मिशन 2019 में जुटी नरेंद्र मोदी सरकार के चौथे साल में संसद बजट सत्र शुरू हो गया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने अभिभाषण और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते हुए ये बात दुहराई कि किसानों की आय 2022 दो गुनी हो जाएगी। लेकिन क्या ऐया हो सकता है। संकट से जूझ रहे कृषि क्षेत्र के किसानों की आय वर्तमान सरकार पिछले चार साल में चार फीसदी ही बढ़ा सकी है। ऐसे में क्या आगामी चार वर्षों में सरकार अपने वादे को पूरा कर पाएगी ?
आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष में कृषि ग्रोथ 2.1 प्रतिशत रहने का अनुमान। सेंट्रल स्टैटस्टिक्स ऑफिस (CSO) ने भी यही आंकड़ें पेश किए थे। ये रिपोर्ट किसान और व्यापारियों को परेशानी में डाल सकती है। वर्तमान वित्त वर्ष में कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों की वृद्धि दर मात्र 2.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में यही दर 4.9 प्रतिशत थी। ऐसे में किसानों की आय दो गुना कैसे हो पाएगी।
सरकार ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय में स्वीकार किया कि मुख्य रूप से नुकसान और कर्ज की वजह से पिछले चार वर्षों में लगभग 48,000 किसान अपनी जान दे चुके हैं। सरकार के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 1997-2012 के दौरान करीब ढाई लाख किसानों ने अपना जीवन गंवाया। जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक 2001 और 2011 के बीच 90 लाख किसानों ने खेती करना छोड़ दिया। इसी अवधि में कृषि श्रमिकों की संख्या 3.75 करोड़ बढ़ी, यानी कि 35% की वृद्धि हुई। सरकार के इन दावों के बीच वो ख़बरें और किसान भी हैं, जो अपनी उपज की लागत तक निकालने के लिए जद्दोजहद करे रहे हैं।
यूपी में आलू, राजस्थान में मूंगफली को खरीददार नहीं मिले। पंजाब से किसानों की आत्महत्या की ख़बरें आना जारी हैं। राजस्थान में गंगानगर के डेलवा पदमपुर में रहने वाले प्रगतिशील किसान हरविंद्र सिंह कहते हैं, “किसान का भला हो भी कैसे, किसान की उपज के अनुपात में वो जो खरीदता है (उर्वरक, कीटनाशक, डीजल) के काम 10 गुना से ज्यादा बढ़े हैं।’
सरकार के ये आंकड़े और अनुमान उस साल (2017) पर निर्भर हैं, जब आजादी के बाद का दूसरा सबसे बड़ा किसान आंदोलन हुआ था, शीतलकालीन सत्र में किसान संगठन संसद मार्ग पर अपनी व्यथा बता चुके है।
देश के 187 किसान संगठनों की अगुवाई वाली अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के संयोजक और और स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव कहते हैं, “उत्पादन में बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है। इसमें मौसम और नोटबंदी की भूमिका सबसे ज्यादा रही। सरकार की कृषि निति का पूरा ध्यान उत्पादन पर रहता है। लेकिन उत्पादक की ओर सरकार का कोई ध्यान नहीं है। सरकार पिछले साल में किसानों की आय केवल चार प्रतिशत बढ़ा पायी है। आगामी चार साल में किसानों की आय सरकार दोगुनी नहीं कर सकती।” वो आगे कहते हैं, “सरकार की नीतियां किसान विरोधी हैं। सरकार वोट के चक्कर में किसानों को लाभ नहीं दे पा रही। मौसम परिवर्तन के कारण उत्पादन नहीं बढ़ रहा, ये चिंता की बात है।”
