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भारी सब्सिडी के बावजूद किसान नहीं कर रहे बूंद-बूंद सिंचाई योजना के लिए आवेदन

जैविक खेती

रवींद्र वर्मा, कम्यूनिटी जर्नलिस्ट

बाराबंकी। टपक/फुहारा सिंचाई से पानी की बचत, लागत में कमी, उत्पादन में वृद्धि, व उच्च गुणवत्ता की फसल होती है। केंद्र और राज्य सरकार दोनों मिलकर मोटी सब्सिडी भी दे रहे हैं, करोड़ों रुपये का बजट भी खाते में है लेकिन लाभार्थियों की संख्या काफी कम है।

सिंचाई में वरदान साबित हो सकती है ये व्यवस्था।

पानी की बचत और खेती की लागत कम करने के लिए पिछले कई वर्षों से बूंद-बूंद सिंचाई समेत दूसरे विधियों को प्रोत्साहित करने की कवायद चल रही है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत किसानों को इसके लिए उद्यान विभाग द्वारा अनुदान भी दिया जा रहा है, जिसमे राज्य व केन्द्र सरकार मिलकर निर्धारित दर का 67% व 56% ( क्रमशः लघु व सामान्य) अनुदान दिया जाना है। इसके लिए पूरे प्रदेश में बजट है परंतु कमोवेश हर जगह लाभार्थियों की कमी है।

बाराबंकी में पहले 20 लाख की धनराशि दी गयी थी, जिसके खर्च हो जाने पर और धनराशि का आवंटन होना था, परंतु लगभग 5 लाख ही अभी तक खर्च हो पाया है, जबकि 2016-17 समाप्ति पर है।

धुवांधार हुए पंजीकरण

पहले तो किसानों ने बढ़चढ़ कर पंजीकरण कराया कुछ ने अपनी मर्जी से तो कुछ कर्मचारियों ने ही विभाग के दबाव में आकर अपने छेत्र के किसानों का पंजीकरण करा डाला। बाराबंकी में रसूलपुर के किसान राम लोटन (61 वर्ष) कहते है, “ड्रिप सिस्टम तो बहुत अच्छा है, इससे बहुत लाभ है, परंतु मेरे पास पहले पैसे लगाने के लिए पूँजी नहीं है।”

डीबीटी के जरिए मिलती है सब्सिडी, पहले लगाना होता है पूरा पैसा

हरख के सिमांत किसान ऋषि कुमार कहते हैं, “इस सिंचाई से पैदावार में वृद्धि हो जाती है और पानी भी बचता है परंतु लागत ज्यादा होने से पहले लगाना मेरे लिए संभव नहीं है।” बताते चलें की इस योजना में भी डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) सिस्टम लागू है, जिसमे किसान को पहले अपने पास से लगाना है और बाद में अनुदान की धन राशि खाते में जाती है।

बाराबंकी के जिला उद्यान अधिकारी जय करण सिंह कहते है, “लागत अधिक होने की वजह से किसान पहले लगाने में असमर्थता जता रहे हैं। प्रयास में हूँ अंत तक लक्ष्य पूरा हो जाना चाहिए।”

बूंद-बूंद सिंचाई, टपक और फव्वारा के लिए सरकार फसल से लेकर बागवानी तक के लिए अऩुदान देती है। सब्जियों की खेती यानी शाकभाजी के लिए इसकी लागत एक लाख, केले के लिए 84400, पपीता के लिए 58400, अमरुद के लिए 33900 और आम के लिए 23500 प्रति हेक्टेटर निर्धारित है।

पोस्ट डेटेड चेक देकर किसान उठा सकते हैं लाभ

वहीं माइक्रो इरिगेशन के उत्तर प्रदेश में नोडल याधिकारी एलएमएल त्रिपाठी कहते है कि “लाभार्थी रजिस्टर्ड कंपनियों को विश्वास में लेकर पोस्ट डेटेड चेक देकर भी योजना का लाभ ले सकते हैं।”

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