धान-गेहूं और मोटे अनाजों की परंपरागत खेती के दायरे से बाहर निकलकर आधुनिक पद्धति को अपनाते हुए तराई क्षेत्र के किसानों ने भी खेती को फायदे का सौदा साबित कर रहे हैं।
जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर उत्तर दिशा फतेहपुर ब्लॉक क्षेत्र के तराई अंचल के गंगापुर गाँव के किसान अश्वनी वर्मा (40 वर्ष) आधुनिक पद्धति को अपनाते हुए तीन एकड़ क्षेत्रफल मे लो टनल व मल्च का इस्तेमाल कर अगेती तरबूज की खेती कर रहे हैं, अश्वनी वर्मा कि आधुनिक पद्धति की खेती को देखते हुए क्षेत्र के अन्य किसान भी इन से प्रेरित होकर अपने खेतों में मल्च और लो टनल का इस्तेमाल करने लगे है
अश्वनी वर्मा बताते हैं, “मल्चिंग और लो-टनल का खेती मे इस्तेमाल करने से हमें खेतों मे सिंचाई भी कम करनी पड़ती है मात्र एक सिचाई करने पर 20 से 25 दिन तक खेतों मे नमी बनी रहती है, जिससे हमारी खेती मे लागत काफी कम हो जाती है।”
लो टनल और मल्च के गणित को समझाते हुए अश्विनी बताते हैं, “इसके इस्तेमाल करने से हमारी फसल अन्य किसानों की अपेक्षा लगभग एक माह पहले तैयार हो जाती है मल्च लगाने के बाद उसमें बीज बोया जाता है और फिर पालीथीन की सीट से ढक देते हैं इससे क्या होता है कि अंदर गैस बन जाती है बाहर जो टेंपरेचर होता है उससे अंदर का टेंपरेचर 10 से 15 डिग्री अधिक मिल जाता है इस से जाम नेशन बहुत अच्छा होता है और पौधे भी सुरक्षित रहते हैं और हमारी फसल समय से पहले तैयार हो जाती हैं।”
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आगे बताते हैं हमारे यहां 15 से 20 फरवरी तक जर्मिनेशन का तापमान होगा लेकिन हमने मल्च और लौटनर की सहायता से 15 जनवरी को ही अपने खेतों में तरबूज बोया है जिसका जर्मिनेशन फरवरी में ही हो गया है हमारा या तरबूज मार्केट में मार्च में ही आ जाएगा और उस समय बाजारों में तरबूज की आवक बहुत कम होती है जिससे हमें अन्य किसानों की अपेक्षा अच्छा रेट मिलता है।”
मल्च लगाने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि मल्च के अंदर की जमीन बहुत भुरभुरी बनी रहती है जिससे जड़ो का बहुत अच्छा विकास होता है साथ ही इस मल्च पर कीड़े-मकोड़े आने पर मर जाते हैं। क्योंकि धूप में यह मल्च हिट हो जाती है और मल्च और लो-टनल के इस्तेमाल से सिंचाई की भी बहुत कम आवश्यकता पड़ती है जहां आम तौर पर किसान छह-सात सिंचाई करते हैं वही हम इसका इस्तेमाल करने से मात्र दो तीन सिंचाई में ही अपनी फसल तैयार कर लेते हैं।”
आगे बताते हैं कि मल्च और लो टनल लगाने में एक एकड़ मे लगभग 40 से 50 हजार की लागत आती है शुरु-शुरु में यह लागत अधिक महसूस होती है, लेकिन इसका फायदा भी हमें मिलता है या सिस्टम दो तीन फसलों तक काम करता रहता है, जिससे आगे आने वाली फसलों में यह लागत कम हो जाती हैं।
आगे बताते हैं हमने इस वक्त नोड्यूज सीड्स का सरस्वती तरबूज बोया है जो मार्केट में आमतौर पर 15-20 रुपए किलो बिकता है, लेकिन हमारे इस विधि से तैयार किया गया तरबूज मार्केट में हाथों-हाथ इससे दोगुने रेट में बिक जाता है जिससे हमारी आय मे दोगुने का इजाफा होता है।