‘डब्लिंग फार्मर्स इनकम’ (किसानों की आय दोगुनी करने) पर बनी अशोक दलवाई की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान लगाया था कि वर्ष 2011 में गैर-कृषि व्यवसाय में लगे एक व्यक्ति को एक किसान की तुलना में 3.1 गुना अधिक लाभ हुआ था। एक व्यक्ति जो कृषि मजदूर के रूप में कार्यरत था उसकी आय एक किसान की तुलना में 60 प्रतिशत कम थी।
राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा कृषि परिवारों पर 70वीं राउंड की सर्वेक्षण रिपोर्ट वास्तव में दिखाती है कि किसानों की स्थिति देश में कितनी गंभीर है। इसमें यह दिखाया गया है कि कृषि से किसानों की आय इतनी कम है कि उनका खर्च उनकी आय से अधिक है। वे किसान जिनका एक एकड़ से कम भूमि पर स्वामित्व या कृषि करते थे, उन्हें कृषि कार्यों से केवल 1,308 रुपए प्रति माह अर्जित किया जबकि उनके घर का मासिक व्यय 5,401 था। 4,093 रुपए के शेष व्यय को पूरा करने के लिए उस परिवार को खेती के अलावा अन्य स्रोतों की तलाश करनी पड़ी। ज्यादातर निजी ऋणदाता है जो उच्च ब्याज दरों पर पैसे उधार देंगे।
2022 तक आय दोगुना करने की सच्चाई
वर्ष 2001 से वर्ष 2015 के बीच भारत में 234657 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की क्योंकि न तो उन्हें उत्पाद का उचित मूल्य मिला, न बाज़ार में संरक्षण मिला और न ही आपदाओं की स्थिति में सम्मानजनक तरीके से राहत मिली। उत्पाद की लागत बढ़ती गयी और खुला बाज़ार किसानों को निचोड़ता गया। पिछले बजट में कृषि ऋण के रूप में 10 लाख करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया। इस सवाल का जवाब कौन देगा कि सरकार किसान को कर्जा दी तो देगी, पर वह “ऋण” चुकायेगा कैसे? इसका तब भी कोई जवाब नहीं था और आज भी कोई जवाब नहीं है। वास्तविकता यह है कि “कर्जा” ही किसानों की आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण बना है।
किसानों की आय दोगुनी करने के दावे को कृषि से जुड़े विशेषज्ञ हवा-हवाई बता रहे हैं। किसानों के मुद्दे पर लिखने वाले देश के जाने-माने पत्रकार पी. साईनाथ कहते हैं, “देश में बीज, उर्वरक, कीटनाशक और साथ ही कृषि यंत्रों की कीमत तेजी से बढ़ी है, जिसका नतीजा है कि कृषि लागत तेजी से बढ़ी है, लेकिन सरकार अपनी ज़िम्मेदारियों से बच रही है। सरकार जानबूझकर कृषि को किसानों के लिए घाटे का सौदा बना रही है ताकि किसान खेती-बाड़ी छोड़ दें और फिर कृषि कॉर्पोरेट के लिए बेतहाशा फ़ायदे का सौदा हो जाए।“
छह वर्षों में से केवल दो साल ही अच्छे रहे
CSO (केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय) ने पिछले दिनों चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी के पूर्वानुमान जारी किए थे। इस अनुमान के अनुसार कृषि, वानिकी और मत्स्यन क्षेत्र की वृद्धि दर पिछले साल के मुकाबले काफी कम रहने का अनुमान है। इसका सीधा मतलब यह है कि देश और देश का किसान कृषि क्षेत्र के संकट से उबर नहीं पा रहा है। देखा जाये तो बीते 6 वर्षों में सिर्फ दो वर्ष (2013-14 और 2016-17) ही ऐसे रहे हैं, जब कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर बेहतर रही है। बाकी चार वर्षों में कृषि की विकास दर कम आंकी गई है।
