लखनऊ। वर्ष 2017 में अक्टूबर के महीने में डीजल की औसत कीमत करीब 57 रुपए लीटर थी, जो साल 2018 के अक्टूबर महीने में 75 रुपए लीटर तक पहुंच गई। डीजल एक साल में करीब 17-18 रुपए प्रति लीटर महंगा हुआ, जबकि डीएपी 380 रुपए, पोटाश 350-400 रुपए प्रति बोरी और कीटनाशकों की कीमतों में 30-40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। जिसके चलते गेहूं किसानों पर प्रति एकड़ करीब 3000 रुपए अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है।
देश के कई राज्यों में धान कट चुके हैं, जबकि यूपी-बिहार समेत कई राज्यों में कटाई जारी है। रबी सीजन में गेहूं और आलू बोने की तैयारी कर रहे किसान खेती की बढ़ती लागत से परेशान हैं। डीजल, उर्वरक, बीज और फसल सुरक्षा उत्पाद महंगे हो गए हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सोनवा गांव के किसान अंबुज दीक्षित (32 वर्ष) के पास चार एकड़ के खेत है, जिसमें वो गेहूं बोएंगे। अंबुज दीक्षित बताते हैं, “डीजल महंगा होने से सब कुछ काफी महंगा हो गया है। पिछले साल जुताई के लिए ट्रैक्टर वाला 400 रुपए प्रति घंटे ले रहा था जो अब 500 हो गया है। सिंचाई भी 100 से बढ़ कर 150 रुपए प्रति घंटा हो गई है। डीएपी भी 400 रुपए महंगी हो गई। यानि पिछले साल की अपेक्षा इस बार एक एकड़ में गेहूं में कम से कम 3000 रुपए की ज्यादा लागत आएगी।” मोटे तौर पर देखें तो जुताई के खर्च में करीब 500-600, सिंचाई में 1200-1500, डीएपी में 350, यूरिया में 25, पोटाश 350 और एक एकड़ के बीज में इस साल 150 रुपए का फर्क आएगा। (आंकड़े दुकानदार और किसानों से बातचीत पर आधार पर)
स्नातक तक पढ़े अंबुज एक एकड़ गेहूं की खेती की औसत लागत समझाते हैं। “धान काटकर गेहूं बोने में पलेवा से लेकर बुवाई तक 5 जुताई और फसल कटाई तक कम से कम पांच सिंचाई होती हैं, इस तरह जोड़े तो जुताई 600-1000 रुपए, सिंचाई 1500 रुपए, डीएपी, 400 रुपए महंगी हो गयी और सरकार ने गेहूं की एमएसपी में 105 रुपए प्रति कुंतल की बढ़ोतरी की है, इस तरह हिसाब लगाइए तो किसान की आमदनी बढ़ेगी नहीं, बल्कि लागत निकालना मुश्किल हो जाएगा।”
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भारत सरकार ने रबी सीजन के लिए 21 फसलों का न्यूनतम सरकारी खरीद मूल्य बढ़ाया था। विपणन वर्ष 2018-19 के लिए गेहूं की प्रति कुंतल मूल्य 1,840 रुपए किया जोकि 2017-18 के 1,735 मुकाबले 105 रुपए ज्यादा है, ये पिछले वर्ष के मुकाबले 6 फीसदी ज्यादा है। पिछले वर्ष अक्टूबर महीने में डीजल 57.28 पैसे प्रति लीटर (दिल्ली में) था। जो अक्टूबर 2018 के तीसरे हफ्ते में 75 (औसतन) और 25 अक्टूबर को 73 रुपए लीटर था। ये कीमतें पिछले साल के मुकाबले 28 फीसदी ज्यादा हैं। वहीं गेहूं के लिए जरूरी उर्वरकों डीएपी, एमओपी, यूरिया और जिंक आदि की कीमतों में 25 से लेकर 40 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है।
डीजल महंगा होने से सब कुछ काफी महंगा हो गया है। पिछले साल जुताई के लिए ट्रैक्टर वाला 400 रुपए प्रति घंटे ले रहा था जो अब 500 हो गया है। सिंचाई भी 100 से बढ़ कर 150 रुपए प्रति घंटा हो गई है। डीएपी भी 400 रुपए महंगी हो गई। यानि पिछले साल की अपेक्षा इस बार एक एकड़ में गेहूं में कम से कम 3000 रुपए की ज्यादा लागत आएगी।
अंबुज दीक्षित, किसान, लखनऊ, यूपी
