गुजरात से श्रीलंका व केन्या को हुआ गेहूं की भालिया किस्म का निर्यात, क्यों खास है गेहूं की यह किस्म

जीआई प्रमाणित गेहूं में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और यह स्वाद में मीठा होता है। इसकी खेती बिना सिंचाई के होती है।

Divendra SinghDivendra Singh   8 July 2021 8:10 AM GMT

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गुजरात से श्रीलंका व केन्या को हुआ गेहूं की भालिया किस्म का निर्यात, क्यों खास है गेहूं की यह किस्म

भालिया गेहूं का नाम भाल क्षेत्र के कारण पड़ा है, भाल क्षेत्र अहमदाबाद और भावनगर जिलों के बीच में पड़ता है। फोटो: अरेंजमेंट/वीकिपीडिया

गुजरात की भालिया किस्म के गेहूं की पहली खेप को केन्या और श्रीलंका को निर्यात किया गया है, गुजरात के भाल क्षेत्र में पैदा होने वाला यह गेहूं पोषण से भरपूर होता है।

देश में गेहूं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए गेहूं की भालिया किस्म को केन्या और श्रीलंका निर्यात किया गया है। भालिया किस्म की खेती सिर्फ गुजरात में होती है, जिसे जीआई टैग भी मिला हुआ है।

भालिया गेहूं की ऐसी क्या खासियत जिसके लिए इसे जीआई टैग मिला हुआ है, इसके बारे में कृषि अनुसंधान स्टेशन, अरनेज के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. पीएच गोधानी कहते हैं, "गुजरात के भाल क्षेत्र बहुत सालों से भालिया गेहूं की खेती की जाती है, इसकी खेती में सिंचाई की जरूरत नहीं होती है, बारिश के पानी में ही इसकी खेती होती है।"

कृषि अनुसंधान स्टेशन, अरनेज, आणंद कृषि विश्वविद्यालय, गुजरात के अंर्तगत काम करता है, यहां के वैज्ञानिक पिछले कई साल से भालिया गेहूं पर काम कर रहा है।

भालिया किस्म की खेती सिर्फ गुजरात में होती है, जिसे जीआई टैग भी मिला हुआ है। फोटो: अरेंजमेंट

भालिया गेहूं की किस्म को स्थानीय लोग दौदखानी (Daudkhani )कहते हैं। भालिया गेहूं का नाम भाल क्षेत्र के कारण पड़ा है, भाल क्षेत्र अहमदाबाद और भावनगर जिलों के बीच में पड़ता है। अहमदाबाद जिले के धंधुका, ढोलका और बावला, सुरेंद्र नगर के लिम्बडी, भावनगर के वल्लभीपुर और आणंद जिले के तारापुर और खंभात, खेड़ा के मातर, भरुच के जम्बुसार, वाग्रा में बड़े क्षेत्रफल में इसकी खेती की जाती है।

गुजरात में लगभग दो लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में इसकी खेती की जाती है। गेहूं की भालिया किस्म को जुलाई, 2011 में जीआई प्रमाणन प्राप्त हुआ था। जीआई प्रमाणीकरण का पंजीकृत प्रोपराइटर आणंद कृषि विश्वविद्यालय, गुजरात है।

अक्टूबर के अंत से नवंबर के पहले सप्ताह तक बुवाई शुरू हो जाती है। देश में 2 लाख हेक्टेयर यानी करीब 4,90,000 एकड़ में हर साल 1.7 से 1.8 लाख टन गेहूं का उत्पादन होता है। मार्च-अप्रैल में या उसके बाद फसल की कटाई होती है। भालिया किस्म की गेहूं को सिंचाई या बारिश की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि इसकी खेती संरक्षित मिट्टी की नमी पर की जाती है।

डॉ. पीएच गोधानी कहते हैं, "किसान खेत के मेड़ ऊंचा करके बारिश का पानी खेत में इकट्ठा करते हैं, जिससे खेत में नमी बनी रहे। अक्टूबर-नवंबर महीने में किसान इसकी बुवाई करते हैं, जो मार्च-अप्रैल तक तैयार हो जाती है। भालिया गेहूं में ग्लूटेन की मात्रा ज्यादा होती है, कई सारे प्रोडक्ट बनाने में इसका प्रयोग होता है। पहली बार इसका निर्यात किया गया है, अगर आगे भी बाहर भेजा जाता है तो किसानों को इससे काफी फायदा होगा।

इस पहल से भारत से गेहूं निर्यात को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। वर्ष 2020-21 में, भारत से 4034 करोड़ रुपये का गेहूं निर्यात किया गया है। जो कि उसके पहले की वर्ष की तुलना में 808 फीसदी ज्यादा था। उस अवधि में 444 करोड़ रुपये का गेहूं निर्यात किया गया था। अमेरिकी डॉलर के लिहाज से वर्ष 2020-21 में गेहूं का निर्यात 778 फीसदी बढ़कर 549 मिलियन डॉलर हो गया है।

भारत ने वर्ष 2020-21 के दौरान यमन, इंडोनेशिया, भूटान, फिलीपींस, ईरान, कंबोडिया और म्यांमार जैसे 7 नए देशों को पर्याप्त मात्रा में अनाज का निर्यात किया।

पिछले वित्तीय वर्षों में, इन देशों को थोड़ी मात्रा में गेहूं का निर्यात किया गया था। वर्ष 2018-19 में इन सात देशों को गेहूं का निर्यात नहीं हुआ और 2019-20 में केवल 4 मीट्रिक टन अनाज का निर्यात किया गया। इन देशों को भारत से गेहूं के निर्यात की मात्रा 2020-21 में बढ़कर 1.48 लाख टन हो गई है।

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