नोटबंदी के बाद बंपर उत्पादन ने किया आलू किसानों को बेदम, 2 रुपये किलो तक पहुंचीं कीमतें

Arvind ShukklaArvind Shukkla   26 Feb 2017 7:26 PM GMT

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नोटबंदी के बाद बंपर उत्पादन ने किया आलू किसानों को बेदम, 2 रुपये किलो तक पहुंचीं कीमतेंसब्जियों का राजा कहा जाने वाला आलू इन दिनों माटी मोल बिक रहा है।

दिल्ली/लखनऊ। सब्जियों का राजा कहा जाने वाला आलू इन दिनों माटी मोल बिक रहा है। यूपी में आलू के गढ़ फरुर्खाबाद में आलू दो से ढाई रुपये किलो बिक रहा है तो पंजाब में भी यही हाल है। पंजाब के तमाम कोल्ड स्टोर में अभी पुराना आलू ही रखा है, जिसके खरीदार नहीं मिल रहे हैं। आलू कारोबारियों का मानना है बंपर उत्पादन और नोटबंदी के चलते आलू की कीमतें गिरी हैं।

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यूपी के फरुर्खाबाद जिला मुख्यालय से रहने वाले 17 किलोमीटर दूर अहमदपुरवा में रहने वाले विनोद कटियार को इस बार लाखों रुपये का घाटा हुआ है। उन्होंने अच्छी कीमतों के लिए अपना एक ट्रक आलू अपने गांव से 1500 किलोमीटर दूर मुंबई की मंडी भेजा लेकिन वहीं भी साढ़े चार रुपये के दाम मिले। विनोद कटियार फोन पर बताते हैं, “जिले में ढाई सौ रुपए कुंटल का रेट है। मैंने एक हजार बोरा आलू खुदवाया था, जिसमें से एक ट्रक मुंबई भेजा, दो डीसीएम (छोटे ट्रक) मुंबई और एक यूपी के अंबेडकर नगर भेजा लेकिन सब जगह खर्चा काटकर औसत ढाई-पौने तीन सौ ही रहा। इस बार बहुत घाटा हुआ। अब बाकी का 1000 बोरी आलू स्टोर में रखेंगे।”

फरुर्खाबाद की तरह मध्यप्रदेश के इंदौर में भी किसान परेशान हैं। एमपी के इंदौर जिले में ही बीजलपुर गांव के किसान राजा पटवारी के पास इस बार 15 एकड़ सफेद आलू था, लेकिन वो एक भी कुंटल बेचने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। वो फोन पर बताते हैं, “15 एकड़ में बीज खाद से लेकर मजदूरी तक में करीब 18 लाख का खर्चा आया था। अब 400 रुपये कुंटल का रेट है ऐसे में तो मुनाफा दूर सब आलू बेचा तो 7-8 लाख रुपये का नुकसान होएगा।”

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मध्यप्रदेश में किसानों की आवाज़ उठाने वाले संगठन आम किसान यूनियन के केदार सिरोही बताते हैं, एमपी में भी हालात वैसे ही हैं, मैं अभी इंदौर में हूं यहां मंडी का रेट 400-600 रुपये हैं। इस बार तो किसान ये सोचकर पछता रहा है गेहूं क्यों नहीं बोया।” किसान और कारोबारियों के मुताबिक पिछले 20 वर्षों में ये सबसे कम कीमतें हैं, इससे पहले 1997 में आलू की कीमतें 15 पैसे किलो तक पहुंच गई थीं।

दिल्ली की आजादपुर मंडी की थोक कीमतों में लगातार गिरावट का दौर जारी है। फिलहाल यहां 200 रुपये से लेकर 425 रुपये तक का रेट चल रहा है। मंडी में आलू कारोबारी राजेंद्र शर्मा बताते है, “अभी रेट बहुत डाउन है, जिसकी दो बड़ी वजहें हैं, उत्पादन बहुत हुआ और दूसरा नोटबंदी के चलते लोगों को पास पैसा नहीं तो बड़े कारोबारी आलू खरीदकर स्टोर में रख नहीं पा रहे हैं। आने वाले कुछ समय में अगर कोल्ड स्टोर में आलू बड़े पैमाने पर जाना शुरु हुआ तो रेट सुधर सकते हैं।”हालांकि आलू स्टोर में रखकर फायदा ही होगा इसकी संभावना कम ही है।

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देश के बड़े आलू उत्पादक राज्यों में शामिल पंजाब के जालंधर में आलू किसानों को खरीदार नहीं मिल रहे हैं। अच्छे रेट के लिए सालों से किसान होली से पहले आलू की खुदाई करते रहे हैं लेकिन इस बार वो हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। पंजाब में आलू का भाव करीब 300-400 कुंटल यानि 150 से 200 रुपये प्रटि कट्ट (50 किलो) है। पंजाब मीडिया ने जालंधर आलू उत्पादक संघ के हवाले से लिखा है कि दोआबा क्षेत्र में करीब 30 लाख बोरी आलू अभी भी स्टोर में है, जो बिन नहीं पा रहे।

