खाली जमीनों पर किसान करें औषधीय खेती, सरकार दे रही मदद
Ashwani Nigam 17 Oct 2017 8:05 PM GMT

लखनऊ। किसान अपनी की खाली पड़ी जमीन का इस्तेमाल औषधीय पौधों की खेती करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं। एम्स की तर्ज पर बने देश के पहले अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान को मंगलवार को राष्ट्र को समर्पित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों से आह्वान किया कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना चाहते हैं, ऐसे में किसान अगर अपनी खाली पडी जमीन का उपयोग औषधीय पौधों के उत्पादन के लिए करने लगेगा, तो किसानों की आय बढ़ेगी।
राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के निदेशक प्रोफेसर एस के बारिक ने बताया '' देश-दुनिया में जिस तरह से आयुर्वेद और हर्बल उत्पादों मांग बढ़ रही है उसके कारण से देश के विभिन्न क्षेत्रों में किसान परंपरागत खेती के अलावा औषधीय और जड़ी-बूटियों की तरफ भी अपना रूख कर रहे हैं, इसकी खेती से किसानों का फायदा मिल रहा है। ''
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केन्द्रीय आयुष मंत्रालय और विभिन्न प्रदेशों के उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग औषधीय खेती को बढ़ावा देने के लिए काम करे हैं। जिसमें औषधीय खेती के लिए किसानों को अनुदान दिया जा रहा है। राष्ट्रीय आयुष योजना में किसानों को सर्पगन्धा, अश्वगंधा, ब्राम्ही, कालमेघ, कौंच, सतावरी, तुलसी, एलोवेरा, वच और आर्टीमीशिया जैसे औषधीय पौधों की खेती के लिए सरकार की तरफ से अनुदान दिया जा रहा है।
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जिसमें प्रति एक एक हेक्टेयर सर्पगन्धा की खेती के लिए 45753.00 रुपए, अश्वगंधा के लिए 10980.75 रुपए, ब्राम्ही के लिए 17569.20 रुपए, कालमेघ के लिए 10980.75 रुपए, कौंच के लिए 8784.60 रुपए, सतावरी के लिए 27451.80 रुपए, तुलसी के लिए 13176.90 रुपए, एलोवेरा के लिए 18672.20 रुपए, वच के लिए 27451.80 रुपए और आर्टीमीशिया के लिए 14622.25 रुपए का अनुदान दिया जा रहा है।
इस योजना का लाभ लेने के लिए किसानों के पास अपने नाम से कम से कम एक एकड़ खेती की जमीन, खेत के पास सिंचाई साधन, किसान के पास बैंक में खाता और चेकबुक के साथ ही अपनी पहचान के लिए वोटर आईकार्ड, राशन कार्ड, आधार कार्ड या पासपोर्ट में से कोई एक होना चाहिए। लाभुकों का चयान पहले आओ और पहले पाओ की तर्ज पर किया जाएगा।
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सालों से खेत की एक की तरह की फसल उगाने से खेत की पैदावार क्षमता कम होते जाती है। ऐसे में खेत में फसल विविधता के लिए औषधीय खेती करने की सलाह कृषि वैज्ञानिकों की तरफ से दी जा रही है। इस बारे में जानकारी देते हुए नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय फैजाबाद के कृषि मौसम विभाग के प्रोफेसर डा. ए.के़ सिंह ने बताया '' खेत की एक ही तरह की फसल लेने से खेत की उर्वरकता प्रभावित होती है। ऐसे में किसानों को फसल विविधता के लिए सलाह दी जाती है। फसल विविधता के इस क्रम में अगर गेहूं और धान के खेतों को खाली होने के बाद अगर किसान उसमें औषधीय पौधों की खेती करेंगे तो यह उनके लिए बहुत लाभकारी होगा। अगली बार जब वह उसमें धान और गेहूं उगाएंगे तो उसकी पैदावार अधिक होगी। ''
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विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व की 80 प्रतिशत जनसंख्या अपने स्वास्थ्य के लिए औषधीय पौधों और पशुओं पर आश्रित है। ऐसे में औषधीय पौधों की मांग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। विश्व सवास्थ्य संगठन के अनुसार औषधीय पौधों और उसके उत्पाद का वैश्विक बाजार वर्ष 2050 तक 5 ट्रिलीयन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। भारत इस क्षेत्र में अभी सालाना केवल 462 करोड़ रुपए के औषधीय पौधों के उत्पाद का ही निर्यात कर रहा है जबकि चीनी 22,000 करोड़ रुपए मूल्य का पौध आधारित औषधीय उत्पाद का निर्यात कर रहा है। ऐसे में केन्द्र सरकार किसानों के बीच औषधीय खेती करने को विभिन्न प्रकार के जागरूकता कार्यक्रम और अभियान चला रही है।
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भारत में 10,000 से भी अधिक औषधीय पौधों की समृद्ध धरोहर है जिनमें से 1800 औषधीय पौधों का उपयोग आयुर्वेद में 4700 पारंपरिक चिकित्सा व्यवसाय में, 1100 सिद्ध औषधीय प्रणाली, 750 यूनानी, 300 होम्योपैथी में, 300 चीनी औषध प्रणाली में और 100 एलोपैथी प्रणाली में प्रयुक्त होते हैं।
औषधीय खेती की कैसे करें बुवाई
औषधीय पौधों सर्पगन्धा, अश्वगंधा, ब्राम्ही, कालमेघ, कौंच, सतावरी, तुलसी, एलोवेरा, वच और आर्टीमीशिया की खेती किसान कैसे करें और इसकी बुआई कैसे करें इसकी जानकारी देते हुए कृषि वैज्ञानिक डा. एस. आर मिश्रा ने बताया कि सर्पगंधा की एक हेक्टेयर की खेती के लिए सर्पगंधा की ताजी जड़ी 100 किलो, अश्वगंधा के लिए लिए प्रति हेक्टेयर 8 से 10 किलो बीज, ब्राम्ही के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलो बीज, कालमेघ के लिए प्रति हेक्टेयर 450 ग्राम बीज, कौंच के लिए प्रति हेक्टेयर 9 से लेकर 10 किलो बीज, सतावरी के लिए प्रति हेक्टेयर 3 किलो बीज, तुलसी के लिए प्रति हेक्टेयर 1 किलो बीज, एलोवेरा के लिए प्रति हेक्टेयर पांच हजार पौधे, वच के लिए प्रति हेक्टेयर 74074 तना और आर्टीमीशिया के लिए प्रति हेक्टेयर 50 ग्राम बीज की जरुरत पड़ती है।
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