मानसून आख़िर क्या है, जिसका किसान और सरकार सब इंतज़ार करते हैं

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मानसून आख़िर क्या है, जिसका किसान और सरकार सब इंतज़ार करते हैं

देश के कई राज्यों में झमाझम बारिश हो रही है। तो कई राज्य अभी आसमान की तरफ उम्मीद की तरफ से देख रखे हैं। बारिश से कुछ लोग परेशान भी हैं, लेकिन ज्यादातर इलाकों में इसका बेसब्री से इंतजार रहता है। अच्छा मानसून मतलब अच्छी बारिश, मतलब देश के लिए खुशहाली.. जानिेए आखिर है क्या मानूसन

मानसून, जिसका हर किसी को इंतज़ार रहता है। किसान से लेकर सरकार तक आसमान की ओर टकटकी लगाए रहते हैं। आप यूं कह लीजिए कि देश की अर्थव्यव्यस्था और खद्यान्न उत्पादन पूरी तरह से मानसून पर निर्भर है। मानसून बढ़िया तो किसान खुश, शेयर बाजार की बल्ले बल्ले, तो सरकार भी अपनी पीठ थपथपा लेती है। आख़िर कौन सी हैं वो हवाएं जो मानसून बनाती हैं, क्या बला है मानसून, क्यों होता है हर साल बेसब्री से मानसून का इंतज़ार , जानिए इस रिपोर्ट में...

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बारिश

नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय के एग्रीकल्चर मेट्रोलाजी विभाग के वैज्ञानिक प्रोफेसर डा. ए.के. सिंह ने बताया '' भारत में मानसून के आगमन पर सरकार से लेकर आम किसान की निगाह लगी रहती है। देश में मानसून का सीजन चार महीनों का होता है। मानसून जून में शुरू होता है और सितंबर तक सक्रिय रहता है। दीर्घावधि पूर्वानुमान के दौरान मौसम विभाग कई पैमानों का इस्तेमाल कर इन चार महीनों के दौरान होने वाली मानसूनी बारिश की मात्रा को लेकर संभावना जारी करता है। ''

उन्होंने कहा कि इससे कृषि एवं अन्य क्षेत्रों को अपनी जरूरी तैयारियां करने में मदद मिलती है। पिछले साल मौसम विज्ञान विभाग ने मानसून के 106 प्रतिशत बारिश का भविष्यवाणी लेकिन वास्तविक बारिश 97 प्रतिशत हुई थी।

कृषि के लिए है महत्वपूर्ण

देश में मानसून कृषि के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि आधी से ज्यादा खेती-बाड़ी मानसूनी बारिश पर ही निर्भर रहती है। जहां सिंचाई के साधन हैं वहां के लिए भी मानसूनी बारिश जरूरी है, क्योंकि बारिश नहीं होगी तो नदियां-झीलें भी सूख जाएंगी जहां से सिंचाई के लिए पानी आता है। देश में गर्मी की शुरुआत होते ही किसान मानसून पर टकटकी लगाकर बैठ जाते हैं। लेकिन मानसून एक ऐसी अबूझ पहेली है जिसका अनुमान लगाना बेहद जटिल है।

कारण यह है कि भारत में विभिन्न किस्म के जलवायु जोन और उप जोन हैं। हमारे देश में 127 कृषि जलवायु उप संभाग हैं और 36 संभाग हैं। हमारा देश विविध जलवायु वाला है। समुद्र, हिमालय और रेगिस्तान मानसून को प्रभावित करते हैं। इसलिए मौसम विभाग के तमाम प्रयासों के बावजूद मौसम के मिजाज को सौ फीसदी भांपना अभी भी मुश्किल है।


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इस तरह बनता है मानसून

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग अमौसी लखनऊ के निदेशक जेपी गुप्ता ने बताया '' ग्रीष्म ऋतु में जब हिन्द महासागर में सूर्य विषुवत रेखा के ठीक ऊपर होता है तो मानसून बनता है। '' उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में समुद्र गरमाने लगता है और उसका तापमान 30 डिग्री तक पहुंच जाता है। वहीं उस दौरान धरती का तापमान 45-46 डिग्री तक पहुंच चुका होता है।

