इस ख़बर को किसान और सरकार ज़रूर पढ़े
Bhasker Tripathi 29 Dec 2016 5:20 PM GMT

बंपर खरीफ उत्पादन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलने वाली संभावित बढ़त को नोटबंदी से झटका लगा है। ऐसा दावा देश की अलग-अलग कुछ निजी संस्थाओं के ज़मीनी सर्वे के आंकड़ों में किया गया है। हालांकि सरकार द्वारा जारी आंकलन के अनुसार कृषि अर्थव्यवस्था में बढ़त का अनुमान है।
केंद्रीय सरकार द्वारा जारी अनुमान के मुताबिक लगातार दो सूखे झेलने के बाद खरीफ में बंपर पैदावार हुई है। वर्तमान रबी फसल में भी पहले से बहुत बढ़िया पैदावार की उम्मीद है। इससे कृषि अर्थव्यस्था की वृद्धि दर 5.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो कि पिछले वित्त सत्र से 1.3 प्रतिशत ज्यादा है।
हालांकि नोटबंदी के बाद निजी संस्थाओं द्वारा किये गए ज़मीनी सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक इस वित्तीय सत्र में छोटे और मंझोले किसानों की आय पर नकारात्मक असर दिखेगा।
देश की अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाली एक निजी संस्था जेएम फाइनेन्शियल सिक्योरिटी लि. की सात राज्यों में सर्वे के बाद आई रिपोर्ट के अनुसार फसलों के दाम में देखी जा रही भारी गिरावट पूरी तरह खरीफ में बंपर उत्पादन के कारण नहीं है। कृषि बाज़ारों में नकदी की कमी होने से व्यापार में भारी गिरावट दर्ज की गई है जिसके कारण भी फसलों के दाम संभल नहीं पाए। छोटे किसान, जिनके पास बैंकिंग सुविधाएं नहीं थीं उन्होंने पैसों की आवश्यकता के चलते अपनी फसल बहुत कम दाम पर बेंच दी।
"अलग-अलग गाँवों में लोगों से संवाद करने पर हमें यही मिला कि नकदी न होने के चलते ही मण्डियों के व्यापार में कमी आई जिसकी वजह से खरीफ की फसलों के दाम मज़बूत नहीं हो पाए। इसका सबसे बुरा असर छोटे और मंझोले किसानों की आय पर पड़ा है," जेएम फाइनेंस की रिपोर्ट में कहा गया। इस रिपोर्ट को वित्तीय मुद्दों के 'मिंट' अख़बार ने भी प्रकाशित किया है।
संस्था ने अपनी रिपोर्ट में छोटे व मंझोले किसानों और बड़े किसानों की आय पर इस वित्त सत्र में क्या फर्क पड़ा है उसका प्रतिशत में अनुमान भी जारी किया है। संस्था के मुताबिक जहां छोटे व मंझोले किसानों की खेती से आय में वृद्धि पिछले वित्त सत्र में 20.6 प्रतिशत थी, वहीं इस सत्र में ये घटकर महज़ 8.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है। यानि 11.8 प्रतिशत की कमी।
हालांकि, जेएम फाइनेन्शियल की रिपोर्ट के मुताबिक बड़े किसानों की आय पर असर कम ही पड़ेगा। पिछले वित्त सत्र में जहां बड़े किसानों की आय में वृद्धि 20.6 प्रतिशत थी तो वो लगभग चार प्रतिशत घटकर इस साल महज़ 16.1 प्रतिशत ही रहने का अनुमान है। बड़े किसानों पर कम असर पड़ने की वजह उनका बैंकिंग सुविधाओं और सरकारी योजनाओं से सक्रिय रूप से जुड़ा होना बताया गया है।
जेएम फाइनेन्शियल ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि रबी फसल अच्छी होने से किसानों की स्थिति थोड़ी बेहतर हो सकती है।
हालांकि, देश के वित्तीय मुद्दों पर नज़र रखने वाली एक अन्य संस्था एम्बिट कैपिटल प्रा लि. के मुताबिक रबी की फसल बेहतर होने के बाद भी किसानों की स्थिति इतनी आसानी से नहीं सुधरेगी।
एम्बिट कैपिटल ने कई मण्डियों में व्यापारियों से बात करके ये संभावना जताई है कि रबी की फसल बाज़ार में आने के समय फसलों के मूल्यों में एक बार फिर भारी गिरावट आ सकती है क्योंकि नोटबंदी के चलते खरीफ की न सड़ने वाली फसलों को बड़े व्यापारियों ने भारी मात्रा में खरीदकर भण्डार कर लिया है। इन भण्डारित फसलों को व्यापारी बाज़ार के भावों को कम करने के लिए बाज़ार में उतार सकते हैं। इससे किसानों की मुश्किलें बढ़ेंगी।
Demonetisation Rural Economy Small and Marginal Farmers
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