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हर साल आता है किसानों की जान लेने वाला ‘मौसम’

ओलावृष्टि

“फसल पककर खड़ी थी। रात को ओलावृष्टि हुई और सबकुछ खत्म हो गया। मसूर खेत में बिछी पड़ी है। देखकर रोना आ रहा है। हर साल ऐसे ही हालात बनते हैं। पिछले साल भी इसी समय आसमानी आफत बरसी थी। कर्जा चुका नहीं पाते। अब कैसे गुजर बसर होगी। फिर कर्ज लेना पड़ेगा।” ये कहना है उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के ललितपुर जनपद से 50 किमी दूर महरौनी तहसील सुनवाहा गाँव के सेवलाल सहरिया (58 वर्ष) का।

पिछले दिनों देश के कई हिस्सों में भारी ओलावृष्टि हुई। खड़ी फसलें जमीन पर बिछ गयीं। किसानों की उम्मीदों पर भगवान ने एक बार फिर पानी फेर दिया। लेकिन क्या करेंगे। किसान इन सबका आदी हो चुका है। दिसंबर से मार्च के बीच पिछले कई वर्षों से ऐसा होता आ रहा है। देश के किसी न किसी हिस्से में ओलावृष्टि होती है। और फिर आंधी-तूफान के बीच किसानों की मरने की खबरें आने लगती हैं। जनवरी से मार्च के बीच का समय किसानों के मरने का मौसम बनता जा रहा है।

इस ओलावृष्टि के कारण सदमे से अब तक 5 से ज्यादा किसान अपनी जान गंवा चुके हैं। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में गिरी फसल देखते ही किसान (36) वर्ष की मौत हो गयी। मुन्ना पर तीन लाख रुपए कर्ज था। मुन्ना ने अपने 28 बीघे जमीन में मटर बोई थी। ओलावृष्टि के कारण पूरी फसल नष्ट हो गयी। मुन्ना पटेल ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और दिल का दौर पड़ने से खेत में ही उनकी मौत हो गयी। इस ओलावृष्टि से बुंदेलखंड क्षेत्र की 80 फीसदी फसल बर्बाद हो चुकी है।

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मध्य प्रदेश, सीधी के चुरहट तहसील के किसान अनिल वर्मा कहते हैं “मैं लगभग 4 एकड़ में सोयाबीन लगाता था। लेकिन पिछले कई वर्षों से दिसंबर और फरवरी के बीच ओलावृष्टि और बारिश हो रही है। ऐसे में हमारे क्षेत्र के किसानों ने सोयाबीन लगाना तो बंद कर दिया, लेकिन इस बार की ओलावृष्टि में हमारी ग्रेहूं की फसल खत्म हो गयी है। अब या तो जान दे दें या फिर कर्ज लेकर गुजारा करें।”

10, 11 और 12 फरवरी को महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के कई जिलों में मौसम ने भारी तबाही मचाई। महाराष्ट्र में 11 जिलों के 1.25 लाख हेक्टेयर में खड़ी फसल बर्बाद हो चुकी है। 1086 गांव ओलवृष्टि की चपेट में आ गए। सूखे की मार झेल रहे महाराष्ट्र के किसानों के लिए ये महीना मुसिबत लेकर आया। मध्य प्रदेश के 12 जिलों की गेहूं और दलहन की फसलें भी बर्बाद हो गयीं।

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्रों में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। जालना के किसान नामदेव शिंदे (62) और आसाराम जगताप (65) अंगूर की खेती करते थे। 34 ग्राम तक के ओलों ने अंगूर की फलियों को नष्ट कर दिया। सुबह जब ये किसान अपने खेतों में पहुंचते हैं तो नुकसान का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए। मौसम ने दोनों किसानों की जान ले ली। वाशमी की 60 वर्षीय महिला किसान यमुनाबाई के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।

