वीडियो: फेरोमोन ट्रैप का इस्तेमाल कर करिए कीट और कीटनाशकों की छुट्टी

गांव कनेक्शन में आज पढ़िए खेती में फेरोमोन ट्रैप का महत्व, क्या होता है फेरोमोन ट्रैप और कैसे ये करता है कीटों से फसलों का बचाव ?
#Organic farming

बिना कीटनाशक खेती करने वाले किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या कीट नियंत्रण की होती है। ऐसे किसानों में किसान फेरोमोन ट्रैप, स्टिकी ट्रैप, ट्राइकोकार्ड, प्रकाश प्रपंच आदि का इस्तेमाल कर अपनी फसल को बचा सकते हैं। देश में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन के जरिए इसे बढ़ावा दिया जा रहा है।

पेस्टीसाइट के जरिए कीटों का खत्म किया जाता है, जिसमें मित्र और शत्रु दोनों तरह के कीट खत्म हो जाते हैं। लेकिन कीट प्रबंधन के यांत्रिक और जैविक तरीकों के द्वारा शत्रु कीटों का प्रबंधन किया जाता है। राजस्थान के उदयपुर में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के पादप रक्षा वैज्ञानिक डॉ. दीपक जैन किसानों ने फोरमोन ट्रैप को किसानों के लिए कारगर हथियार मानते हैं। ये उपाय जैविक खेती करने वालों के लिए सबसे उपयुक्त कहे जाते हैं। 


“फेरोमोन ट्रैप से कीट पर नियंत्रण और निगरानी दोनों हो सकते हैं। ये एक बहुत सस्ता यंत्र है। जो किसी भी खाद और बीज की दुकान से खरीदा जा सकता है। इसमें मादा कीटों की गंध को एक कैप्शूल में रखा जाता है, जिससे नर कीट आकर्षित होकर किसान के जाल में फंस जाते हैं। इनकी संख्या नियंत्रित रहने से किसान की फसल को नुकसान नहीं होता है और फसल बचाने में हजारों रुपए खर्च नहीं करने पड़ते।’

फेरोमोन मादा कीटों से मिलती जुलती एक गंध होती है जो नर कीटों को अपनी ओर आकर्षित करती है। इस गंध को एक छोटी सी कैप्सूल आकार की संरचना में भरकर कीट पकड़ने का ट्रैप (यंत्र) तैयार करते है। कैप्सूल आकार की संचरना को ल्योर भी कहते हैं। ल्योर लगे यंत्र में नीचे एक प्लास्टिग बैग बांध देते हैं। जिससे आसपास के नर कीट इसकी गंध से आकर फंसते जाते हैं। ये डिब्बे (यंत्र) ऐसे तैयार किए जाते हैं कि कीटों के जाने का रास्ता होता है लेकिन वो बाहर नहीं आ पाते। फेरोमन ट्रैप में मौजूद कीटों की संख्या के आधार पर ये भी तय होता है कि खेत में कीटों का हमला हुआ है या नहीं या फिर फसल के किस हिस्से में प्रभाव ज्यादा है। और सबसे जरूरी ये कि ये जानकारी भी हो जाती है कि खेत में कीट कौन कौन से हैं।

ये भी पढ़े-जलवायु परिवर्तन: जैविक कीटनाशक और प्राकृतिक उपाय ही किसानों का ‘ब्रह्मास्त्र’

फोरेमोन ट्रैप में फंसी इल्लियां दिखाते मध्य प्रदेश के किसान प्रतीक शर्मा। उनके मुताबिक वो अपने खेतों में कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करते हैं।

डॉ. दीपक जैन बताते हैं, एक हेक्टेयर 5 से 7 फेरोमन ट्रैप लगाने पर फसल की मॉनिटरिंग होती है, जबकि 15-20 लगाने पर ये फसल सुरक्षा का काम करते हैं। अगर एक फोरमैन ट्रैप में दिन में 5-7 कीट नजर आएं और तो समझ लीजिए कि हमला हो चुका है और ये आर्थिक हानि स्तर तक है, यानि अब किसानों को रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करना चाहिए।’

