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कई राज्यों में आलू,चना समेत कई फसलों पर पाले का कहर, ये उपाय करके किसान बचा सकते हैं अपनी फसल

इस समय तापमान गिरने से कई सारी फसलों को नुकसान हुआ है, मौसम विभाग के अनुसार आने वाले कुछ दिनों में बारिश के साथ ही ओलावृष्टि की भी संभावना है।
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बाराबंकी/मंदसौर। लगातार गिरते तापमान और शीतलहर से दलहनी, तिलहनी सहित कई फसलों को काफी नुकसान हो रहा है, कई जगह पर तो खेत में बर्फ की परत जम गई है, ऐसे में किसान सही समय और समुचित प्रबंधन से अपनी फसल को बचा सकते हैं।

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में आलू की खेती करने वाले किसान हरिनाम मौर्य बताते हैं, “इस बार आलू का बहुत महंगा बीज मिला था, महंगा बीज लेकर आलू की बुवाई की है आलू का रेट भी गिर रहा है और लगातार पाला आलू की लागत को बढ़ा रहा है साथ ही उत्पादन भी कम होने की संभावना लगातार बन रही हैं ऐसे में डर सताने लगा है कि कहीं इस पाले की वजह से आलू की लागत निकालना भी दूभर ना हो जाए।”

इस समय मटर, चना, आलू, मिर्च, गोभी, सरसों, आलू, मेथी जैसी रबी की फसलों की बुवाई हुई। इनमें से कुछ फसलों पर पाले और शीतरलहर का काफी असर होता है।

मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के मल्हारगढ़ क्षेत्र में तो खेत में बर्फ की परत जम गई। वहां के किसान काफी परेशान हो गए हैं। अपने खेत में खड़े किसान राजेंद्र कहते हैं, “अभी से नुकसान शुरू हो गया है, काफी फसल बर्बाद हो गई है, अगर ऐसा ही रहा तो काफी नुकसान हो जाएगा।

स्काईमेट के अनुसार आने वाले कुछ दिनों में उत्तर भारत के कई राज्यों में तीन से छह जनवरी के बीच बारिश होने की संभावना भी है। कुछ जगह पर ओलावृष्टि भी हो सकती है।

बाराबंकी के बेलहरा के किसान ननकू राजपूत ने मटर और फूलगोभी की खेती की है, वो कहते हैं, “हम हरी मटर और फूलगोभी की खेती कर रहे हैं। लगातार दिसंबर में पाला गिरने से मटर में फलिया नहीं बन रही हैं फूल जो आता है वह भी मर जाता है और फूलगोभी की खेती को पाले ने तो बिल्कुल चौपट कर दिया है जो फूल आता है वह लगातार पाला गिरने से बेकार हो जा रहा है। तिलहनी खेती में सरसों की फसल पर भी पाले की वजह से उत्पादन बहुत ही घट जाएगा आगे बताते हैं कि इस बार हमारे क्षेत्र में मेथा की खेती करने के लिए अधिकतर किसानों ने सरसों की बुवाई की थी लेकिन लगातार शीतलहर और पाले ने सरसों की खेती करने वाले किसानों को भी नुकसान में पहुंचाया है।

कृषि विशेषज्ञ तारेश्वर त्रिपाठी किसानों को सलाह देते हैं, “15 दिसंबर से 15 जनवरी तक जब तापमान 4 सेल्सियस से भी कम हो जाता है तो पाला पढ़ने की पूरी संभावनाएं बन जाती है और इस मौसम में हमारी फसलों की पत्तियों पर पाले की एक परत सी जम जाती है हमारी फसलों को तोड़ देती है और परागण नहीं होने देती है जिससे फसल को काफी नुकसान होता है।”

वो आगे कहते हैं, “पाले से बचने के लिए सबसे सरल और उत्तम उपाय है कि हम अपनी फसल में हल्की सिंचाई कर दें जिससे मिट्टी का तापमान वातावरण के तापमान से अधिक हो जाता है दूसरे हम थायो यूरिया आधा ग्राम प्रति लीटर की मात्रा में घोल बनाकर के छिड़काव भी पाली के प्रकोप से फसल को बचाता है अथवा घुलनशील सल्फर 80% डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर के 10 12 दिन के अंतराल पर छिड़काव करने से पाले के प्रकोप को कम किया जा सकता है इसके अलावा गंधक का तेजाब 0.001 प्रतिशत की दर से छिड़काव भी पाले के प्रकोप को कम करता है लेकिन गंधक के तेजाब का छिड़काव बगैर किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ना किया जाए।”

इसके अलावा अपने खेत के उत्तर और पश्चिम की मेड पर ज्यादातर ठंडी हवाएं उत्तर और पश्चिम की तरफ से ही चलती है वहां पर धुआं करके भी पाले के प्रकोप से अपनी फसलों को बचाया जा सकता है जो छोटे पौधे हैं उन पर पन्नी ढक दें और जो फलदार पौधे हैं उनके आसपास घास फूस से बनी टाटियां लगा दें और जब धूप निकले तो उन टाटीयों को पौधों से हटा दें ताकि उन्हें पर्याप्त मात्रा में धूप मिल सके।

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