जालना के जिला प्रशासन के मुताबिक इस जिले में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। पिछले साल भी इस क्षेत्र में बे-मौसम बारिश ने किसानों को कष्ट पहुंचाया था। जालना के अंगूर किसान रामा शेल्के कहते हैं “हमने अंगूर की खेती पर 4 लाख रुपए खर्च किए थे। उम्मीद कर रहे थे कि इस साल लगभग 8 लाख का व्यापार होगा। लेकिन ओलावृष्टि हम पर संकट लेकर आया है। बिना कर्ज लिए अब हम दूसरी खेती नहीं कर पाएंगे।” एबीपी (इंग्लिश) की खबर के अनुसार इस साल हुई ओलावृष्टि से देश में अब तक 309000 एकड़ की फसल बर्बाद हुई है।

2014 में तो इससे भी बदतर हालात थे। तब अकेले महाराष्ट्र के 28, मध्य प्रदेश के 18, उत्तर प्रदेश के 10 और कर्नाटक के कुछ जिलों में भारी ओलावृष्टि हुई थी। महाराष्ट्र में 80 और मध्य प्रदेश की 50 फीसदी नष्ट हो गयी थी। बर्बादी देखकर महाराष्ट्र के 21 और मध्य प्रदेश के 3 किसानों ने मौत को गले लगा लिया था।

नागपुर दिग्दोह के संतरा और अंगूर किसान परविंदर ढोके (45) बताते हैं ” वर्ष 2014 में तो पूरी फली बर्बाद हो गयी थी। संतरे टूट गये थे, अंगूर का तो पता ही नहीं चला था। इस साल कुछ ऐसा ही हुआ है लेकिन उस साल की अपेक्षा नुकसान थोड़ा कम है। मैं तो अंगूर और संतरा के अलावा और भी खेती करता हूं। लेकिन जो किसान इसी पर निर्भर हैं, उन्हें ज्यादा परेशानी होगी।”

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ओलावृष्टि से उत्तर प्रदेश के जालौन, मुहम्मदाबाद के भी फूल किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा है। कुठौंदा गांव के किसान मूलचंद्र कुशवाहा कहते हैं “मेरे पास बहुत थोड़ी खेती है। इसी में फूलों की खेती करके वह साल भर गृहस्थी चलाते थे। मगर बारिश और ओलावृष्टि से गुलाब की खेती नष्ट हो गई। 2014 में भी ऐसा हुआ था। ऐसे में इस बार हमारा परिवार भुखमरी की कगार पर पहुंच जाएगा। 2014 के बाद से हर साल इस मौसम बारिश हो रही है। इसी कारण कई किसानों ने गुलाब की खेती बंद कर दी है।”

पिछले कुछ वर्षों से लगातार साल के अंत या शुरुआत में ओलावृष्टि या बारिश हो रही है। इससे रबी और तिलहनी फसलों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। इसके लिए जलवायु परिवर्तन को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। इसका उल्लेख इसी महीने पेश बजट सत्र के दौरान वित्त मंत्री ने आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 की रिपोर्ट में भी किया।

रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण खेती से होने वाली आय में 15 से 25 फीसदी तक कमी आने की आशंका जताई जा रही है। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन संबंधी अंतरसरकारी समिति (आईपीसीसी) की ओर से तापमान को लेकर लगाए गए अनुमानों के आधार पर भारत में खेती से होने वाली आय में औसतन 15 से 18 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है।

मध्य प्रदेश, भोपाल के पर्यावरणविद् डॉ सुभाष पांडेय कहते हैं “आज किसान मर रहा है तो उसके लिए हम ही जिम्मेदार हैं। हम पर्यावरण के साथ इतना खिलवाड़ कर रहे हैं, उसका खामियाजा किसी न किसी को तो भुगतना ही पड़ेगा। बे-मौसम बारिश और ओलावृष्टि इसी कारण हो रही है। और अब तो ये हर साल हो रहा है।”

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