आर्थिक हानि स्तर को सरल भाषा में समझाते हुए वो बताते हैं अगर मूंगफली के एक खेत में एक वर्ग मीटर के क्षेत्र में सफेद लट (एक कीट) एक है तो वो आर्थिक हानि स्तर नहीं है लेकिन इससे ज्यादा मिलने पर कीटनाशक का इस्तेमाल करना चाहिए।

किसानों को ऐसे यंत्रों के जरिए कीट प्रबंधन की सलाह देते हुए अनिल जैन कहते हैं, कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल से दोहरा नुकसान है, एक तो किसानों का पैसा खर्च होता दूसरा सेहत और खेत तीनों खराब होते हैं।

कीटपतंगों पर काबू करने वाले ये ट्रैप कुछ खाद-बीज की दुकानों से आर्डर देकर मंगवाए जा सकते हैं। आपके कस्बे में दिक्कत होने पर पेस्ट कंट्रोल ऑफ इंडिया से भी मंगवाए जा सकते हैं। डॉ. अनिल जैन के मुताबिक इस उपकरण की कीमत करीब 45 रुपए और कैप्सूल की कीमत 15 रुपए होती है। हर फसल के अलग ल्यूर आता है।

फेरोमन ट्रैप के लाभ

इससे रसायनों के छिड़काव और उसमें होने वाले खर्चे से किसान को छुटकारा मिलेगा।

फेरोमोन एवं ल्योर विषैले नहीं हैं इसलिए फसल और वातावरण को कोई खतरा नहीं।

इसके प्रयोग से कीड़ों का आकलन करके उपचार में असानी रहती है।

इस तरीके से कीड़े अपनी संख्या नहीं बढ़ा पाते हैं और उत्पादन को नुकसान नहीं होता।

उपकरण केवल एक ही बार खरीदना होता है इसमें लगने वाला फेरोमोन गंध वाला ल्योर ही केवल बार-बार बदलना पड़ता है।

किसान बरतें ये सावधानियां

1.फेरोमोन ल्योर को एक माह में एक बार अवश्य बदल देना चाहिए।

2. ठंड़े एवं सूखे स्थान पर भंडारित करें।

3.एक बार प्रयोग किये गए ल्योर को नष्ट कर दें।

4.बात को सुनिश्चित करते रहें कि कीट एकत्र करने की थैली का मुंह बराबर

5. यंत्र को ऐसी जगह लगाएं जिससे अधिकाधिक कीड़े एकत्र कर नष्ट किए जा सकें।

6.ट्रैप लगाने से पहले हाथों को साबुन से धुलें, तंबाकू या दूसरे रसायनों की गंध इसे प्रभावित कर सकती है।

7.ट्रैप को फसल के 25-30 दिन की होने के बाद ही लगाने चाहिए। इसे फसल से करीब एक फीट ऊपर लगाना चाहिए।


फसल व कीटों के साथ प्रयोग किए जाने वाले ल्योर के प्रकार

1.अमेरिकन सुंडी लट हेली ल्योर दलहनी फसलों के लिए

2.धब्बेदार सुंडी इर्विट ल्योर भिन्डी, तरोई, कद्दू वर्गीय

3.डायमंड बेक मॉथ दीबीएम ल्योर गोभी कूल के फसल के लिए

4.बैंगन तना एवं फली छेदक लयूसिन ल्योर बैगन एवं मिर्च के लिए

5.अर्ली शूट बोरर इएसबी ल्योर धान और गन्ना के लिए

6.गन्ना तना छेदक चाइलो ल्योर गन्ने के लिए

7.गन्ना टीप बोरर स्किरपो ल्योर गन्ने के लिए 

ये भी पढ़ें- स्टिकी ट्रैप : हजारों रुपये के कीटनाशकों की जरुरत नहीं, ये पीली पन्नियां बचाएंगी आपकी फसल

ये भी पढ़ें- आलू, मटर, चना और सरसों में नहीं लगेंगे रोग, अगर किसान रखें इन बातों का ध्यान 

Recent Posts



More Posts

popular Posts