एटा। आम के पेड़ों पर बौर आने शुरू हो गए हैं, बौर लगने के साथ आम के बागों में कीट एवं रोगों का भी खतरा मंडराने लगता है, ऐसे में सही प्रबंधन से फसल को नुकसान से बचाया जा सकता है।
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प्रदेश में आम के गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए सम सामयिक महत्त्व के कीट एवं रोगों का उचित समय प्रबन्ध बेहद जरूरी है, क्योंकि पेड़ पर बौर निकलने से लेकर फल लगने तक की अवस्था अत्यंत ही संवेदनशील होती है। जिला उद्यान अधिकारी विनोद कुमार शर्मा बताते हैं, “वर्तमान में आम की फसल को मुख्य रूप से भुनगा व मिज कीट तथा खर्रा रोग से क्षति पहुंचाने की सम्भावना रहती है, इन दिनों में आम के बागों में देखभाल बहुत ही आवश्यक है, बागवान को बागों में जब बौर पूर्ण रूप से खिला हो तो उस अवस्था में कम से कम रासायनिक दवाओं का छिड़काव करना चाहिए जिससे पर परागण क्रिया प्रभावित न हो सकें।”
इस तरह आम के पेड़ों को बचा सकते हैं मिज एवं भुनगा कीट से
जिला उद्यान अधिकारी आगे बताते हैं, “आम के बागो में भुनगा कीट कोमल पत्तिया एवं छोटे फलो के रस चूसकर हानि पहुचाते हैं, प्रभावित भाग सुखकर गिर जाता है, साथ ही यह कीट मधु की तरह का पदार्थ भी विसर्जित करता है, जिससे पत्तियों पर काले रंग की फफूंद जम जाती है, फलस्वरूप पत्तियो द्वारा रो रही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया मन्द पड़ जाती है, इसी प्रकार से आम के बौर में लगने वाला मिज कीट मंजरियों एवं तुरन्त बने फलो तथा बाद में मुलायम कोपलों में अंडे देती है, जिसकी सूडी अंदर ही अंदर खाकर क्षति पहुचाती है, प्रभावित भाग काला पड़ कर सूख जाता है।”
भुनगा एवं मिज कीट से निपटने को करें ये उपाय
भुनगा व मिज कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड (0.3 मिली/ली पानी) अथवा डायमेथोएट (2.0 मिली/ली पानी) की दर से घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी जाती है।
खर्रा रोग से इस तरह बचा सकते है आम के पेड़
खर्रा रोग के प्रकोप से ग्रसित फल व डंठलों पर सफेद चूर्ण के समान फफूंद की व्रद्धि दिखाई देती है, प्रभावित भाग पीले पड़ जाते है तथा मंजरिया सूखने लगती है, इस रोग से बचाव के लिए ट्राइडोमार्क 1.0 मिली/ली या डायनोकेप 1.0 मिली/ली पानी की दर से भुनगा कीट के नियंत्रण के लिए प्रयोग किये जाते जा रजे घोल के साथ मिलकर छिड़काव किया जा सकता है।