बरसात के पानी का फायदा उठाकर जलीय सब्जियों की खेती कर सकते हैं किसान

सिंघाड़े की खेती

लखनऊ। बरसात के दिनों में पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा और पूर्वी उत्तर प्रदेश के बहुत सारे क्षेत्र जलमग्न हो जाते हैं। ऐसे में वहां पर रहने वाले लोगों को खाद्ध एवं पोषण के लिए जलीय फसलों निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे में लोग बरसात के जल का उपयोग करके सब्जियों की खेती कर सकें इसको लेकर भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी जलीय सब्जियों नई किस्म विकसित करके किसानों को जागरूक कर रहा है।

इस बारे में जानकारी देते हुए यहां के कृषि वैज्ञानिक पीएम सिंह ने बताया ” भारत में लगभग 80 से लेकर 100 प्रकार की जलीय सब्जियां पाई जाती हैं, जिनमें कलमी साग, सिंघाड़ा, कमल और मखाना प्रमुख हैं। पोषण और औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण इनकी खेती प्राचीनी काल से हो रही है लेकिन जानकारी के अभाव में जितने बड़े पैमाने पर इसकी खेती होनी चाहिए नहीं हो रही है। ऐसे में इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए काम किया जा रहा है। ”

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उन्होंने बताया कि जलीय सब्जियों के महत्व को देखते हुए भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान इन सब्जियों पर शोध करके इनकी नई किस्म को विकसित किया है, जिसमें कलमी साग सबसे महत्वपूर्ण है। कलमी साग का वानस्पतिक नाम आइपोमिया एक्वेटिका है लेकिन स्थानीय रूप से इसे वाटर स्पीनाच या स्थानीय लोग करेमू साग के नाम से भी जानते हैं। यह दक्षिण एशिया में प्रमुख रूप से पाया जाता और भारत में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और कर्नाटक में भरपूर मात्रा में मिलता है।

कलमी साग के बारे में जानकारी देती हुई कृषि वैज्ञानिक प्रज्ञा ने बताया ” भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने कलमी साग के 13 जननद्रव्यों को संग्रह किया है जो देश के अलग-अलग हिस्सों से एकत्र किए गए हैं। वीआरडब्ल्यू एस-1 वैराइटी का तना बैंगनी रंग और पत्तियां हरी होती हैं। इसकी बुवाई बीज एवं वानस्पतिक दोनों विधियों से किया जा सकता है। ”

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उन्होंने बताया कि कलमी साग के लिए नर्सरी की बुवाई जून से लेकर जुलाई तक की जाती और अगस्त से सितंबर तक इसकी बुवाई की जा सकती है। बुआई के पांच-छह दिन में इसके पौधे तैयार हो जाते हैं। कलमी साग की खेती थाइलैंड और मलेशिया में व्यवसायिक स्तर पर क जा रही है। कलमी साग में विटामिन और खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

जलीय सब्जियों में कलम की सब्जी भी बड़े पैमाने पर की जा सकती है। कमल के बारे में जानकारी देते हुए भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डा. बिजेन्द्र सिंह ने बताया ” चीन और जापान में जलीय सब्जी के रूप में कमल की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। इसकी मुलायम पत्तियां, डण्ठल, कंद, फूल और बीज से सब्जी, आचार, सूप और विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए जा रहे हैं। ”

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उन्होंने बताया कि कमल के कंद को ककड़ी भी कहते हैं। एक आंकड़े के अनुसार कमल ककड़ी के 100 ग्राम में 2.7 प्रतिशत प्रोटीन, उतना ही विटामिन और 8 प्रकार के खनिज तत्तव पाए जाते हैं। यह इाइपर लीपीडिमिया रोग की प्रमुख औषधि भी है। कमल की पत्तियां कोलेस्ट्रोल के स्तर को भी कम करती हैं। मार्च अप्रैल में इसकी इसके बीज को अंकुरण के लिए तालाब, नदी या झील में डाला जाता है।

जलीय सब्जियों में सिंघाड़े की भी खेती प्रमुख होती है। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक पीएम सिंह ने बताया कि सिंघाड़े के दो प्रकार की किस्में पचलित हैं, हरे छिल्के वाली और लाल छिल्के वाली। व्यवसायिक स्तर हरे छिल्के वाली किस्म अच्छी मानी जाती है। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्था ने लाल छिल्के की वीआरडब्ल्यू सी-1 और हरे छिल्के की वीआरडब्ल्यूसी-3 वेराइटी को विकसित किया है। जिसकी खेती करके किसान लाभ कमा सकते हैं।

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