लखनऊ। अगर आप का गांव किसी नदी-नाले के किनारे हैं। या फिर आपके इलाके की जमीन ऊसर, बीहड़ या जलभराव वाली है तो उसे खेती योग्य बनाया जा सकता है। कृषि विभाग इसमें विभिन्न योजनाओं के माध्यम से किसानों की मदद करता है।
उत्तर प्रदेश की जमीन का भी बड़ा हिस्सा ऐसा है जहां परिस्थतियों के चलते किसान न तो खेती कर पाते हैं न बाग लगा बाते हैं। ऐसी जमीनों को पंड़ित दीनदयाल उपाध्याय किसान समृद्धि योजना के तहत सुधारा जा रहा है। अक्टूबर के महीने में लखनऊ में लगे कृषि कुंभ में भूमि संरक्षण अनुभाग ने गन्ना अनुसंधान संस्थान में इसका सजीव प्रदर्शन किया।
“यूपी समेत पूरे देश में लाखों हेक्टेयर ऐसी जमीन है जो विभिन्न कारणों से किसानों के काम नहीं आ पा रही है। ऐसी वो जमीन जो नदी नालों के पास है, बीहड़-बंजर, जलभराव वाली है या ऊबड़-खाबड़ है, हम लोग उसका चयन कर एक योजना बनाकर उसे सुधारते हैं। इसके लिए सरकार प्रति हेक्टेयर 25 हजार रुपए तक खर्च करती है।” डॉ. एसपी सिंह, उपनिदेशक, भूमि संरक्षण अनुभाग, कृषि विभाग उत्तर प्रदेश बताते हैं।
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गाँव कनेक्शन से विशेष बातचीत में डॉ. एसपी सिंह कहते हैं, “हमारी कोशिश है कि खेत का पानी और गांव का पानी गांव में रहे। नदी नालों के किनारे जमीन हर साल बारिश आदि के साथ कट जाती है। हम लोग ऐसी जमीनों में विभिन्न संरचनाओं- जैसे ऊपरी क्षेत्र में कंट्रोल बंड, मध्य क्षेत्र में मार्जिनल बंड और नालों के किनारे पेरीफेरल बांध बनाते हैं। पानी बचाने के लिए जगह-जगह चेक डैम भी बनाते हैं।”
उत्तर प्रदेश में बीहड़, बंजर और समस्याग्रस्त जमीन को कृषि योग्य बनाने के लिए वर्ष 2017 में 5 साल के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय किसान समृद्धि योजना शुरू की गई। अनुभाग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक योजना के तहत वर्ष 2022 तक कुल 1,71,186 हेक्टेयर भूमि का उपचार या सुधार किया जाना है।
इसके लिए राज्य सरकार ने 477.33 करोड़ का बजट रखा है जबकि 9 करोड़ रुपए मनरेगा और 35.13 करोड़ किसान का हिस्सा रखा गया है। योजना के तहत चयनित जमीन को समलत कर छोटे-छोटे खेत, मेड़ बढ़ी, तालाब और चेकडैम बनाए जाते हैं। जिनमें खेती के साथ बागवानी की व्यवस्था बनाई जाती है। संरचनाएं ऐसी होती हैं कि उस इलाके में बाहर का पानी न आने पाए और उस इलाके में पानी धीरे-धीरे जमीन में रिसता हुआ आगे बढ़े।
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भूमि संरक्षण अनुभाग के लखनऊ मंडल में जूनियर इंजीनियर अखिलेश कुमार बताते हैं, “यूपी की 242 लाख हेक्टेयर में से वर्ष 2010 तक 120 लाख हेक्टेयर जमीन समस्याग्रस्त यानि बीहड़, ऊसर, अकृष्य और जलमग्न चिन्हित की गई थी। जिसमें से मार्च 2010 तक 80 लाख हेक्टेयर जमीन का सुधार हो गया था। लेकिन समस्या ये है कि हर साल 25-30 हजार हेक्टेयर जमीन फिर खराब हो जाती है।”
डॉ. एसपी सिंह बताते हैं, “जनसंख्या के अनुपात में जमीन कम हो रही है। जोत छोटी हो रही है। ऐसे में जो जमीन बेकार है उसका कृषि योग्य बनाया जाना बहुत जरूरी है। यूपी में पिछले वर्ष (2017-18) में 17,718 हेक्टयर जमीन उपचारित की गई थी, जबकि 2018-19 के लिए 112.39 करोड़ रुपए से 45,396 हेक्टेयर जमीन को उपचारित करने का लक्ष्य है।”
किसान इस योजना का लाभ कैसे उठा सकते हैं, इसके जवाब में एसपी सिंह बताते हैं, “हर जिले में कृषि विभाग से जुड़े भूमि संरक्षण अधिकारी हैं। किसान सीधे उनसे मिलकर प्रार्थना पत्र दे सकते हैं। दूसरा प्रधान आदि के जरिए भी मिलकर भी किसान अपनी समस्या बता सकते हैं। जिसके बाद भूमि संरक्षण अधिकारी मुआयना करते हैं, जमीन समस्या ग्रस्त मिलने पर उसे प्रोजेक्ट में शामिल किया जाता है।”
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भूमि संरक्षण विभाग पहले वर्ष चयनित जमीन पर काम करता है, दूसरे वर्ष उसे किसान को खेती के लिए दिया जाता है। इस दौरान किसान को उन्नत बीजों के लिए 2500 रुपए प्रति हेक्टेयर का योगदान दिया जाता है। सीतापुर समेत कई जिलों में मनरेगा भी भूमि संरक्षण अनुभाग के साथ मिलकर काम करता है। जिसमें मनरेगा मजदूरों को भूमि सुधार में लगाया जाता है।
डॉ.एसपी सिंह बताते हैं, “बहुत सारे भूमिहीनों को सरकार से पट्टे मिले हैं। लेकिन वो जमीन परती अथवा बंजर है ऐसे किसानों को इस योजना के जरिए फायदा दिलाया जाता है।”सुधारी गई जमीन की जीओ टैंगिग भी की जाती है। देश के पहले कृषि कुंभ में भूमि संरक्षण की प्रदर्शनी को अव्वल प्रदर्शनी का पुरस्कार दिया गया था।
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