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किसानों के लिए काल बनने वाली महाराष्ट्र की धरती के लातूर जिले के शिरूर पंचायत समिति के सदस्य और किसान भीमराव सांगवे का कहना है, “अगर छोटे और मझोले किसानों की फसल को सरकार 50 फीसदी लाभ देकर खरीद ले तो आत्महत्या की समस्या समाप्त हो सकती है।’ महाराष्ट्र में ही जलगांव के किसन पाटिल कहते हैं “किसानों की आमदनी बढ़ नहीं पा रही है जिससे छोटे किसान परेशान हैं। उनका कहना है कि आत्महत्या की तात्कालिक वजह कुछ भी हो लेकिन गरीबी ही मूल वजह है। सरकार की किसान कल्याण की तमाम योजनाओं का उचित लाभ छोटे किसानों को नहीं मिल पाता। बेहतर कृषि प्रबंधन के ज़रिये सरकार ऐसी योजनाओं को लागू करा कर आत्महत्याओं को रोक सकती है।”
पूरी अर्थव्यवस्था की धुरी है खेती-बाड़ी
कुल सकल घरेलू उत्पादन (GDP) के लिए ये हालांकि चिंता का विषय नहीं भी हो सकता, क्योंकि कृषि क्षेत्र का योगदान जीडीपी में कम है। लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि आधी से अधिक आबादी की आजीविका इसी क्षेत्र से चलती है। अगर कृषि का प्रदर्शन अच्छा रहता है तो इसका लाभ अर्थव्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों को भी मिलता है।
राजस्थान, गंगानगर के डेलवां पदमपुर में रहने वाले किसान हरविन्द्र सिंह कहते हैं “किसान को उनकी उपज का वाजिब दाम देने के अलावा सरकार की कोई भी योजना खेती किसान मजदूरों और युवाओं के लिए उपयोगी सिद्ध नहीं होने वाली। 2022 में आय दुगुनी तो पता नहीं कैसे करेंगी सरकार फिलहाल तो पिछले साल 4साल में आधी हो चुकी है जो अगर दोगुनी हो भी जाती है तो आज से 4 साल पहले के स्तर पर ही आ पायेगी कम से कम मेरे क्षेत्र में तो यही जमीनी हकीकत है।”
खेती में लाभान्वित होने पर ग्रामीण क्षेत्रों में मांग बढ़ती है, जिससे अंतत: मेन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को फायदा होता है और औद्योगिक गतिविधियों में तेजी आती है। ऐसे में सरकार को कृषि क्षेत्र की स्थिति सुधारने के लिए आगामी आम बजट में उपाय करने होंगे। कृषि क्षेत्रों में लगभग 60% श्रमिकों को रोज़गार मिला हुआ है। प्लानिंग कमीशन, भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार 1950-51 में कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 59.2% था जो घटकर 1982-83 में 36.4% और 1990-91 में 34.9% तथा 2001-2002 में 25% रह गया। यह 2006-07 की अवधि के दौरान औसत आधार पर घटकर 18.5% रह गया।
दसवीं योजना (2002-2007) के दौरान समग्र सकल घरेलू उत्पाद की औसत वार्षिक वृद्धि दर 7.6% थी जबकि इस दौरान कृषि तथा सम्बद्ध क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 2.3% रही। 2001-02 से प्रारंभ हुई नव सहस्त्राब्दी के प्रथम 6 वर्षों में 3.0% की वार्षिक सामान्य औसत वृद्धि दर 2003-04 में 10% और 2005-06 में 6% की रही।
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जो इस साल चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में कृषि क्षेत्र के सकल मूल्यवर्धन की वृद्धि दर पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के 4.1 प्रतिशत की तुलना में कम होकर 1.7 प्रतिशत पर आ गई है। देश के कुल जीडीपी (सकल घरेलू उत्पादन) का 18 प्रतिशत हिस्सा कृषि क्षेत्र से ही आता है। देश में कुल रोजगार का 50 फीसदी हिस्सा इसी क्षेत्र से आता है। 50 प्रतिशत आबादी कृषि पर आश्रित है।
कृषि और संबंद्ध क्षेत्र की वृद्धि दर प्रतिशत में
साल दर
- 2017-18 2.1
- 2016-17 4.9
- 2015-16 0.7
- 2014-15 -0.2
- 2013-14 5.6
- 2012-13 1.5