क्लस्टर प्रदर्शन कार्यक्रम से बढ़ेगा दलहन उत्पादन
Divendra Singh 4 Feb 2018 1:00 PM GMT

दलहन उत्पादन की जानकारी देने के साथ ही, पोषक तत्व का प्रयोग और खरपतवार नियंत्रण व कीट रोग प्रबंधन की सही जानकारी देने के लिए क्लस्टर प्रदर्शन कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिससे देश में दलहन उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके।
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दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय खाद सुरक्षा मिशन के अंतर्गत किसानों के लिए क्लस्टर प्रदर्शन कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसमें किसानों को दलहन उत्पादन की सही जानकारी दी जा रही है। इसके माध्यम से किसानों को दलहन के उन्नत बीजों की उपलब्धता मृदा परीक्षण, बीज एवं भूमिशोधन पंक्तिबद्ध बुवाई एवं समेकित पोषक तत्व प्रबंधन, खरपतवार कीट रोग प्रबंधन पर किसानों को जागरूक किया जा रहा है। इसी क्रम मे कृषि विज्ञान केंद्र कटिया, सीतापुर द्वारा विकास खण्ड बिसवा के ग्राम समसापुर में कराये गए अरहर के सामूहिक प्रदर्शन के अन्तर्गत प्रक्षेत्र भ्रमण किया।
कार्यक्रम में केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आनन्द सिंह ने कहा कि जो किसान बीज उत्पादन कर रहे है वह अवंछित पौधों तथा प्रजातियों से भिन्न पौधों को खेत से उखाड़कर नष्ट कर दे जिससे बीज की शुद्धता बनी रहे।
केन्द्र के सस्य वैज्ञानिक डॉ. शिशिर कान्त सिंह ने कहा कि खेत में खरपतवार का नियंत्रण करते रहें, जिससे पौधों में पोषक तत्त्वों की उपलब्धता बनी रहे और जड़ों में वायु संचार बना रहे।
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केंद्र के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. डीएस श्रीवास्तव ने सलाह दी कि जिन खेतों में अरहर के पौधों में उकठा रोग के लक्षण दिखाई दे रहे हों उस खेत में सिंचाई ना करें तथा रोग ग्रस्त खेत में कॉपरआक्सीक्लोराइड 45 ग्राम व दो ग्राम स्ट्रेपटोमायसिन प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर जड़ों में प्रयोग करें और फूल आने के समय रस चूसक कीटों से बचाव के लिए नीम का तेल दो मिली. या इमिडाक्लोरोपीड का एक मिली. प्रति ली पानी की दर से प्रयोग करें।
फली बेधक कीट की निगरानी के लिए फेरोमोन ट्रैप दो-तीन प्रति एकड़ लगाएं और सुन्डी दिखाई देने पर एनपीवी. (250 एलई) प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें।
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प्रसार वैज्ञानिक शैलेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि समूह प्रदर्शन का लक्ष्य है कि उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ रोजगार के भी अवसर मिल सकें। सभी किसान भाई आगामी फसल हेतु समय से मृदा परीक्षण कराकर स्वाथ्य कार्ड की संस्तुतिओं के आधार पर ही उर्वरक का प्रयोग करें। जिससे फसलों में प्रयोग किये जाने वाले उर्वरकों पर होने वाले व्यय को कम किया जा सकें।
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