुख्र कारण फसलों पर लिग्निन युक्त सेल्यूलोज का आवरण का पाया जाना है, जो कि बहुत ही कठोर होता है, और ज्यादातर अवशेषों के ऊपरी हिस्से में पाया जाता है। कोरडेट द्वारा बनाए गए बायो डिकंपोजर में ऐसा फंफूद है, जो जटिल लिग्निनयुक्त सेल्यूलोज को सड़ाने (अपघटित) करने में पूरी तरह सफल है।

कैसे होगा इसका इस्तेमाल

इसका प्रयोग मुख्यतः तीन तरीके से होता है। पहला सीधे ख्रेत में, दूसरा गोबर कंपोस्ट गड्ढे में, तीसरा बागों में इकट्ठा हुई पत्तियों पर छिड़काव कर भारी मात्रा में कार्बनिक ख्राद प्राप्त की जा सकती है।

ख्रेतो में प्रयोग करने के लिए एक एकड़ ख्रेत के लिए 200 लीटर पानी, 2-3 किलोग्राम गुड़ का घोल व 20 ग्राम बायो डिकंपोजर पर्याप्त होता है। सबसे पहले ड्रम में 200 लीटर पानी भर लें,उसमे बताई गई मात्रा में गुड़ का घोल मिलाये, इसके बाद बायो डिकंपोजर की बताई गई मात्रा अच्छी तरह से मिला देना है। सावधानी यह रख्रना है कि इस ड्रम को ढ़क्कन से ढ़क कर रख्रें और तैयार न होने तक प्रतिदिन किसी लंबे डंडे से 1-2 बार चलाते रहना है। 2-3 दिनों के अंदर इसमें फंगस की बढ़वार शुरू हो जाती है। उपरोक्त घोल को ख्रेत में सिंचाई से पहले या सिंचाई के साथ एक एकड़ क्षेत्र में प्रयोग कर दें। आप देखेगें कि खेत में जहां-जहां फसल अवशेष थे उनका रंग काला/भूरा हो जायेगा।ध्यान देने वाली बात यह है कि ज्यादा तापमान और आर्द्रता पर यह सर्वाधिक वृद्धि करते हैं।


गड्ढे में प्रयोग करने के लिए बताए गए विधि द्वारा 200 लीटर घोल को घूर गड्ढे में 15-30 दिन के अंतर पर डाल कर मिला देना चाहिए। गड्ढा भरने के 50 दिन के अंदर इस विधि से उच्च कोटि की कार्बनिक ख्राद तैयार हो जायेगी।

बागों में इसके प्रयोग के बावत कोरडेट (फूलपुर) के जैव उर्वरक इकाई के प्रबंधक डॉं. एचएम शुक्ला बताते हैं, "तैयार 200 लीटर घोल का पर्णीय छिड़काव विधि से उद्यानिक फसलों व अन्य फसलों में भी शुरुआती अवस्था में प्रयोग किया जा सकता है, जिसमें फसल अवशेषों के अतिरिक्त फसल सुरक्षा भी मिलेगी। पेड़ों की पत्तियों के ढ़ेर में भी इसका प्रयोग करने से कम समय में अपघटित कराकर कार्बनिक ख्राद बनाया जा सकता है।"

क्या होगी सावधानी

इसका भण्डारण सदैव धूप से दूर ठण्डे स्थानों पर ही करना चाहिए। ठण्डे स्थानों पर रख्रने का प्रमुख्र कारण यह है कि बायो डिकंपोजर में सूक्ष्म जीव (फंगस) पाए जाते हैं। अत्याधिक तापक्रम के कारण उनके मरने का ख्रतरा होता है। यदि इसमें मौजूद सूक्ष्म जीव ही मर गए तो फिर बायो डिकंपोजर डालने का कोई फायदा नहीं होगा।