लखनऊ में बीज और कीटनाशकों के बड़े व्यापारी गोमती एग्रो इनपुट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक वीपीएस मलिक बताते हैं, “डीएपी 1050 रुपए से बढ़कर 1400 रुपए प्रति बैग, (50 किलो), पोटाश 550 रुपए से बढ़कर 800 रुपए किलो हो गई है। कीटनाशकों में 18 फीसदी जीएसटी लगने के बाद करीब 20-35 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है।’ यूरिया के रेट में ज्यादा अंतर नहीं है लेकिन 50 किलो वाली बोरी 45 किलो की हो गई है। गेहूं का बीज पिछले वर्ष 22 से 24 रुपए किलो था, जो कि अब 26 से 35 रुपए किलो तक पहुंच गया है।
हालांकि सरकारी स्टोर पर गेहूं के बीच के रेट में कोई अंतर नहीं है। बाराबंकी जिले के सूरतगंज में राजकीय बीज भंडार के प्रभारी सिद्धार्थ मिश्रा बताते हैं, हमारे यहां गेहूं की एचडी 2967, डीबीडब्ल्यू 17, डीबीडब्ल्यू-16 समेत 5 किस्मों के आधार और प्रमाणित बीज होते हैं, जिनकी वर्ष रेट करीब 34.60 पैसे था इस बार भी 35 रुपए प्रति किलो के अंदर है। फाउंडेशन (आधारित) बीज करीब 3 रुपए महंगे होते हैं, लेकिन इन सभी पर 50 फीसदी सब्सिडी मिलती है।” सिद्धार्थ हर साल करीब 400 कुटल बीज बेचते हैं, लेकिन ये उनके एरिया हिसाब से काफी कम हैं, उनके मुताबिक ऐसे किसानों की संख्या सिर्फ 20-30 फीसदी ही है। सरकार फाउंडेशन बीज पर सिर्फ एक बार सब्सिडी देती है। फाउंडेशन बीज जो किसान बीज के लिए खेती करते हैं।
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देश में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार मध्य प्रदेश से लेकर ज्यादातर राज्यों में गेहूं की बुवाई 15 नवंबर से शुरू होती है। आने वाले दिनों में कृषि लागत और बढ़ सकती है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की कीमत गिरने से उर्वरकों के लिए कच्चा माल महंगा हो रहा है। बिना यूरिया वाले उर्वरकों जैसे डीएपी (डी-अमोनिया फॉस्फेट), पोटाश (म्यूरिएट ऑफ पोटाश) और एनपीके (नोइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम) की कीमतें 2018-19 के चालू रबी सीजन में और बढ़ सकती हैं। उर्वरकों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार कंपनियों को क्षतिपूर्ति करती है। लेकिन इन नॉन यूरिया उर्वरकों को दी जाने वाली सब्सिडी को 2018-19 के लिए नहीं बढ़ाया है। आईसीएआर की रेटिंग एजेंसी के हवाले से बिजनेस स्टैंडर्ड ने लिखा है कि इस साल खरीफ सीजन के दौरान डीएपी की कीमतें 12 से 13 से फीसदी बढ़ी हैं जबकि पोटाश की कीमतें 25 से 30 फीसदी बढ़ी है जो कि रबी सीजन में और बढ़ सकती है।
डीजल के साथ ही उर्वरकों की बढ़ती कीमत से सरकार के सामने भी संकट हैं। क्योंकि रबी सीजन के दौरान ही जिन 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं, उनमें से 4 राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ में कृषि प्रमुखता वाले हैं। समस्या ये भी है कि सरकार ने खरीफ की फसलों के लिए जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी घोषित किया था वो ज्यादातर किसानों को नहीं मिल रहा, जिससे असर भी किसानों पर पड़ा रहा है।) बंटाई के खेत में अपने पति के साथ धान काट रही लखनऊ में गाजीपुर गांव की सुनीता बताती हैं, “एक कुंतल धान की कीमत बाजार में करीब 1400 रुपए है, उतने की ही एक बोरी डीएपी मिलेगी। इस तरह तो किसान मर जाएगा, लेकिन सरकार और बाकी लोगों का ध्यान रखना चाहिए किसान खेती छोड़ देगा तो बाकी लोगों को भूखे पेट सोना पड़ेगा।’
सोनवा गांव के युवा किसान अंबुज दीक्षित के मुताबिक 2400 की आबादी वाले उनके गांव के 60 फीसदी से ज्यादा लोग खेती करते हैं लेकिन बहुत कम लोग सरकारी लेबी पर धान-गेहूं बेचते हैं। अंबुज कहते हैं, “सरकार को चाहिए कि किसानों के लिए डीजल पर छूट दे, किसानों को प्रति एकड़ डीजल छूट पर मिलना चाहिए।”
