उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड जारी है और मौसम विभाग की ओर से दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और बिहार में रेड अलर्ट जारी किया गया है। इन राज्यों में शीत लहर का प्रकोप जारी रहने की संभावना है। वहीं किसानों को विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी गई है।
मौसम विभाग के अनुसार दिल्ली ने 120 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है और दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में तापमान 02 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला गया है। वहीं आगे भी ठंड का कहर जारी रहने की संभावना जताई गई है। मौसम विभाग ने अगली 03 जनवरी तक पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश, पूर्वोत्तर राजस्थान, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ के कुछ क्षेत्रों में ओलावृष्टि के साथ बारिश की संभावना जताई है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के आंचलिक मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक जेपी गुप्ता ने ‘गांव कनेक्शन’ से बताया, “ठंडक को देखते हुए यूपी में भी रेड अलर्ट जारी किया गया है। अभी शीत लहरों का प्रकोप है और जल्द राहत मिलने की उम्मीद फिलहाल नहीं है। ऐसे में लोगों को सलाह दी जाती है कि शाम होने पर अगर बहुत जरूरी हो तो ही घर से बाहर निकलिए और गर्म कपड़े पहनें। इसके साथ जगह-जगह अलाव की व्यवस्था होनी चाहिए।”
इससे पहले मौसम विभाग ने कई राज्यों में कोल्ड डे की भी चेतावनी जारी की। वहीं कृषि मौसम विज्ञान विभाग की ओर से शीत लहर, ओलावृष्टि और बारिश से अपनी फसलों को बचाने के लिए किसानों को सलाह जारी की गई है।
‘तापमान गिरने से टूट सकती हैं पत्तियां’
महाराष्ट्र के पुणे स्थित कृषि मौसम विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. कृपाण घोष ‘गांव कनेक्शन’ से फोन पर बताते हैं, “कई राज्यों में शीत लहर, कोहरे और तापमान गिरने की वजह से रबी की फसलों पर प्रभाव पड़ सकता है। जैसे गेहूं की फसल बोए किसानों के क्षेत्र में 05 डिग्री सेल्सियस से नीचे तापमान जाता है तो फसल का सामान्य विकास प्रभावित होता है और दाने छोटे रह जाने की संभावना है। अगर तापमान 02 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे जाता है तो फसल के पौधे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और पत्तियां टूट सकती हैं।”
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आने वाले दिनों में ओलावृष्टि और बारिश होने की संभावनाओं पर डॉ. कृपाण कहते हैं, “ओलावृष्टि होने पर बड़े किसान तो अपनी फसल में हेल नेट का सहारा ले सकते हैं, मगर छोटे किसानों की फसलों पर प्रभाव पड़ सकता है। किसानों को सलाह है कि खेतों में इस समय हल्की सिंचाई ही करें ताकि फसल के तापमान में नमी बनी रहे। साथ ही गेहूं की फसल में सिंचाई के बाद 30 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर छिड़काव कर सकते हैं।”
कृषि मौसम विज्ञान विभाग ने अपने बुलेटिन में सरसों के किसानों को सलाह दी है कि तापमान गिरने पर किसान क्लोरपायरीफॉस 20% ईसी 1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर या मोनोक्रोटोफॉस 36% एस.एल. 500 मिली प्रति हेक्टेयर 500-600 लीटर पानी के घोल के साथ छिड़काव करें।
वहीं आलू की फसल में कोहरे और ठंड की स्थिति से बचाने के लिए हल्की सिंचाई की आवश्यकता है और ब्लाइट रोग से बचाने के लिए 10 से 15 दिनों के बीच में मैनकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। जबकि आलू की फसल में देर से तुड़ाई के लिए निगरानी की सलाह दी जाती है। यदि आलू की फसल में संक्रमण होता है, तो इंडोफिल एम -45 / मास एम -45 / मार्कज़ेब / एंट्राकोले / कवच 500-750 ग्राम प्रति 250-350 लीटर पानी का उपयोग करके 7 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
जबकि गन्ने के किसानों को सलाह दी गई है कि वे गन्ने की फसल में कीटों के लिए सतर्कता बरतें और फसल में जरूरत के आधार पर ही सिंचाई करें।
‘पाला पड़ने से बचाव के लिए करें धुआं’
दूसरी ओर फसलों पर पाला पड़ने का प्रकोप भी बढ़ रहा है जिससे फसलें बर्बाद हो सकती हैं। अब तक मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश में पाला पड़ने की वजह से कई किसानों की फसलें बर्बाद होने की खबरें सामने आई हैं। पाला पड़ने से किसानों की रबी की फसलों में दलहनी फसलों के साथ मटर, चना और आलू की फसलों पर रोग का खतरा मंडरा रहा है।
पाले से फसल के बचाव को लेकर कृषि विज्ञान केंद्र, रतलाम के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सर्वेश त्रिपाठी ‘गांव कनेक्शन’ से बताते हैं, “पाले का असर रात में ज्यादा होता है और उसी समय फसलों को नुकसान होता है। किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अपनी फसलों के आस-पास धुआं करें इससे फसल का तापमान पांच से छह डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। साथ ही किसान सल्फर का छिड़काव करके भी अपनी फसल को पाले से बचा सकते हैं।”