यूपी के बाराबंकी जिले के सूरतंगज में रहने वाले किसान रामसागर के पास दो एकड़ आलू है। वो जल्दी आलू खोदकर मेंथा लगाने की तैयारी में थे लेकिन कीमते बढ़ने के इंतजार में वो आलू नहीं खोद रहे। फोन पर बताया, “डर लग रहा है आलू तो गया ही कहीं मेंथा भी न लेट हो जाए लेकिन अब माटी मोल आलू बहा भी तो नहीं पाएंगे, बहुत खर्चा लगा था।”

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फरुर्खाबाद के विनोद कटियार कहते हैं, “इस बार मौसम मेहरबान रहा तो कीमतों ने मार डाला। पिछले साल कानपुर, बिहार और पश्चिम बंगाल के कई इलाकों में पाला पड़ गया था, फरुर्खाबाद समेत जिन जिलों में आलू बचा था उन्हें अच्छा रेट मिला था, लेकिन इस बार रोग नहीं लगे तो कीमतें नही हैं।”

1997 में 15 पैसे किलो तो 2014 में 30-40 रुपये किलो तक पहुंचा था आलू

वर्ष 2014 में किसानों के लिए सबसे फायदेमंद रहा था जब आलू 2200-2300 रुपये थोक में बिका था। जबकि फुटकर में कीमतें 30-40 तक पहुंच गई थीं, वहीं 1997 में आलू किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था, उस वक्त 15 पैसे किलो में भी खरीदार नहीं मिल रहे थे। सड़ने के बाद रोग फैसने के डर के कई किसानों ने आलू को खेतों में ही गड्ढ़े कर पटवा दिया था।

मंडी में नहीं खरीददार तो कोल्ड स्टोर के बाहर भी लंबी लाइन

बाराबंकी (यूपी) इस सीजन में आलू की रिकॉर्ड पैदावार ने किसानों के सामने आलू भंडारण की समस्या खड़ी कर दी है जिसके चलते शुरुआती दिनों में ही कोल्ड स्टोर के सामने लम्बी-लम्बी लाइनें लगनी शुरू हो चुकी हैं। सबसे बड़ी समस्या उन किसानों के लिए है जो किराये के साधन द्वारा आलू कोल्ड स्टोर तक लाते हैं उन्हें कई दिनों का भाड़ा देना पड़ रहा है।

ऐसे ही रहा तो आलू की खेती नहीं करेंगे किसान

बाराबंकी मुख्यालय से 30 किमी दूर फतेहपुर ब्लाक के कई कोल्ड स्टोर में अभी से लम्बी-लम्बी लाइनें लगना शुरू हो गई है। आलू की अधिक पैदावार के कारण बाजार में आलू की कीमत काफी कम हैं जिससे किसानों की लागत नहीं निकल पा रही है। जिस कारण आलू किसान अपने आलू को कोल्ड स्टोर में रखने को विवश हो रहे हैं। पवैय्याबाद निवासी अवधेश वर्मा बताते हैं, “हम हर साल आलू की खेती करते हैं, इस समय आलू की फसल तैयार खड़ी है। बाजार में जो रेट इस समय है उससे तो लागत भी नहीं निकलेगी। कोल्ड स्टोर में भी अभी से ही लम्बी लाइनें लग गई हैं। जिससे भण्डारण को लेकर चिंता बढ़ने लगी है।”

सन्दूपुर निवासी पप्पू यादव ने बताया की फसल तैयार है। कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे कोल्ड स्टोरेज में हम अपना आलू रखेंगे। जिन किसानों के पास अपने ट्रैक्टर ट्राली हैं वह तो लाइन में लगकर रख देंगे, लेकिन जिन छोटे किसानों के पास निजी साधन नहीं है उनका आलू तो किराये भर का ही होगा।

बाराबंकी के जिला उद्यान अधिकारी जय करण सिंह बताते हैं, “सभी कोल्ड स्टोर मालिकों को 15 फरवरी से बुकिंग करने के आदेश दे दिये गए थे। जिन किसानों ने बुकिंग करा रखी है उनका आलू कोल्ड स्टोर में रखा जा रहा है। जो किसान बुक नहीं करा पाये हैं उनके लिए टोकन की व्यवस्था लागू है। इस बार टोकन के आधार पर ही आलू का भंडारण होगा।” अकेले बाराबंकी में करीब साढ़े चाल लाख मीट्रिक टन आलू पैदा हुआ है।

       

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