कहां मिलेगा

इस संबंध में कार्डेट (फूलपुर) के जैव उर्वरक इकाई के सहायक प्रबंधक राजेश कुमार सिंह बताते हैं, "बायो डिकंपोजर समेत इफको के अन्य सभी जैविक उत्पादों को किसान अपने नजदीकी किसान सेवा केन्द्र या कोऑपरेटिव सोसाइटी/पैक्स से प्राप्त कर सकते हैं। अगर फिर भी मिलने में कोई समस्या है तो किसान या व्यवसायी सीधे हमारे यहॉं संपर्क कर सकते हैं।"

बोले माहिर : बायो डिकंपोजर की महत्ता पर कार्डेट (फूलपुर) के प्रधानाचार्य डॉं. मनबोध प्रसाद कहते हैं, "पुवाल समेत अन्य फसल अवशेषों का अपघटन न हो पाना एक प्रमुख समस्या है। हाल के सालों में अवशेषों के जलाए जाने से एक बड़े पर्यावरणीय ख्रतरे का हम सब सामना कर रहे हैं। ऐसे में हमारा बायो डिकंपोजर न केवल उपयोग में सरल है, बल्कि पर्यावरण का संरक्षक और सबसे सस्ता (महज 15.75 रुपये में 20 ग्राम) है, जो एक एकड़ के लिए पर्याप्त है। किसानों को इसे अपना कर अपशिष्ट निपटान करते हुए भूमि की उर्वरा शक्ति में जरूर वृ़द्धि करनी चाहिए।"

प्रमुख्र अवशेषों में एनपीके की मात्रा (प्रतिशत में)

फसल अवशेष

नत्रजन

फास्फोरस

पोटाश

गेहूं का भूसा

0.53

0.10

1.10

जौ का भूसा

0.57

0.26

1.20

गन्ने की पत्तियां

0.35

0.10

0.60

गन्ने की खोई

2.25

0.12

-

धान का पुवाल

0.36

0.08

0.70

सरसो का तना

0.57

0.28

1.40

मक्का की कड़वी

0.47

0.57

1.65

बाजरे की कड़वी

0.65

0.75

2.50

मटर की सूखी पत्ती

0.35

0.12

0.36

कचरे में ही भरा है कंचन

किसान फसल अवशेषों को प्रायः कचरा समझ कर जला देते हैं मगर वही कचरा यदि खेतों में मिला दिया जाये तो किसी कंचन से कम नहीं है। ऊपर दी गई सारणी से यह एकदम स्पष्ट हो चुका है। फसल अवशेषों से खेत को कई पोषक तत्व मिलते हैं साथ ही मिट्टी में जीवांश कार्बन की मात्रा में भी वृद्धि हो जाती है। मृदा में जलधारण क्षमता एवं सूक्ष्म जीवों की मात्रा में भी वृद्धि हो जाती है। इन सबसे इतर मिट्टी में अनेक तरह से भौतिक, जैविक एवं रासायनिक सुधार होता है।

दूसरी ओर एक सर्वेक्षण के मुताबिक खुले में 1 टन पराली जलाने से हवा में 70 फीसदी तक कार्बन डाईआक्साइड, 7 फीसदी तक कार्बन मोनोआक्साइड, 2 फीसदी तक नाईट्रोजन आक्साइड व 0.66 फीसदी तक मिथेन गैस उत्पन्न होती है, जो कि मनुष्य के साथ ही साथ समूचे जैव, अजैव जगत के लिये ख्रतरा पैदा कर रही है।

बायो डिकंपोजर से संबंधित विस्तृत जानकारी पाने के लिये आप निम्न पते और दूरभाष नंबर पर संपर्क कर सकते हैं।

प्राधानाचार्य,

कोऑपरेटिव रूरल डेवलपमेंट ट्रस्ट (कोरडेट)

मोतीलाल नेहरू फारमर्स ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, इफको, फूलपुर, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश

फोन न.: 05332-25337, 253799, 7897740877, 9236041615 पर सीधे संपर्क किया जा सकता है।

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