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डबलिंग इनकम : खस के साथ बथुआ या इकौना की खेती कर किसान बढ़ा सकते हैं आमदनी

Central Institute of Medicinal and Aromatic Plants

पिछले एक दशक से औषधीय फसलों की खेती के बढ़ते चलन के कारण किसान खेतों में पारंपरिक फसलों की जगह कई एरोमैटिक (औषधीय) फसलें उगाकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। अगर आप के पास कम खेत हैं और आप कम समय में अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो ख़स के साथ बथुआ की सहफसली खेती अपके लिए एक बेहतर विकल्प है।

सीतापुर जिले के बम्भौरा गाँव में 30 एकड़ में एरोमैटिक पौधों ( ख़स, पामारोज़ा और लेमन ग्रास) की खेती कर रहे हर्ष चंद्र वर्मा ( 51 वर्ष) ने इस वर्ष अपनी खेती में एक नया प्रयोग किया है। उन्होंने इस वर्ष अपने दो एकड़ खेत में बथुआ की फसल के साथ ख़स की खेती शुरू की है। इस सहफसली खेती के बारे में किसान हर्ष चंद्र बताते हैं,” हम इस समय बथुआ और ख़स की खेती एक साथ कर रहे हैं। यह सहफसली खेती करने के लिए किसान बथुआ और ख़स की बुवाई एक साथ कर सकते हैं। एक एकड़ में ख़स की 24,000 पौध मिलती है और करीब दो से तीन किलो बथुआ की पैदावार होती है।”

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राष्ट्रीय औषधीय बोर्ड के अनुसार उत्तर प्रदेश में 2,50,000 हेक्टेयर क्षेत्र में औषधीय खेती की जाती है। देश में ख़स की खेती राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड  और मध्य प्रदेश में मुख्यरूप से की जाती है। उत्तर प्रदेश में औषधीय पौधों का व्यापार प्रतिवर्ष पांच हज़ार करोड़ रुपए होता है।

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छह महीने में तैयार हो जाती है बथुआ की फसल।

ख़स और बथुआ की सहफसली खेती करने के तरीके के बारे में हर्ष चंद्र आगे बताते हैं,” खेत में क्यारियां तैयार करके एकबार सिंचाई करने के बाद डेढ़ फिट के अंतराल पर बथुआ और ख़स की बुवाई कर दी जाती है। दोनो ही फसलों छह महीने में पक कर तैयार हो जाती हैं। इस समय बाज़ार में बथुआ 4,000 रुपए प्रति कुंतल और एक किलो ख़स का रेट 24,000 रुपए है।”

मेहमूदाबाद तहसील में कई तरह की औषधीय फसलों की खेती कर रहे किसान हर्ष चंद्र समय समय पर एरोमैटिक फसलों की खेती करने के तरीकों के बारे में सीमैप के वैज्ञानिकों से भी जानकारी लेते रहते हैं। इसके अलावा एरोमेटिक पौधों की सफल खेती करने का तरीका सीखने के लिए उनके फार्म पर दूसरे राज्यों से औषधीय पौधों व इससे जुड़े उत्पादों के व्यवसायी भी आते रहते हैं।

देश में कई राज्यों में औषधीय फसलों की मार्केटिंग और विदेशी कंपनियों को औषधीय फसल उगाने वाले किसानों से जोड़ने का काम कर रहे आंध्रप्रदेश के व्यवसायी सिवा महेश बताते हैं, ” पिछले पांच वर्षों में भारत में एरोमेटिक क्रॉप्स की खेती में तेज़ी से बढ़ी है। चाईना, जापान और अमेरिका जैसे देशों में काम रही दवाईयों की बड़ी कंपनियां आज भारत का रुख कर रही हैं। ख़स और लेमनग्रास के तेल की डिमांड इन देशों में काफी ज़्यादा है।”

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उत्तर प्रदेश में गाजीपुर, सीतापुर, बाराबंकी, कन्नौज, अलीगढ़, सोनभद्र और मिर्जापुर जिलों में ख़स की औषधीय खेती बड़े पैमाने में की जाती है। भारत में 6,000 से ज्यादा किस्मों के औषधीय पौधे पाए जाते हैं। ख़स से मिलने वाले तेल का उपयोग सुगंधित सुपारी , इत्र और फ्लेवर्ड कोल्ड ड्रिंक्स में बड़ी मात्रा में किया जाता है। ख़स की जड़ों से तेल निकालने के बाद जो घास बचता है उससे खिड़की एवं कूलर के पर्दे बनाए जाते हैं।

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ख़स की सहफसली खेती के बारे में सीमैप के कृषि वैज्ञानिक भास्कर शुक्ला बताते हैं, ” अगर कोई किसान एरोमैटिक फसलों की खेती शुरू करना चाहता है, तो उसके लिए ख़स से बेहतर और कोई खेती नहीं हैं। सीमैप एरोमा मिशन की मदद से किसानों को ख़स की खेती करने के लिए बढ़ावा दे रहा है। किसान इसकी खेती कैसे शुरू करें, इसकी पूरी जानकारी सीमैप आकर ले सकते हैं।”

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