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अब देशभर में हो सकेगी सुपारी की बेहतर खेती, सीपीसीआरआई ने विकसित की दो नई किस्में

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लखनऊ। केरल के सुपारी किसान पिछले कई वर्षों से अपनी फसलों में लगने वाले कीटों से बहुत परेशान हैं। हालात तो यहां तक पहुंच गए कि किसानों ने सुपारी का विकल्प भी तलाशना शुरू कर दिया। लेकिन केरल सहित देशभर के सुपारी किसानों के लिए केंद्रीय रोपण फसल अनुसंधान संस्थान, कासरगोड़, केरल एक ऐसी सौगात लेकर आ रहा है जिसके बाद किसान खु्श तो होंगे ही, साथ ही सुपारी की पैदावार देश के अन्य हिस्सों में होने की संभावना भी बढ़ जाएगी।

केंद्रीय रोपण फसल अनुसंधान संस्थान, कासरगोड़, केरल (सीपीसीआरआई) ने हाइब्रिड (संकर) प्रजाति से सुपारी की दो नई किस्म तैयार की है। इसे अगले साल से किसानों को बेचा जा सकेगा। वीटीएलएच-1 और वीटीएलएच-2 नामक इन दोनों प्रजातियों पर पिछले तीन वर्षों से शोध चल रहा था। अब जाकर इसमें सफलता मिली है।


सीपीसीआरआई के निर्देशक डॉ. चौधप्पा पी ने गाँव कनेक्शन को बताया “हमारे संस्थान ने तमिलनाडु की एक कंपनी के साथ मिलकर सुपारी की दो नई किस्म वीटीएलएच-1 और वीटीएलएच-2 तैयार की है। हम इसपर पिछले तीन सालों से काम कर रहे थे। दोनों सफेद प्रजाति (चाली) की हैं।”

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पिछले कुछ वर्षों से सुपारी की फसल पर कोले रोग का प्रकोप बढ़ता जा रहा था। पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जा रही थी। ऐसे में केंद्र सरकार ने मिलकर इस पर काम करने का फैसला लिया था। डॉ. चौधप्पा कहते हैं “नई प्रजाति के पौधों की लंबाई ज्यादा नहीं होगी। अभी के पौधे बहुत लंबे होते हैं जिस कारण उन पर न तो दवाओं का छिड़काव हो पाता है और न ही ठीक से उनकी देखभाल हो पाती है। ऐसे में बौनी प्रजाति की ये दोनों फसलें किसानों के लिए बहुत लाभकारी साबित हो सकती हैं।”


गौरतलब है कि पूरी दुनिया में सुपारी का सबसे ज्यादा उत्पादन भारत में ही होता है। सीपीसीआई के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में लगभग 925 हजार हेक्टेयर खेती से 127 हजार टन सुपारी की पैदावार होती है। क्षेत्र (49%) और पैदावार (50%), दोनों मामलों में भारन नंबर वन है। पिछले साल के आंकड़ों को देखें तो 632 टन पैदावार के साथ भारत पहले पायदान पर रहा है जबकि 187 टन के साथ इंडोनेशिया दूसरे, चाइना तीसरे (135 टन), म्यांमार चौथे (122 टन) और 108 टन के साथ बांग्लादेश पांचवें नंबर पर रहा। 2050 तक सुपारी की मांग 1214,000 टन तक हो जाएगी।


“वीटीएलएच-1 और वीटीएलएच-2 चार मीटर की लंबाई से ही फसल देने शुरू कर देंगे। पेड़ लंबे होने की वजह से कुशल कारीगरों का मिलना मुश्किल हो जाता था। ऐसे में जब पौधे की लंबाई कम होगी तो और ज्यादा किसान इससे जुड़ेंगे। डॉ. चौधप्पा आगे बताते हैं।” भारत में 453,000 हेक्टेयर की खेती से लगभग 632000 किलोग्राम सुपारी की पैदावार हो रही है। 358.8 टन के साथ कर्नाटक भारत का सबसे बड़ा सुपारी उत्पादक देश है। इसके बाद 118.2 टन के साथ केरल दूसरे, 72.6 टन के साथ असम तीसरे नंबर पर है।


अभी एक एकड़ में 600 पौधे ही लग पाते हैं। लेकिन इन नई किस्मों से ये संख्या बढ़कर 800 पौधे हो सकती है। इस बारे में सीपीसीआरआई के प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर डॉ. महेश्वरप्पा कहते हैं “अगले साल तक ये दोनों नई किस्मे किसानों को दी जाने लगेंगी। इन किस्मों से देश के अन्य हिस्सों में भी सुपारी की खेती की संभावना बढ़ सकती है।”

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