सेहत के लिए मुफीद होने के बावजूद घट रही अलसी की खेती

Ashwani NigamAshwani Nigam   29 Jan 2017 2:35 PM GMT

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सेहत के लिए मुफीद होने के बावजूद घट रही अलसी की खेतीरबी सीजन की प्रमुख फसल अलसी का प्रदेश में जहां बुवाई का रकबा घट रहा है वहीं इसकी पैदावार भी लगतार घट रही है।

लखनऊ। तिलहन की प्रमुख व्यवासायिक फसल अलसी यानी तीसी की खेती प्रदेश में लगातार घट रही है। रबी सीजन की प्रमुख फसल अलसी का प्रदेश में जहां बुवाई का रकबा घट रहा है वहीं इसकी पैदावार भी लगतार घट रही है। स्थिति यह है कि इस बार प्रदेश के 17 मंडलों में से 6 मंडलों में इसकी बुवाई जीरो हुई है।

उत्तर प्रदेश कृषि विभाग की तरफ से रबी सीजन की विभिन्न फसलों की अभी तक के बुवाई के जो आंकड़े जारी किए हैं उसके मुताबिक सहारनपुर, मेरठ, अलीगढ़, आगरा, बरेली और मुरादाबार मंडल में अलसी की बुवाई नहीं हुई है। जिन 10 मंडलों में अलसी की बुवाई हुई है उसमें सबसे ज्यादा 15.662 हजार हेक्टेयर में अलसी की बुवाई मिर्जापुर मंडल में हुई है। अलसी की बुवाई में दूसरे नंबर पर चित्रकूट मंडल है। जहां पर 14.591 हजार हेक्टेयर में अलसी की बुवाई हुई है। अगर पूरे प्रदेश की बात की जाए तो इस बार प्रदेश में 38.223 हजार हेक्टेयर में अलसी की बुवाई हो चुकी है। पूरे देश में अलसी की खेती सबसे ज्यादा उत्तर प्रद्रेश और मध्य प्रदेश में की जाती है।

प्रदेश में अलसी की खेती को बढ़ावा देने के लिए विभाग की तरफ से काम किया जा रहा है। जिन मंडलों में इसकी बुवाई कम हुई है उन मंडलों में भी इसकी बुवाई आने वाले दिनों में अधिक हो इसके लिए प्रयास किया जाएगा।
ज्ञान सिंह, कृषि विभाग के निदेशक

कुटीर उद्योग को मिल सकता है बढ़ावा

अलसी प्रदेश के कुटीर उद्योग भी एक नई दिशा दे सकती है। अलसी के ठंडल में रेशे पाए जाते हैं जिनसे बैग्स, दरी और मोटे वस्त्र भी बनते हैं। इसको लिनेन फाइबर भी कहते हैं। हिमाचल प्रदेश में इसके अलसी के रेश से बनने वाले कपड़ों केा लेकर बड़ी-बड़ी इकइयां काम कर रही हैं। जबकि उत्तर प्रदेश में अभी इस पर काम नहीं हुआ है।

किसानों की इसकी खेती के महत्व के बारे में बताने के साथ ही उन्हें जागरूक करने की जरूरत है। जिससे प्रदेश में दोबारा अलसी की खेती बड़ी संख्या में हो सके।
डॉ. ए.के.सिंह, कृषि वैज्ञानिक, नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय

अलसी तेल के फायदे

अलसी में मौजूद फाइबर चर्बी और कोलेस्ट्रोल को शरीर के द्वारा अवशोषित होने से रोकते हैं जिससे यह शरीर में कोलेस्ट्रोल लेवल को कम करने में मदद करते हैं। इसके साथ ही अलसी के बीज हाई ब्लडप्रेशर में भी फायदा पहुंचाते हैं।

अलसी के बीज में सेल्यूलोस का ही एक रूप, लिग्निन भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो ब्लड शुगर को कम करने में काफी सहायक है। तो यदि आपको डायबिटीज है, तो किसी भी तरह से अलसी की 25 ग्राम मात्रा को अपनी डाइट में शामिल कर लें। शरीर में मौजूद टोक्सिंस और गंदगी के कारण कैंसर होने का खतरा बना रहता है। फिर से यहां लिग्निन शरीर में मौजूद टोक्सिंस, गंदगी और कोलेस्ट्रोल को एक साथ कर के मल के साथ बाहर निकाल देता है।

  • इसके सेवन से प्रोस्टेट कैंसर, कोलोन कैंसर और ब्रैस्ट कैंसर से बचा जा सकता है।
  • अलसी में मौजूद फाइबर पेट को साफ रखता है।
  • शरीर को ऊर्जा और स्फूर्ति प्रदान करती है।
  • अलसी के बीज के तेल से चेहरा चमकदार हो जाता है।
  • जलने पर अलसी के तेल का इस्तेमाल करने से तुरंत आराम मिलता है।
  • अलसी के सेवन से मासिक धर्म के समय होने वाली समस्याओं से राहत मिलती है।

पशुओं से नुकसान होने का है खतरा कम

अलसी की खेती के लिए कम सिंचाई की की जरूरत पड़ती है। उत्तर प्रदेश वह क्षेत्र है जहां पर सिंचाई की कम सुविधा है वहां पर इसकी अच्छी खेती हो सकती है। बुंदेलखंड में हालांकि इसकी खेती हो रही है लेकिन इसकी खेती को यहां पर और अधिक बढ़ाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश के वह क्षेत्र जहां पर आवारा पशुओं खासकर नीलगाय के आतंक से खेत में खड़ी फसलों को खतरा है वहां पर अलसी की खेती बेहतर विकल्प है। क्योंकि इसकी खेती को पशु नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। अलसी के पौधे के तने में सेल्यूलोज युक्त एक रेशा पाया जाता है। जिसके कारण इसके पौधे को अगर पशु खाता है तो यह उसके गले की फंसने की संभावना रहती है। यह झाड़ीयुक्त फसल होती है जिसके कारण भी इसको चरन से पशु बचते हैं।

मदद नहीं मिलने से किसान अलसी की खेती से हो रहे दूर

देशभर में औषधीय दवा बनाने वाले कंपनियों से लेकर पशुओं के लिए चारा बनाने वाली इकाईयों में अलसी की मांग बढ़ रही है, लेकिन इसके बाद भी इसकी खेती सिमट रही है। गोरखपुर जिले के खजनी ब्लाॅक के सैरो गाँव के किसान रामनारायण यादव ने बताया “एक दशक पहले तक उनके गाँव में सैकड़ों एकड़ में अलसी की खेती होती थी। तीसी का बाजार में बढ़िया दाम भी मिलता और तीसी की पेराई करके तेल और इसकी खली भी मिल जाती थी। यह खली दुधारू पशुओं के लिए बेहतर चारा काम भी करती थी।”

उन्होंने बताया कि बाद के इसकी खपत अचानक से कम हेाने लगी। इसके बीज मिलना मुश्किल हो गया। जिसके कारण तीसी की अब खेती नहीं होती। उत्तर प्रदेश कृषि विभाग ने अलसी की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई बार योजनाएं तैयार कीं। किसानों को बीज उपलब्ध कराने की बात हुई लेकिन यह योजना आगे नहीं बढ़ पाई।

     

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