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) दिल्ली, के एग्रो इकनॉमिस्ट डॉ. गिरीश झा फोन पर गांव कनेक्शन को बताते हैं, “पिछले वर्ष के मुकाबले खेती की लागत बढ़ी है, क्योंकि पेट्रोलियम की कीमतें बढ़ी हैं, डीजल, डीएपी, मोबिल सब उसी से जुड़े हैं। दूसरा एमएसपी का फायदा तब है जब सब किसान उस पर बेच पाएं। हमें बाजार भाव को देखते हुए लागत देखनी होगी। पंजाब और हरियाणा का किसान एमएसपी के लिए खुश हो सकता है, यूपी बिहार का नहीं।” वो आगे कहते हैं, “किसानों की आय बढ़ाने के लिए जरुरी है कि इनपुट कास्ट (लागत) कम की जाए। इसके लिए अगर सिंचाई की पर्याप्त सुविधा हो तो उत्पादन बढ़ने से किसानों की लागत घट सकती है।’ गिरीश का इशारा पंजाब और हरियाणा राज्य की तरफ था, जहां का ज्यादातर हिस्सा सिंचित है। गुजरात और मध्य प्रदेश में सिंचाई के लिए बिजली की लाइन ही अलग हैं।
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2011 की जनगणना के राष्ट्रीय स्तर पर जहां कुल असिंचित भूमि 40 प्रतिशत है, वहीं उत्तर प्रदेश की 55 प्रतिशत जमीन पर आज भी सिंचाई की सुविधा उपलब्ध नहीं है। उत्तर प्रदेश में महज 31 प्रतिशत जमीन ऐसी है, जहां दो फसलों के लिए सिंचाई की पर्याप्त और सुनिश्चित सुविधा उपलब्ध है।
किसानों की आय बढ़ाने के लिए जरुरी है कि इनपुट कास्ट (लागत) कम की जाए। अगर सिंचाई की पर्याप्त सुविधा हो तो उत्पादन बढ़ने से किसानों की लागत घट सकती है।
डॉ. गिरीश झा, कृषि अर्थशास्त्री, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली
दिल्ली के पूसा संस्थान में इसी वर्ष फरवरी महीने में 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने पर हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिन चार चीजों पर जोर दिया था, उनमें पहला था लागत घटाना, और दूसरा उपज का सही दाम मिलता शामिल था।’ लेकिन जिस अनुपात में डीजल से लेकर पेस्टीसाइड तक कीमतें बढ़ी हैं, वो पीएम की प्राथमिकताओं में आड़े नजर आ रही हैं। लखनऊ के ही बड़े बीज और कीटनाशक सप्लायर गणपती सीड कंपनी के निदेशक नितिन गुप्ता कहते हैं, खेती से जुड़े उत्पादों की कीमत में 10 फीसदी की बढ़ोतरी ही किसानों पर काफी असर डालती है। क्योंकि किसान कोई सरकारी कर्चमारी नहीं जिसे हर महीने तनख्वाह मिलती है, काफी मेहनत और लागत के बाद उसे तीन-चार महीने में कुछ रुपए बचते हैं।”
“किसान का ज्यादा खर्च सिंचाई में आता है। इसलिए ड्रिप इरीगेशन (बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली) अपनाना होगा, सरकार इस पर 90 फीसदी तक अनुदान दे रही है। किसान की लागत इसलिए ज्यादा आती है क्योंकि वो अंधाधुंध डीएपी, यूरिया का इस्तेमाल करते हैं। ज्यादातर किसान आज भी मिट्टी की जांच नहीं कराते हैं। किसानों को चाहिए उर्वरकों की जगह देसी खादों (कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट) का प्रयोग बढ़ाएं। इससे लागत घटेगी और सेहत भी सुरक्षित रहेगी।” डॉ. दया श्रीवास्तव, फसल सुरक्षा वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र कटिया सीतापुर कहते हैं। दिसबंर महीने से भारत में 40 से ज्यादा कीटनाशक का उत्पादन बंद हो रहा है। जिसके चलते खरपतावार नाशक और कीटनाशकों की कीमतें बढ़ी हैं।
