उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े आंवला उत्पादक जिले में क्यों घट रहा आंवले की खेती का रकबा?

पिछले कुछ वर्षों में यहां पर आंवले की खेती का क्षेत्रफल कम होता जा रहा है, इस बार बीमारी से भी आंवला किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है।

Divendra SinghDivendra Singh   12 Nov 2020 4:47 PM GMT

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उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े आंवला उत्पादक जिले में क्यों घट रहा आंवले की खेती का रकबा?

प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)। आंवला की खेती के लिए देश भर में मशहूर प्रतापगढ़ जिले के बहुत से किसान आंवले की बाग काटकर दूसरी फसलों की खेती करने लगे हैं और जो किसान आंवले की खेती कर रहे है, इस बार उन्हें भी काफी नुकसान उठाना पड़ा है।

यहां पर आंवले में फल आते ही बाहर से व्यापारी आकर पूरी बाग खरीद लेते हैं, कुछ किसान खुद ही फल तुड़वाकर बेचते हैं। इस बार भी अच्छा फल आया था, लेकिन अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में ज्यादातर बाग में फल सड़न रोग लग गया है, जिससे फल पेड़ों से गिर गए।


प्रतापगढ़ के सदर ब्लॉक के गोड़े गाँव के ज्यादातर किसान आंवले की खेती करते हैं, यहां मनोज सिंह बताते हैं, "इस बार फल तो अच्छा आया था, लेकिन बहुत-बहुत छोटे फल लगे थे, पिछले महीने फल काले पड़कर गिरने लगे, हर साल ही बीमारी लगती थी, लेकिन इस बार ज्यादा बीमारी लग गई, बहुत नुकसान हो गया। बहुत से व्यापारियों ने तो फल ही नहीं तोड़ा ऐसे ही छोड़कर चले गए। फल तोड़ने में जितनी मजदूरी लगती, उतना भी फायदा नहीं होता। इसीलिए हमारे बहुत से लोगों ने बाग काट दी और अब दूसरी खेती कर रहे हैं।"

फल सड़न (पेस्टेलोशिया क्रुएंटा) अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से नवंबर तक लगती है, इसमें फलों में भूरे रंग के धब्बे हो जाते हैं। ये धब्बे धीरे-धीरे बढ़ते हैं और फल पूरी तरह से सड़कर गिर जाते हैं।

उद्यान विभाग, उत्तर प्रदेश के अनुसार पहले प्रतापगढ़ जिले के सदर, संडवा चंद्रिका, पट्टी जैसे ब्लॉक में करीब 12,000 हेक्टेयर में आंवले की खेती होती थी, जो अब लगभग 7,000 हजार हेक्टेयर ही बची है।


प्रतापगढ़ में आंवले के उत्पादन और बिक्री में आ रहीं परेशानियों में प्रमुख बिक्री की जगह, मार्केटिंग, तकनीकी प्रशिक्षण जैसी परेशानियां शामिल हैं। साल 1991 में प्रतापगढ़ में आंवला विभाग बनाकर आंवला विकास अधिकारी का पद भी बनाया गया था, लेकिन साल 2003 में सह पद समाप्त करके इसकी जिम्मेदारी उद्यान विभाग को सौंप दी गई।

जिले के ज्यादातर किसान अपनी बाग काट रहे हैं। जिला मुख्यालय से लगभग पांच किमी. दूर सदर ब्लॉक के गोड़े गाँव के किसान ज्वाला सिंह अपने क्षेत्र के बड़े किसानों में गिने जाते हैं, उनके पास 25 बीघा आंवले की बाग थी, लेकिन पांच साल पहले उन्होंने 18 बीघा बाग काटकर उसमें केला लगा दिया गया। वो बताते हैं, "पहले कम लोग थे, अगर आंवला सस्ता भी बिकता था, तो नुकसान नहीं होता था। अब मार्केट भी देखना भी होता है और फायदा नुकसान भी देखना होता है।"

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़, रायबरेली, सुल्तानपुर, जौनपुर में आंवले की खेती होती है। प्रतापगढ़ में सबसे ज्य़ादा आंवला पैदा होता है। जिले के उद्यान विभाग के अनुसार 16 ब्लॉकों में लगभग 7,000 हेक्टेयर में आंवले की खेती होती है, उत्तर प्रदेश के कुल आंवला उत्पादन में प्रतापगढ़ की कुल भागीदारी 80 फीसदी है। यहां हर साल आठ लाख कुंतल आंवले का उत्पादन होता है।


