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काले गेहूं की खेती होती है, लेकिन बाकी सच्चाई भी जान लीजिए

kheti kisani

पिछले कुछ वर्षों से सोशल मीडिया में काले गेहूं को लेकर लगातार ख़बरें शेयर हो रही हैं। जिसमें ये कहा जा रहा है भारत में पहली बार काले गेहूं की खेती हो रही है और ये सामान्य गेहूं के मुकाबले न सिर्फ कई गुना महंगा बिकता है बल्कि इसमें कैंसर और डायबिटीज समेत कई बीमारियों से लड़ने की क्षमता होती है। लेकिन यह पूरा सच नहीं है। आज आप को बताते हैं, ये गेहूं कहां पैदा होता है, इसका रंग काला क्यों होता है, क्या काले रंग के अलावा भी किसी रंग का गेहूं होता है और इसके चिकित्सकीय गुण क्या हैं ?

सोशल मीडिया में वायरल होने वाली इस पोस्ट में दावा किया गया था कि, सात बरसों के रिसर्च के बाद गेहूं की इस नई किस्म को पंजाब के मोहाली स्थित नैशनल एग्री फूड बायोटेक्नॉलजी इंस्टीट्यूट या नाबी ने विकसित किया है। नाबी के पास इसका पेटेंट भी है। इस गेहूं की खास बात यह है कि इसका रंग काला है। वायरल हो रही पोस्ट में कहा गया है कि काले गेहूं में कैंसर, डायबिटीज, तनाव, दिल की बीमारी और मोटापे जैसी बीमारियों की रोकथाम करने की क्षमता है।

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इस दावे की जांच के लिए जब न्यूज चैनल एबीपी के प्रतिनिधि मोहाली स्थित नाबी पहुंचे तो वहां उन्होंने इस गेहूं की फसल देखी। उन्होंने पाया कि शुरू में इसकी बालियां भी आम गेहूं जैसी हरी होती हैं, पकने पर दानों का रंग काला हो जाता है। ज्यादा जानकारी के लिए जब नाबी की साइंटिस्ट और काले गेहूं की प्रोजेक्ट हेड डॉ. मोनिका गर्ग से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि नाबी ने काले के अलावा नीले और जामुनी रंग के गेहूं की किस्म भी विकसित की है।

काले रंग की वजह एंथोसाएनिन

इस गेहूं के अनोखे रंग के बारे में पूछने पर डॉ. गर्ग ने बताया कि फलों, सब्जियों और अनाजों के रंग उनमें मौजूद प्लांट पिगमेंट या रंजक कणों की मात्रा पर निर्भर होते हैं। काले गेहूं में एंथोसाएनिन नाम के पिगमेंट होते हैं। एंथोसाएनिन की अधिकता से फलों, सब्जियों, अनाजों का रंग नीला, बैंगनी या काला हो जाता है। एंथोसाएनिन नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट भी है। इसी वजह से यह सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। आम गेहूं में एंथोसाएनिन महज 5पीपीएम होता है, लेकिन काले गेहूं में यह 100 से 200 पीपीएम के आसपास होता है। एंथोसाएनिन के अलावा काले गेहूं में जिंक और आयरन की मात्रा में भी अंतर होता है। काले गेहूं में आम गेहूं की तुलना में 60 फीसदी आयरन ज्यादा होता है। हालांकि, प्रोटीन, स्टार्च और दूसरे पोषक तत्व समान मात्रा में होते हैं।

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सेहत के लिए है फायदेमंद

तब क्या काला गेहूं खाने से कैंसर, डायबिटीज जैसी बीमारियां नहीं होतीं। इस पर डॉ. गर्ग का कहना है, चूहों पर किए गए प्रयोगों में देखा गया कि ब्लड कॉलस्ट्रॉल और शुगर कम हुआ, वजन भी कम हुआ लेकिन इंसानों पर भी यह इतना ही कारगर होगा यह नहीं कहा जा सकता। पर यह तो तय है कि अपनी एंटीऑक्सीडेंट खूबियों की वजह से इंसानों के लिए भी यह फायदेमंद साबित होगा। नाबी इसके बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए कंपनियों से करार कर रहा है।

कुछ वेबसाइट बेच रही हैं काले गेहूं का आटा

देखने में आया है कि कुछ ई कॉमर्स वेबसाइट काले गेहूं का आटा बेच रही हैं। इसकी कीमत साइट पर 2 हजार रुपये प्रति किलो से 4 हजार रुपये प्रति किलो तक बताई गई है। साथ ही इनमें बीमारियां दूर करने वाले वे सभी दावे भी किए गए हैं जो सोशल मीडिया में वायरल हो रहे हैं।

काला चावल भी होता है

गेहूं ही नहीं काला चावल भी होता है। इंडोनेशिअन ब्लैक राइस और थाई जैसमिन ब्लैक राइस इसकी दो जानीमानी वैरायटी हैं। म्यामांर और मणिपुर के बॉर्डर पर भी ब्लैक राइस या काला चावल उगाया जाता है। इसका नाम है चाक-हाओ। इसमें भी एंथोसाएनिन की मात्रा ज्यादा होती है। संबंधित खबरें-

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