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कम बारिश और सूखे जैसे हालात से कश्मीरी सेब उत्पादन पर पड़ा असर

घाटी में 3 लाख 38 हजार हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल में खेती होती है, जिसमें से 1 लाख 62 हजार हेक्टेयर जमीन में सेब की खेती होती है। मार्च और अप्रैल के महीनों में भरपूर बारिश फसलों के लिए काफी अहम है। लेकिन इस साल बारिश कम हुई है, जिससे किसानों का नुकसान हो रहा है।
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मुदस्सिर कुलू, हिर्रा अजमत

श्रीनगर (जम्मू कश्मीर)। इस साल मार्च के दूसरे हफ्ते में बशीर अहमद भट का बाग फूलों से लदा हुआ था। बंपर फसल होने की उम्मीद से वह काफी खुश था। उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले के इस किसान को तब शायद पता ही नहीं था कि अगले दो हफ्तों में आधे से ज्यादा फूल झड़ जाएंगे और कई पेड़ सूख जाएंगे।

भट ने गाँव कनेक्शन को बताया, “सूखे की वजह से मेरे बाग के आधे से ज्यादा फूल मुरझा गए। तापमान में जल्दी बढ़ोतरी से किसानों को फायदा होता, लेकिन हमें कुछ बारिश की भी जरूरत थी।”

भट के पास करीब एक हेक्टेयर जमीन है, जिससे उन्हें 5 लाख रुपये के सेब मिलने चाहिए थे। उन्होंने बताया, “लेकिन हमने इस साल तीन लाख रुपये से भी कम कमाया क्योंकि सेब के पेड़ कम बारिश की वजह से खराब हो गए थे।”

भट का यह अकेला मामला नहीं है। कश्मीर के हजारों किसान सूखे की वजह से नुकसान का सामना कर रहे हैं, जो घाटी में मार्च के महीने से जारी है और जून तक जारी रहेगा।

बागवानी कश्मीर की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है और यह केंद्र शासित प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में आठ प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है। बागवानी विभाग कश्मीर के आंकड़ों के मुताबिक करीब सात लाख परिवार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस सेक्टर से जुड़े हैं। घाटी में 3 लाख 38 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि फलों की खेती के अधीन है। जिसमें से 1 लाख 62 हजार हेक्टेयर में सेब की खेती होती है। सिंचाई की खराब सुविधा होने की वजह से, किसान अपने पेड़ों को पानी देने के लिए बारिश पर बहुत ही ज्यादा निर्भर हैं।

मध्य कश्मीर में अपने बगीचे में सूखे फूलों की जांच करता एक किसान। फोटो: मुदस्सिर कुलू

मध्य कश्मीर में अपने बगीचे में सूखे फूलों की जांच करता एक किसान। फोटो: मुदस्सिर कुलू

मध्य कश्मीर के गांदरबल जिले के 55 वर्षीय किसान मेराज अहमद ने गांव कनेक्शन को बताया, “मार्च और अप्रैल में कम बारिश ने हमारी फसल को काफी हद तक प्रभावित किया है।” उन्होंने बताया, “मार्च में तापमान के बढ़ जाने की वजह से फल जल्दी अंकुरित हो गए। फिर अप्रैल में, तापमान में अचानक गिरावट आगई। हम बाग की सिंचाई नहीं कर सके जिससे पेड़ सूख गए। अनिश्चित मौसमी हालात ने इस साल फसल उत्पादन को काफी हद तक प्रभावित किया है।”

अहमद ने बताया कि इस साल सूखे और कीटों की वजह से उन्होंने अपने डेढ़ हेक्टेयर के बाग से प्रति पेड़ 40 से अधिक सेब की फसल खो दी है। किसान ने बताया, “मैंने इस साल चार लाख रुपये के सेब बेचे हैं। अगर पर्याप्त बारिश होती, तो मुझे कम से कम सात लाख रुपये मिलते।”