केंद्र सरकार ने 'एक जिला-एक उत्पाद' (One District One Product-ODOP) में प्रतापगढ़ के आंवले को भी जोड़ा गया है, जिसके तहत यहां के किसानों के साथ ही छोटे-बड़े कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना है। लेकिन किसानों की माने तो उन्हें अभी तक इस योजना को कोई लाभ नहीं मिला है।

आंवला उत्पादक संघ के अध्यक्ष और आंवला किसान अतेंद्र सिंह कहते हैं, "पहले जिले में 12,000 के करीब आंवले की खेती होती थी, फिर 10,800 क्षेत्रफल हो गया, इस समय आंवले की खेती का क्षेत्रफल घटकर छह हजार हेक्टेयर के करीब आ गया है। जब किसानों को कोई फायदा ही नहीं हो रहा है तो आंवले की बाग रखकर क्या करेंगे। इस बार किसानों को कुछ अच्छा रेट मिला भी तो इसलिए मिला है कि राजस्थान में भी इस उत्पादन कुछ कम हुआ है। इसलिए बहुत से राजस्थान के व्यापारी भी यहीं आ गए।"

वो आगे कहते हैं, "ओडीओपी में आंवला आ गया, लेकिन इससे किसानों का क्या फायदा पहले भी बाहर से व्यापारी आते थे, अभी भी व्यापारी आंवला खरीदकर ले जाते हैं। लोकल स्तर पर किसानों की कोई मदद नहीं मिलती।"

एपीडा के अनुसार, देश में सबसे अधिक आंवले का उत्पादन उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है, उसके बाद मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्य आते हैं। उत्तर प्रदेश में 384.32 हजार टन आंवले का उत्पादन होता है, जो देश के कुल उत्पादन का 35.79 प्रतिशत है।


प्रतापगढ़ के जिला उद्यान अधिकारी, अनिल कुमार दुबे कहते हैं, "किसान कहते हैं कि उनका नुकसान हो गया है, जबकि किसान आंवले की बाग की न के बराबर देखभाल करते हैं। यहां पर ज्यादतार बाग बहुत पुराने हो गए हैं, पेड़ पुराने हो गए हैं तो फल भी कम लगते हैं। आंवले के बाग को भी दूसरी फसलों की तरह देखरेख की जरूरत पड़ती है, लेकिन किसानों ने बस बाग लगा दिया है।"

वो आगे कहते हैं, "इस बार बाग में कई तरह के रोग लग गए और फलों का आकार भी छोटा रह गया। किसानों को समय-समय पर हम बचाव की जानकारी भी देते रहते हैं, लेकिन वो देखभाल ही नहीं करते, जिसकी वजह से उत्पादन भी कम होता है।"


आंवले की बाग के साथ ही प्रतापगढ़ में सैकड़ों की संख्या में आंवले से अचार, मुरब्बा, कैंडी जैसे प्रोडक्ट बनाने की प्रोसेसिंग यूनिट भी लगी है। यहां से देश भर में लगने वाले मेले और प्रदर्शनियों में आंवले के उत्पाद बेचने जाते हैं। लेकिन कोरोना के बाद से लॉकडाउन और इतने महीने बीतने के बाद भी इस बार मेला और प्रदर्शिनयों में स्टॉल न लगने से यहां के लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

प्रयागराज-फैजाबाद मार्ग पर पुष्पांजलि ग्रामोद्योग सेवा समिति भी उन्हीं प्रोसेसिंग यूनिट्स मे से एक है। यहां के मार्केटिंग हेड चंद्र प्रकाश शुक्ला बताते हैं, "साल भर हमारे स्टॉल अलग-अलग प्रदेशों में लगते रहते हैं, इस बार आंवले से बने प्रोडक्ट की मांग भी काफी बढ़ गई है। लेकिन बाहर न जा पाने के कारण नुकसान हुआ है, लेकिन बाहर से व्यापारी आ रहे हैं। मार्च के बाद से कुछ महीनों में तो बिक्री बिल्कुल ठप हो गई थी, अब जाकर कुछ सामान्य हो पायी है।"

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