पराली की समस्या से जूझ रहे पंजाब के करनाल से लौट रहे दिल्ली में रहने वाले कृषि जानकार रमनदीप सिंह मान कहते हैं, “सरकार ने धान पर 200 रुपए, गेहूं पर जो 105 रुपए बढ़ाए वो सब बराबर हो गए हैं। सरकार के कहे और किए में बड़ा फर्क है। पंजाब का उदाहरण लीजिए, सरकार चाहती है पराली न जलाई जाए, सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम (मशीन) खरीदने पर भारी सब्सिडी दे रही, लेकिन मैं कई जिलों में गया मशीनें नजर नहीं आईं, यानि सरकारी फाइल और जमीनी हकीकत में अंतर है। अगर किसान पराली नहीं जलाएगा तो 4000-5000 रुपए प्रति हेक्टेयर का उस पर अतिरिक्त खर्च आएगा। इसलिए जुर्माना देकर भी किसान पराली जला रहे हैं। ये सरकार की विफलता है।’ पंजाब, हरियाणा, यूपी और दिल्ली इलाके फसल अवशेष न जलाएं जाएं इसके लिए पीएम की अध्यक्षता वाली मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने 1151.80 करोड़ रुपए मंजूर किए थे।
किसान का ज्यादा खर्च सिंचाई और उर्वरक पर आता है। सरकार बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली पर 90 फीसदी तक अनुदान दे रही है किसानों को उसे अपनाना चाहिए। दूसरा उर्वरक पर खर्च इसलिए भी ज्यादा आता है क्योंकि वो इसका अंधाधुंध इस्तेमाल करते हैं। किसानों को चाहिए मिट्टी की जांच कराकर उर्वरक डालें और गोबर खाद और वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल वो लागत घटा सकते हैं।
डॉ. दया श्रीवास्तव, फसल सुरक्षा वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र कटिया, सीतापुर
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उर्वरकों पर गिरते रुपए का असर
डीएपी में प्रयोग आने फास्फोरिक एसिड की कीमत इस साल जुलाई से सितंबर के बीच 34 फीसदी प्रति टन बढ़ी (758 डॉलर, 55466 रुपए) है। जबकि रबी सीजन ये बढ़कर 800 डॉलर (58540) तक पहुंच सकती है। वहीं अमोनिया की कीमत भी पर मीट्रिक टन पर 721 रुपए बढ़ चुकी है। इन दोनों की कीमतों को ही जुड़कर देख जाए तो डीएपी की कीमत 12 से 13 फीसदी और बढ़ जाएगी। जून 2019 से सिंतबर 2019 तक पोटाश की कीमत 290 डॉलर (21220 रुपए) प्रति टन तय की गयी हैं। जो कि पिछले साल की अपेक्षा 50 डॉलर (3658 रुपए) ज्यादा है। आईसीएआर के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट के रविचंद्रन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया “सरकार ने 2018-19 के सब्सिडी के लिए 70000 करोड़ स्वीकृति किया है जो की लागत के हिसाब बहुत कम है। ऐसे में किसानों को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा।”
आमदनी दोगुनी करने पर मंथन जारी
नयी दिल्ली (भाषा)। कृषि मंत्रालय 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समिति की सिफारिशों पर गौर कर रहा है। राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) अशोक दलवाई की अध्यक्षता वाली समिति ने वर्ष 2015-16 की थोक कीमतों के आधार पर 2022 तक किसानों की सालाना आय 96,000 रुपए से बढ़ाकर 1.92 लाख रुपए करने के संबंध में विस्तृत रणनीति के साथ रिपोर्ट जमा की है। कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने दिल्ली में भारतीय खाद्य एवं कृषि परिषद (आईसीएफए) के एक कार्यक्रम में कहा, “अंतर-मंत्रालयी समिति ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के संबंध में सिफारिशें जमा करायी हैं। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए कृषि मंत्री अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे हैं।” अग्रवाल ने कहा कि समिति ने कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र दोनों के अधिक निवेश करने की जरूरत पर बल दिया है। समिति के कुछ विचारों को लागू किया जा रहा है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्म से 585 थोक मंडियों को जोड़ना और देशभर में मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना करना शामिल है।