ऐसी स्थिति में हिन्द महासागर के दक्षिणी हिस्से में मानसूनी हवाएं सक्रिय होती हैं। ये हवाएं आपस में क्रॉस करते हुए विषुवत रेखा पार कर एशिया की तरफ बढ़ने लगती हैं। इसी दौरान समुद्र के ऊपर बादलों के बनने की प्रक्रिया शुरू होती है। विषुवत रेखा पार करके हवाएं और बादल बारिश करते हुए बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का रुख करते हैं। इस दौरान देश के तमाम हिस्सों का तापमान समुद्र तल के तापमान से अधिक हो जाता है। ऐसी स्थिति में हवाएं समुद्र से जमीन की ओर बहनी शुरू हो जाती हैं। ये हवाएं समुद्र के जल के वाष्पन से उत्पन्न जल वाष्प को सोख लेती हैं और पृथ्वी पर आते ही ऊपर उठती हैं और वर्षा देती हैं।

दो शाखाओं में बंट जाती हैं मानसूनी हवाएं

बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में पहुंचने के बाद मानसूनी हवाएं दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं। एक शाखा अरब सागर की तरफ से मुंबई, गुजरात राजस्थान होते हुए आगे बढ़ती है तो दूसरी शाखा बंगाल की खाड़ी से पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वोत्तर होते हुए हिमालय से टकराकर गंगीय क्षेत्रों की ओर मुड़ जाती हैं और इस प्रकार जुलाई के पहले सप्ताह तक पूरे देश में झमाझम पानी बरसने लगता है।

मानसून का मई के दूसरे सप्ताह में बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान निकोबार द्वीप समूहों में मानसून दस्तक देता है और एक जून को केरल में मानसून का आगमन होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि हिमालय पर्वत नहीं होता तो उत्तर भारत के मैदानी इलाके मानसून से वंचित रह जाते। मानसूनी हवाएं बंगाल की खाड़ी से आगे बढ़ती हैं और हिमालय से टकराकर वापस लौटते हुए उत्तर भारत के मैदानी इलाकों को भिगोती हैं।

राजस्थान से होती है मानसून की विदाई

देश में मानसून के चार महीनों में 89 सेंटीमीटर औसत बारिश होती है। 80 फीसदी बारिश मानसून के चार महीनों जून-सितंबर के दौरान होती है। देश की 65 फीसदी खेती-बाड़ी मानसूनी बारिश पर निर्भर है। बिजली उत्पादन, भूजल का पुनर्भरण, नदियों का पानी भी मानसून पर निर्भर है। पश्चिम तट और पूर्वोत्तर के राज्यों में 200 से एक हजार सेमी बारिश होती है जबकि राजस्थान और तमिलनाडु के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां मानसूनी बारिश सिर्फ 10-15 सेमी बारिश होती है। केरल में मानसून जून के शुरू में दस्तक देता है और अक्टूबर तक करीब पांच महीने रहता है, जबकि राजस्थान में सिर्फ डेढ़ महीने ही मानसूनी बारिश होती है। वहीं से मानसून की विदाई होती है।

मौसम विभाग जारी करता है पूर्वानुमान

मानसून विभाग अप्रैल के मध्य में मानसून को लेकर दीर्घावधि पूर्वानुमान जारी करता है। इसके बाद फिर मध्यम अवधि और लघु अवधि के पूर्वानुमान जारी होते हैं। मौसम विभाग की भविष्यवाणियों में हाल के वर्षों में सुधार हुआ है। इधर, देश भर में कई जगहों पर डाप्लर राडार लगाए जाने हैं जिससे आगे स्थिति और सुधरेगी। अभी मध्यम अवधि की भविष्यवाणियां जो 15 दिन से एक महीने की होती हैं, 70-80 फीसदी तक सटीक निकलती है। कम अवधि की भविष्यवाणियां जो अगले 24 घंटों के लिए होती हैं करीब 90 फीसदी तक सही होती हैं।

पेड़- पौधों और पक्षियों के व्यहार से मानसून का लगाया जाता था अनुमान

जब विज्ञान का बहुत ज्यादा विकास नहीं हुआ था तब पुराने जमाने में मानसून को जानने के लिए न तो सैटेलाइट थे, और न ही समुद्र में लगने वाले उपकरण। लेकिन उस समय भी मानूसन की भविष्यवाणी की जाती थी। उस समय के विशेषज्ञ तब पक्षियों के व्यवहार, हवाओं के पैटर्न ओर पेड़-पौधों के आधार पर मानसून के आगमन की भविष्यवाणी करते थे। तब के पूर्वानुमान आज के आधुनिक पूर्वानुमानों की तुलना में सटीक होते थे।

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मानसून देश की अर्थव्यवस्था को भी करता है प्रभावित।

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