मामले को और बदतर बनाने के लिए, सूखे जैसे हालात के बाद, पिछले महीने केंद्र शासित प्रदेश में अचानक बाढ़ आ गई। प्रशासन ने राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष मानदंडों के तहत जम्मू कश्मीर में 19 जून से 22 जून तक “असामयिक” हिमपात/भारी बारिश की वजह से अचानक बाढ़ आने की वजह से राज्य विशिष्ट प्राकृतिक आपदा घोषित किया है।

तापमान में जल्दी वृद्धि के कारण इस साल की शुरुआत में कश्मीर के ऊपरी इलाकों में बर्फबारी हुई। फोटो: इरफान रशीद

तापमान में जल्दी वृद्धि के कारण इस साल की शुरुआत में कश्मीर के ऊपरी इलाकों में बर्फबारी हुई। फोटो: इरफान रशीद

कम बारिश फसल को करती है प्रभावित

जम्मू-कश्मीर मौसम विभाग के निदेश, सोनम लोटस ने गाँव कनेक्शन को बताया कि घाटी में इस साल औसत सामान्य वर्षा के मुकाबले कम वर्षा हुई है।

लोटस ने बताया, “बारिश की कमी ने खेती और बागवानी क्षेत्रों को प्रभावित किया। इसके अलावा, हमने तापमान के जल्दी बढ़ने की वजह से इस साल ग्लेशियरों को जल्दी पिघलते हुए भी देखा है। इसकी वजह से कई क्षेत्रों में पानी की कमी भी हुई है।”

लोटस के अनुसार, इस साल 1 मार्च से 21 मार्च के बीच, कश्मीर में 209 मिमी की सामान्य औसत वर्षा के मुकाबले सिर्फ 43 मिलीमीटर ही बारिश हुई है, जो 80 प्रतिशत तक कमी को दर्शा रहा है, जिससे सूखे जैसे हालात पैदा हो गए हैं। उन्होंने बताया, “इस अवधि में बारिश सेब और क्षेत्र की अन्य फसलों के लिए काफी अहम थी”

जम्मू-कश्मीर में 2022 के पहले पांच महीनों में केवल 345 मिमी बारिश हुई, जहां 559 मिमी की औसत सामान्य बारिश होनी चाहिए थी। मौसम विभाग के निदेशक ने बताया कि यह लगभग 40 प्रतिशत की कमी को दर्शाता है।

मौसम की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अप्रैल के दूसरे सप्ताह में बागवानी विभाग ने एडवाइजरी जारी कर किसानों को तुरंत अपने बागों की सिंचाई करने की सलाह दी थी।

गांदरबल के सेब किसान अहमद ने बताया, “नलकूप जैसी सिंचाई की सुविधाएं सीमित किसानों के पास ही उपलब्ध हैं।” उन्होंने बताया कि वह खेती छोड़ने पर विचार कर रहे हैं क्योंकि खराब मौसम और बारिश की कमी की वजह से उन्हें बार-बार नुकसान हो रहा है।

इस साल कम वर्षा के कारण झेलम में जल स्तर में काफी गिरावट देखी गई है। फोटो: मुदस्सिर कुलू

इस साल कम वर्षा के कारण झेलम में जल स्तर में काफी गिरावट देखी गई है। फोटो: मुदस्सिर कुलू

कश्मीर विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के जूनियर वैज्ञानिक अख्तर एच मलिक के अनुसार, “इस साल फूल जल्दी आए थे, लेकिन बारिश की कमी की वजह से सब मुरझा गए। फलों का उत्पादन फूलों पर निर्भर है, और इस बार उत्पादन प्रभावित हुआ है।”

फल विज्ञान विभाग, शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कश्मीर (SKUAST-K) के सहायक प्रोफेसर अब्दुल रऊफ मलिक ने मलिक का समर्थन किया और बताया: “सेब के बागों के शुरुआती फूल सीधे प्रचलित तापमान से संबंधित थे।”

इस साल मई में, कश्मीर सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग ने एक एडवाइजरी जारी कर उत्तरी कश्मीर में किसानों को सूखे के कारण धान की बुवाई से बचने के लिए कहा था।

