लखनऊ। किसान अब खुद से तय कर पाएंगे कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का हिस्सा बनना है कि नहीं। अभी तक बीमा कंपनियां उन किसानों के खाते से प्रीमियम का पैसा पहले ही काट लेती थीं, जिन्होंने या तो फसल ऋण लिया होता था या किसान क्रेडिट कार्ड से कर्ज़ लेते थे।
ऐसे में किसान को पता ही नहीं चलता था कि उसकी फसल का बीमा हो चुका है और उसका प्रीमियम बैंक से पहले ही बीमा कंपनी के पास जमा हो चुका है।
केन्द्रीय कृषि कल्याण मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने बताया कि फसल बीमा योजना को लेकर मिल रही लगातार शिकायतों के बाद सरकार ने ये कदम उठाए हैं।
केन्द्रीय कैबिनेट ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और मौसम आधारित फसल बीमा योजना में कई संशोधन करके इसे किसानों के लिए फायदेमंद बनाने की कोशिश की है। ये बदलाव खरीफ-2020 से लागू होंगे।
नए संशोधनों के बाद बीमा कंपनियों को व्यवसाय का आवंटन तीन साल तक के लिए किया जाएगा। जिन जिलों में 50 प्रतिशत से अधिक सिंचित क्षेत्र होगा उस पूरे जिले को सिंचित माना जाएगा।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर सवाल शुरु से ही उठते रहे हैं, किसानों का इस योजना को लेकर मोहभंग लगतार होता गया। जिसका कारण था कि प्राइवेट बीमा कंपिनयों द़्वारा समय पर क्लेम का भुगतान न करना और कागजी कार्रवाई में फंसना।
भारतीय राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ से जुड़े अभिमन्यु कोहड़ कहते हैं, “इससे पहले बैंक बिना पूछे प्रीमियम काट कर बीमा कंपनियों को दे देती थीं, किसान को पता ही नहीं होता था कि उसकी किस फसल का कितना प्रीमियम जमा हो रहा है।”
अभिमन्यु आगे कहते हैं, “इसे ऐसे समझ सकते हैं कि किसी किसान ने अपने खेत में गेहूं लगाया है, और बीमा कंपनी उसके खेत में गन्ने का बीमा करके उसका प्रीमियम काट लेती थीं। अगर किसान क्लेम लेना भी चाहे तो वो नहीं ले सकता क्योंकि बीमा तो गन्ने का हुआ, और किसान ने गेहूं बोया था।”
वर्ष 2016 में शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अलगे साल ही 2017-18 में इसमें पंजीकरण कराने वाले किसानों की संख्या वर्ष 2015 चल रही बीमा योजना में हुए पंजीकरण से भी कम हो गई।
“इस योजना को हर साल देखें तो बीमा कंपनियों का फायदा बढ़ता जा रहा है, और किसानों क्लेम कम होता जा रहा। यह सिर्फ प्राइवेट बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए किया जा रहा था,” अभिमन्यु बताते हैं।