भारत में फूल गोभी एक महत्वपूर्ण फ़सल है, जिसकी बुवाई जून-जुलाई में की जाती है और सितंबर-अक्टूबर में फ़सल तैयार हो जाती है। इसकी ख़ेती में कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए।
अगेती बुवाई करते समय किस्मों का ख़ास ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए कुछ किस्में विकसित की गई हैं, जैसे पूसा मेघना, जो सितंबर अंतिम से मध्य अक्टूबर तक तैयार होती है। पूसा कार्तिक और पूसा अश्विन ये दोनों अक्टूबर में तैयार होती हैं।
अगेती खेती के लिए पौध तैयार करते समय भी ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए जगह का चुनाव विशेष रूप से करना चाहिए , एक तो जलभराव वाली जगह ना हो और दूसरी कोई ऐसी जगह ना ले जहाँ पहले से कोई कीट या दीमक की समस्या हो।
जगह के चुनाव के बाद मृदा (यानी जमीन के ऊपर का हिस्सा) का उपचार करना ज़रूरी होता है, इसके लिए 3 प्रतिशत का कैप्टान का घोल बना कर उस जगह की ड्रेचिंग कर देनी चाहिए।
अगर पूरी तरह से जैविक ख़ेती करना चाहते हैं, तो लगभग 100 किलो गोबर की सड़ी खाद में एक किलो ट्राईकोडरमा मिलाकर सात-आठ दिन रखें, इसके बाद उसे खेत में मिलाकर अच्छे से जुताई कर लें।
खेत की जुताई के बाद लगभग तीन से पाँच मीटर लंबी और एक मीटर चौड़ी बेड बनाए, जो 15-20 सेमी उठी होनी चाहिए और एक बेड से दूसरे बेड के बीच लगभग एक मीटर की दूरी हों। इससे जल निकासी और निराई-गुड़ाई में आसानी रहती है।
बीज़ बुवाई से पहले बीज़ उपचार करना ज़रूरी होता है, इसके लिए दो ग्राम बावस्टीन प्रति किलो बीज़ के दर से उपचारित करें। एक हेक्टेयर के लिए लगभग 600 से 750 ग्राम बीज़ की ज़रूरत होती है, बीज़ उपचार के बाद बेड के ऊपर बुवाई करें। पहले से तैयार बेड पर पाँच से सात सेमी दूरी पर एक से डेढ़ इंच की दूरी पर लाइन बनाएँ और उसी लाइन के अंदर बुवाई करें।
बीज़ बोते समय ध्यान रखें, अगर ज़्यादा बीज डालेंगे तो पौधे पास-पास उगेंगे और कमज़ोर रहेंगे। एक हेक्टेयर की नर्सरी तैयार करने के लिए 30 से 40 बेड की ज़रूरत होती है।
बीज़ बुवाई के बाद ऊपर से सूखी घास की मल्चिंग कर देते हैं, इसमें सुबह-शाम पानी डालते रहना चाहिए, तीन से चार दिनों में जर्मिनेशन शुरू हो जाता है। इसे धीरे-धीरे शाम के समय घास हटा दें और पानी डालें। दो ग्राम बावस्टीन का घोल बनाकर छिड़काव करें और सात-आठ दिनों तक सुबह-शाम हल्की सिंचाई करते रहें। इसके सात-आठ दिनों बाद हल्की गुड़ाई करें, जिससे खरपतवार भी निकल जाएँगे।
40-45 दिनों में नर्सरी तैयार हो जाती है। इस दौरान ये ध्यान रखें कि जून-जुलाई के महीने में तेज़ गर्मी के साथ बारिश भी होती है, जिससे पौधे ख़राब हो सकते हैं। इसलिए कोशिश करें की नेट के अंदर ही नर्सरी तैयार हो।
(डॉ श्रवण सिंह, आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में वैज्ञानिक हैं)