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कृषि सलाह: लौकी की खेती करने वाले किसान इन बातों का रखें ध्यान, मिलेगा बढ़िया उत्पादन

लौकी की खेती किसान साल भर कर सकते हैं, लेकिन हर मौसम में बुवाई से लेकर कटाई तक कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, तभी बढ़िया उत्पादन मिलता है।
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इस समय कई किसान गर्मियों में बोई जाने वाली लौकी की फसल लगाने की तैयारी कर रहे होंगे, किसानों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं कि लौकी की खेती में किसान ऐसा क्या करें, जिससे उन्हें नुकसान न उठाना पड़े।

किसानों के ऐसे ही कई सवालों के जवाब इस हफ्ते के पूसा समाचार में दिए गए हैं। आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान हर हफ्ते किसानों के लिए पूसा समाचार जारी करता है। संस्थान के शाकीय विज्ञान संभाग के वैज्ञानिक डॉ. जेके रंजन किसानों के ऐसे ही कई सवालों के जवाब दे रहे हैं।

गर्मी के फसल की बुवाई फरवरी माह के आखिर मे मार्च में की जाती है। गर्मी के मौसम मे अगेती फसल लेने लगाने के लिए इसकी पौध पॉली हाउस में तैयार करके इसकी सीधी रोपाई कर सकते हैं। इसके लिए प्लास्टिक बैग या फिर प्लग ट्रे में कोकोपीट, परलाइट, वर्मीकुलाइट, 3:1:1 अनुपात रखकर इसकी बिजाई करते हैं।

इसी तरह से इसकी दिसंबर महीने में बिजाई करके फरवरी महीने में रोपाई कर सकते हैं। बरसात की बुवाई जून माह के आखिर से जुलाई के पहले हफ्ते तक की जाती है।

लौकी की खेती में अच्छा उत्पादन पाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किस्में पूसा नवीन, पूसा सन्तुष्टी, पूसा सन्देश लगा सकते हैं। इस फसल की बिजाई या रोपाई नाली बनाकर की जाती है। जहां तक सम्भव हो नाली की दिशा उत्तर से दक्षिण दिशा मे बनाए और पौध व बीज की रोपाई नाली के पूरब मे करें।

  • गर्मियों मे नाली से नाली की दूरी 3 मीटर
  • बरसात मे नाली से नाली की दूरी 4 मीटर रखें
  • पौध से पौध की दूरी 90 सेंटीमीटर रखें

खेत मे पौधे के 2 से 3 पत्तों की अवस्था में ही लाल कीड़े जिसे हम रेड पंम्पकीन बीटल भी कहते हैं का प्रकोप बहुत अधिक भी होता है। इससे बचने के लिए किसान भाई डाईक्लोरोफाँस की मात्रा 200 एमएल को 200 मिली लीटर पानी में घोल बनाकर 1 एकड़ की दर सें छिड़काव करें (इस कीट को मारने के लिए सूर्योदय से पहले ही छिड़काव करे। सूर्योदय के बाद ये कीट जमीन के अन्दर छिप जाते हैं जहां तक संम्भव हो बरसात में पौधों को मचान बनाकर उगाएं। इससे बरसात में पौधों के गलन की समस्या कम होगी और उपज भी अच्छी होगी।  

इनपुट: अंबिका त्रिपाठी

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