उदाहरण के लिए, पुलवामा के रहने वाले मोहम्मद अमीन ने अपने सामान्य धान के बजाय दाल और मक्का बोने का फैसला किया। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया,”चावल के लिए अच्छी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, बड़े नुकसान से बचने के लिए हमने ऐसा किया है।”

कश्मीर के कृषि निदेशक मोहम्मद इकबाल चौधरी ने बताया कि इस साल सूखे की वजह से धान की फसल का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ है। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “फसलों की कटाई के बाद हमें सही नुकसान का पता चलेगा। हमने इस साल बहुत सारी सलाह जारी की, जिससे कई किसानों को नुकसान से बचाया गया।”

बदलते मौसम का मिजाज

इस साल मार्च में, जम्मू और कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में अधिकतम तापमान 20.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था, जो 2004 के बाद से सबसे गर्म था। जबकि, उस महीने का न्यूनतम तापमान 6.7 डिग्री सेल्सियस था, जो कि 131 साल में अब तक का सबसे अधिक तापमान था। विशेषज्ञ असमय मौसम के लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहराते हैं।

अप्रैल 2022 में लू जैसे हालात देखे गए और झेलम नदी और नल्लाह का जलस्तर काफी गिर गया। जब ऐसा हुआ तो ग्लेशियर जल्दी पिघलने लगे, जिसके नतीजे में कश्मीर के कई हिस्सों को पानी की गंभीर कमी का सामना करना पड़ा।

श्रीनगर में 21 जून को पिछले 48 सालों का सबसे ठंडा जून दिन दर्ज किया गया। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, तापमान सामान्य से 14.2 डिग्री सेल्सियस कम रहा।

कश्मीर विश्वविद्यालय के भू-सूचना विज्ञान विभाग के वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर इरफ़ान राशिद ने गांव कनेक्शन को बताया, “बदलते मौसम की गतिशीलता कृषि और बागवानी क्षेत्र को बहुत प्रभावित करेगी। लंबे समय तक सूखे से लेकर ज्यादा बारिश तक, 2022 अब तक का सबसे सख्त साल पर रहा है। यह स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की तरफ इशारा करता है।”

विशेषज्ञ ने बताया, “आने वाले सालों में ग्लेशियरों में लगातार गिरावट पूरे भारतीय हिमालयी क्षेत्र को प्रभावित कर सकती है। इससे कृषि उत्पादकता में कमी, जल विद्युत उत्पादन में गिरावट, शीतकालीन पर्यटन में गिरावट और पेयजल की कमी हो सकती है।”

SKUAST-K के सहायक प्रोफेसर मलिक ने बताया कि देश के कई पहाड़ी राज्य जलवायु परिवर्तन की वजह से तनाव में हैं। उन्होंने बताया, “फूलों के खिलने और फसल के समय में बदलाव पहले से ही देखे जा रहे हैं। अपर्याप्त सर्दी, कम बारिश, पपड़ी बनना और कीटों के हमले सभी जलवायु परिवर्तन के संकेतक हैं।”

कश्मीर में कई वर्षों से अनियमित मौसम का मिजाज देखा गया है, विशेषज्ञों ने इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहराया है।

सूखे की स्थिति के अलावा, घाटी को पिछले महीने अचानक हुई बारिश की वजह से अचानक बाढ़ का भी सामना करना पड़ा। अचानक आई बाढ़ से काफी नुकसान हुआ है। SKUAST-K के मलिक ने बताया, ” चराई वाले इलाके में अचानक बाढ़ आने से खानाबदोश प्रभावित हुए हैं। जब भी तापमान में अचानक बढ़ोतरी या कमी होती है, तो वन्यजीव सहित उस विशेष क्षेत्र की स्थानीय जैव विविधता प्रभावित हो जाती है।” वैज्ञानिक ने बताया,”खराब मौसम की वजह से अचानक आई बाढ़ से उपजाऊ मिट्टी का भी नुकसान हुआ। घास के मैदानों की उत्पादकता और पौधों की विविधता भी प्रभावित हुई है।

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