किसानों के बच्चे भी अब खेती में दिखाएंगे दिलचस्पी, युवाओं का रुकेगा गाँवों से पलायन

Sudha PalSudha Pal   10 July 2018 10:19 AM GMT

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किसानों के बच्चे भी अब खेती में दिखाएंगे दिलचस्पी, युवाओं का रुकेगा गाँवों से पलायन

लखनऊ। जहां एक तरफ किसानों को कभी प्राकृतिक आपदा से तो कभी संसाधनों की कमी की वजह से खेती में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है वहीं इन सब से किसानों के बच्चे भी प्रभावित हो रहे हैं। अब ग्रामीण युवा पारंपरिक खेती को व्यवसाय के रूप में अपनाने से मुह मोड़ रहे हैं। ऐसे में इन युवाओं को खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए 'आर्या' नाम का एक कार्यक्रम पूरे देश में चलाया जा रहा है।

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अश्विनी कुमार (33 वर्ष) के पिता बीरबल सिंह किसान हैं और लगभग 20 साल से खेती कर रहे हैं। वहीं अश्विनी अपने पारंपरिक व्यवसाय (खेती) को न अपनाते हुए एक निजी कंपनी में नौकरी कर रहे हैं। नौकरी के लिए ही उन्होंने अपना गांव छोड़ा और मुज़फ्फरपुर में आकर बस गए। खुर्द गाँव के रहने वाले अश्विनी बताते हैं, "मैं कुछ समय तक तो उनके साथ खेती में लगा रहा लेकिन इसे व्यवसाय बनाने के लिए नहीं सोचा। हमारे यहां लगभग 30 बीघा जमीन पर खेती होती है। खेती का सारा काम पिता जी देखते हैं। मेरे मुताबिक खेती में चढ़ाव-उतार बहुत हैं, कभी नफा तो कभी नुकसान। इस पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहा जा सकता।"

खेती में आ रही कई तरह की समस्याओं, संसाधनों और आधुनिक तकनीकों की कमी, फसल नुकसान और खराब उत्पादन से न केवल किसान ही प्रभावित होता है बल्कि उसका पूरा परिवार भी। यही वजह है कि अब किसान का बेटा किसान नहीं बनना चाहता और दूसरे व्यवसाय की ओर रुख कर रहा है। ऐसे में युवाओं का रुझान बनाए रखने और दूसरे व्यवसाय के लिए गांवों से शहरों की तरफ उनके बढ़ते कदमों को रोकने के लिए 'अट्रैक्टिंग एण्ड रिटेनिंग यूथ इन एग्रीकल्चर' कार्यक्रम की शुरुआत की गई। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की ओर से यह योजना बनाई गई।

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जहां एक केंद्रीय कर्मचारी की न्यूनतम बेसिक सैलरी 18 हजार रुपए है और कुल मिलाकर वो 20 हजार रुपए से ज्यादा कमा लेता है, वहीं यूपी में एक हेक्टेयर की जोत वाले किसान की औसत कमाई केवल 1600 रुपए ही है। इस तरह हम ये कह सकते हैं कि केंद्र सरकार में चपरासी की कमाई किसान से करीब 13 गुना ज्यादा है।

क्या है यह योजना?

एके सिंह ने कहा कि आर्या को पिछले साल 25 राज्यों में 25 केवीके (कृषि विज्ञान केंद्र) के साथ एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लिया गया था। इन सभी केवीके के जरिए हर जिले में लगभग 200-300 युवाओं को चुने हुए क्षेत्रों के बारे में जानकारी देकर उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। आने वाले समय में इसे100 केवीके के साथ जोड़ने की योजना बनाई जा रही है।

क्या है केवीके?

कृषि विज्ञान केन्द्र यानी केवीके एक नवीनतम विज्ञान आधारित संस्था है जिसमें किसानों को कई तरह के प्रशिक्षण दिए जाते हैं जिससे किसान आत्मनिर्भर बन सकें। इन केंद्रों पर उन्हें खेती संबंधी हर जानकारी के साथ तकनीकी ज्ञान भी दिया जाता है। भारत की कृषि और किसानों को विज्ञान से जोड़ने के लिए देश में 645 केवीके खोले गए हैं। वहीं यूपी में इनकी संख्या 68 है। ये केन्द्र देश के सभी जिलों में स्थापित हैं। हर केन्द्र से लगभग 1000 किसान जुड़े हुए हैं।

आईसीएआर के उप महानिदेशक एके सिंह का कहना है, "हम युवाओं को कृषि में रहने के लिए एक मॉडल बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे बाद में कहीं और दोहराया जा सकता है।" उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम सभी तरह के युवाओं के लिए है, ऐसे युवा जिनके पास थोड़ी-बहुत जमीन है और वो भी जो भूमिहीन हैं। एके सिंह ने बताया कि कुछ क्षेत्रों की पहचान की गई है जिसमें युवा थोड़ी लागत से, कम संसाधनों में और बिना किसी नुकसान के डर से खेती से जुड़ सकते हैं। मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन, डेयरी, मत्स्य पालन और मशरूम उत्पादन जैसे कई क्षेत्र चुने गए हैं जिनमें ज्यादा जमीन की भी जरूरत नहीं पड़ती है और मुनाफा भी अच्छा मिलता है।

हरियाणा में गेहूं की खेती से होने वाली औसतन आय 800 रुपए प्रति एकड़ है। इतनी कम आमदनी, या मैं ये कहूं कि ना के बराबर आमदनी होने पर हम क्यों अपेक्षा करते हैं कि युवा खेती से जुड़ा रहे। ऐसा क्यों है कि नौकरीपेशा वेतन पाने वालों को बिना मांगे महंगाई भत्ता दिया जाता है और वहीं किसान को अपनी पैदावार के लिए पर्याप्त मुआवज़ा भी मना कर दिया जाता है?
दिवेंद्र शर्मा, कृषि विशेषज्ञ एवं पर्यावरणविद

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएमओ) की एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 96 फीसदी किसानों का घर केवल खेती पर ही नहीं चल सकता है। भारत में लगभग 12 करोड़ किसान हैं। देश में लगभग 64 फीसदी जमीन खेती की जमीन है, बाकी 67 फीसदी जमीन बंजर है। खेती में जहां किसानों का मासिक खर्च 6223 रुपए है वहीं उसकी महीने भर की औसत आय 3081 रुपए है। इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2012-13 में देश के कुल किसान 9.02 करोड़ थे। इनमें से 3.65 करोड़ किसान अपनी खेती की कमाई से घर नहीं चला सकते थे जबकि 63.5 फीसदी किसानों की आय का मुख्य स्रोत खेती ही है।

किसानों की यह दयनीय स्थिति उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे भारत के पिछड़े राज्यों की है। इसके अलावा 2016 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार भारत के 17 राज्यों के किसान परिवारों की आय मुश्किल से 20,000 रुपए सालाना है, जिसका मतलब है 1,770 रुपए महीना।

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