मशरूम की खेती से किसान ने कमाया लाखों का मुनाफा

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
मशरूम की खेती से किसान ने कमाया लाखों का मुनाफामशरूम की खेती

अजरैलपुर (लखनऊ)। लागत राशि का कम से कम पांच गुना मुनाफा देने वाली मशरूम की खेती के बारे में तीन साल पहले जब लखनऊ के किसान अजय यादव को पता चला तो उन्होंने पारंपरिक खेती छोड़ इस नए दौर की खेती को अपना लिया।

होश संभालने के बाद से ही पारंपरिक फसलों की खेती देखते और करते आ रहे अजय यादव (28 वर्ष) अब हर वर्ष औसतन पांच क्विंटल कम्पोस्ट पर बटन मशरूम की खेती करते हैं। इसकी फसल अक्टूबर-नवंबर में ही लगाई जाती है। प्रति एक क्विंटल कम्पोस्ट पर 40 किलो के औसत उत्पादन के हिसाब से अजय को लगभग 2,000 किलो मशरूम का उत्पादन मिलता है। ‘‘औसतन 150 रुपए प्रति किलो का रेट मिल जाता है और प्रति क्विंटल लागत आती है 1,000 रुपए की, मुनाफा बढ़िया है इस फसल में’’, अजरैलपुर गाँव निवासी अजय ने बताया।

लखनऊ के उत्तर में 35 किमी दूर स्थित इस क्षेत्र में मशरूम जैसी फसल की खेती करने वाले अजय अकेले किसान हैं। अजय को 2000 किलो मशरूम का बाज़ार भाव तीन लाख रुपए तक मिल जाता है। इसमें से यदि प्रति कुंतल 1,000 रुपए के हिसाब से 50 क्विंटल की 50,000 रुपए की लागत निकाल दें, तो शुद्ध मुनाफा हुआ लगभग ढाई लाख रुपए।

छप्पर-पन्नी के ढांचे में उगाते मशरूम

अजय ने मशरूम की खेती के लिए 40 फुट लंबा और 30 फीट चौड़ा बांस, छप्पर और पन्नी की मदद से एक बड़ी झोपड़ी जैसा ढांचा तैयार किया, जिसके अंदर रोशनी न जा सके। इस झोपड़ी के अंदर लगभग तीन फुट चौड़ी समतल रैक बनाई गईं।

खेत में न जलाएं पुआल, उस पर मशरूम उगाएं

मशरूम की खेती के लिए तैयार की जाने वाली कम्पोस्ट में पुआल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे किसानों को उसे खेत में जलाना नहीं होगा। उनके खेत की मिट्टी और पर्यावरण भी स्वस्थ बने रहेंगे।

बुवाई का सही समय, ऐसे करें तैयारी

उत्तर प्रदेश में मशरूम उत्पादन सितम्बर से शुरू होकर ठंड खत्म होने तक चलता है। बटन मशरूम को उगाने के लिए सबसे ज़रूरी हिस्सा सही से कम्पोस्ट तैयार करना, जिस पर मशरूम निकलते हैं।

  • अजय 28-30 दिन में बटन मशरूम की कम्पोस्ट तैयार करते हैं। इसके लिए वे पहले भूसे (या पुआल) को किसी साफ जगह फैलाकर भिगो देते हैं।
  • भूसे के 24 घण्टे तक भीगकर फूल जाने के बाद उसमें गेहूं का चोकर, डीएपी, यूरिया, पोटास, कैल्शियम, जिप्सम व कार्बो फ्यूराडान मिला देते हैं। सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है, और हर चौथे या पांचवे दिन पल्टाई की जाती है। रासायनिक अवयवों से भूसे में अमोनिया बनती है, जो उसे सड़ाती है, इस गैस को समय-समय पर निकालने व समान रूप से भूसे को सड़ाने के लिए पल्टाई आवश्यक है।
  • चौथी पल्टाई में कम्पोस्ट में नीम की खली और गुड़ का शीरा मिला देते हैं। कुल सात से आठ पल्टाई होती हैं। आखिरी पल्टाई के बाद पहले के अनुपात में ही बाविस्टीन व फार्मोलीन का छिडक़ाव करके भूसे के इस कम्पोस्ट को पन्नी या तिरपाल से पांच-छह घण्टों के लिए ढक देते हैं।
  • एक क्विंटल कम्पोस्ट के लिए डेढ़ किलो बीज की आवश्यकता होती है जिसकी बाजार में कीमत दो सौ रुपए के आस-पास होगी। बीज गबड़कर खाद को बाविस्टीन से ट्रीट किए गए पेपर से 10 दिन के लिए ढक देते हैं इसके बाद गोबर की सड़ी खाद और मिट्टी को बराबर अनुपात में लेकर डेढ़ इंच की परत के रूप में बिछा देते हैं।


    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.