लखनऊ का दशहरी अपने स्वाद और रंग रूप के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इसके फलों के पक कर तैयार होने के दौरान मौसम खुष्क और गर्म होता था। मई-जून में चलने वाली लू से लखनऊ वासी परिचित हैं और और यही कारण है कि दशहरी की क्वालिटी लखनऊ के आसपास के आसपास के क्षेत्रों में बेहतरीन होती है।
कुछ दशक पहले, अगर जून में बारिश होती थी तो केवल 3-4 से फुवारे आम के बाग का मौसम खुशनुमा बना देते थे। लेकिन पिछले दशक से ही मौसम में परिवर्तन आना प्रारंभ हो गया है और विभिन्न कारणों से मई और जून में भी कई बार बारिश होने लगी। विगत 2 वर्षों से देखा गया है कि जून के महीने में लगभग 8 बार बारिश हुई। इतना ही नहीं बारिश की मात्रा भी काफी अधिक थी। खेतों में पानी भर गया और वातावरण में नमी की अधिकता हो गई।
सामान्यतः आम की क्वालिटी समुद्र तटीय क्षेत्रों और अधिक वर्षा वाले स्थानों पर अच्छी नहीं होती है। पकने के दौरान आम पर कई बार होने वाली वर्षा आम की क्वालिटी के लिए उपयुक्त नहीं। शायद यही कारण है कि लखनऊ और जिन स्थानों पर अच्छी क्वालिटी का काम पैदा होता है वहां फल के पकने के दौरान सामान्यतः वर्षा कम होती है।
वर्षा अधिक होने के कारण फल में मिठास लगभग 30-40 % तक घट जाती है। देखने में फल रसीले जरूर होते हैं लेकिन मिठास में कमी होती है। दशहरी को आमतौर पर चौसा और लखनउआ के मुकाबले बारिश कम पसंद है। दो से तीन बार होने वाली बारिश से दशहरे की क्वालिटी में सुधार जरूर आता है, लेकिन जब इस बारिश की संख्या 5 से ऊपर हो जाती है तो तरह-तरह की समस्याएं होने लगती।
अधिक नमी की अवस्था में एंथ्रेक्नोज और डिप्लोडिया जैसी बीमारियां फल को संक्रमित करती हैं। वातावरण में अनुकूल तापक्रम और नमी के करण बीमारियों के बीजाणु अधिक संख्या में वातावरण में फैल जाते हैं। बागों में संक्रमण बढ़ने से फल तोड़ने के बाद जल्दी सड़ने लगते हैं इसलिए उन्हें अधिक दिन तक नहीं रखा जा सकता है। जबकि वर्षा रहित गर्मी के मौसम में तैयार हुए फल खाने में स्वादिष्ट, देखने में अधिक रंगीन और तोड़ने के बाद अधिक दिन तक रखे जा सकते हैं।
दशहरी और कई किस्मों में यह भी पाया गया है कि आम का फल ऊपर से हरा और साबुत दिखता है लेकिन काटने पर गुठली के पास का भाग गलन रोग से प्रभावित हो जाता है। फल के गूदे में पकने के बाद दृढ़ता कम हो जाती है। गुठली के पास से होने वाली गलन की समस्या इस वर्ष कुछ अधिक पाई गई है। आमतौर पर यह समस्या देरी से तोड़ी गई दशहरी में पाई जाती है। कुछ वर्ष पूर्व जब दशहरी की क्वालिटी बेहतरीन होती थी उस समय भी देर से तोड़े गए फलों में गलन की समस्या पाई जाती रही है।
इस वर्ष के असामान्य मौसम के कारण किस्में बहुत जल्दी फल पकने लगी हैं। जो किस्में जुलाई में पकती थी वह जून में ही तैयार हो गई हैं, लेकिन क्वालिटी में गिरावट आई है। असामान्य वर्षा के वितरण के कारण आम की फसल के जल्दी समाप्त होने के आसार हैं। देर से पकने वाली किस्में जिन पर वर्षा का कम असर होता था वह भी देखने में अनाकर्षक हो गई है।
मई और जून की अत्याधिक गर्मी फल मक्खी जैसे कई कीटों की संख्या को नियंत्रित करने में सहायक थी, अत्याधिक नमी के कारण फल मक्खी की संख्या बागों में बढ़ गई है और फलों को क्षति हो रही है। ऊपर से अच्छे दिखने वाले फलों के अंदर मक्खी के लार्वे में पाए जाते हैं। इस कारण किसानों को फलों को बेचने से पहले बहुत बड़ा भाग छांट कर अलग कर देना पड़ रहा है।
जलवायु परिवर्तन के इस विशेष प्रभाव के कारण उन तकनीक पर शोध करने की आवश्यकता है, जिनके द्वारा फलों की गुणवत्ता को बनाए रखा जा सके। बैगिंग के द्वारा विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में जहां नमी अधिक रहती है इस प्रकार की समस्याओं से निजात पाई गई है।
(डॉ शैलेंद्र राजन, आईसीएआर-केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थानके निदेशक हैं)