फसल में कीट या रोग लगे या पशुओं में कोई बीमारी हो अब विशेषज्ञ गाँव में आकर किसानों को सलाह देते हैं। अब किसानों व पशुपालकों किसी जानकारी के लिए दूर नहीं जाना पड़ता है।
लखनऊ के माल ब्लॉक के नबी पनाह गाँव के सुरेन्द्र कुमार (45) नर्सरी का बिजनेस करते हैं, पहले उन्हें कोई जानकारी लेने के लिए संस्थान तक जाना होता था, लेकिन विशेषज्ञ नर्सरी में समय-समय पर आते रहते हैं।
“वैज्ञानिक हमें सारी जानकारियां देते रहते हैं, पहले कलम बांधने में हमेशा पौधा सही नहीं निकलता था लेकिन अब वो जानकारी देते रहते हैं, कि कैसे और किस समय पर कलम बांधनी चाहिए, ”सुरेन्द्र कुमार ने बताया।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के निर्देश पर देश के सभी कृषि अनुसंधान संस्थान गाँवों को गोद लेकर वहां पर काम कर रहे हैं। वैज्ञानिक किसानों को खेती के नए-नए तरीकों के बारे में बताते हैं। यह सब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की फार्मर फर्स्ट (फार्मर फील्ड इनोवेसंश रिसर्च साइंस एंड टेक्नोलॉजी) स्कीम के तहत हो रहा है। इसमें आईसीएआर के सभी संस्थान बेहतरीन तालमेल के साथ काम कर रहे हैं। इसमें केन्द्रीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, केन्द्रीय उपोष्ण एवं बागवानी संस्थान सहित 103 संस्थान और कृषि विवि शामिल हैं। फार्मर फर्स्ट के लिए पूरे देश को कई रीजन में बांटा गया है।
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों के 45 वैज्ञानिकों की टीम ने 45 गाँवों को गोद ले रखा है, ये ऐसे सभी ऐसे गाँव हैं जहां के किसान बागवानी के साथ ही नर्सरी का काम करते हैं।
इसी तरह भारतीस पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली के वैज्ञानिक गांवों को गोद लेकर किसानों को खेती और पशुपालन के आधुनिक तरीके सिखा रहे हैं। बरेली जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर मछगवां ब्लॉक के निसोई गाँव के अमर सिंह (30 वर्ष) सुअर पालन कर रहे है। अमर बताते हैं कि संस्थान द्वारा अच्छी प्रजाति के सुअर मिले हैं। इन सुअरों का कैसा आहार हो व इनके टीकाकरण का प्रशिक्षण भी दिया गया है। इस परियोजना में पुरूषों के साथ साथ महिला किसान भी शामिल की गई हैं।
42 वैज्ञानिकों की नौ टीम बनायी गई हैं, हर टीम में पांच-पांच वैज्ञानिक हैं, जो किसानों को कृषि के नए नए तरीके बताते रहते हैं। अभी किसानों को लौकी, तोरई, कद्दू, लोबिया, राजमा के पौधे दिए गए थे, जिससे किसानों में सब्जियों और दालों को खाने की आदत बढ़े।
डॉ. सुभाष चन्द्र, नोडल अधिकारी, लखनऊ
इस परियोजना के बारे में आईवीआरआई के निदेशक डॉ. राजकुमार सिंह ने बताया, “किसानों को उनकी फसल का अधिक लाभ दिलाने के लिए इस योजना की शुरुआत की गई है। इस योजना के तहत तीन गाँव चुने गए हैं, जिनमें वैज्ञानिक जाकर काम कर रहे है। इस योजना से किसान आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनेंगे साथ ही गाँवों में पलायन भी रोका जाएगा।”
लखनऊ में योजना के नोडल अधिकारी डॉ. सुभाष चन्द्र बताते हैं, “42 वैज्ञानिकों की नौ टीम बनायी गई हैं, हर टीम में पांच-पांच वैज्ञानिक हैं, जो किसानों को कृषि के नए नए तरीके बताते रहते हैं। अभी किसानों को लौकी, तोरई, कद्दू, लोबिया, राजमा के पौधे दिए गए थे, जिससे किसानों में सब्जियों और दालों को खाने की आदत बढ़े।”
वो आगे कहते हैं, “हम समय-समय पर किसानों से फीडबैक भी लेते रहते हैं, जिससे उनकी जरूरतें पता चलती रहें। इसमें बागवानी, गन्ना, गेहूं, धान, दलहन, तिलहन की फसलों की खेती के साथ केंचुआ, मधुमक्खी, बकरी, बतख और मछलीपालन की नई तकनीकों की जानकारी दी जा रही है।”
केन्द्रीय बागवानी एवं उपोष्ण संस्थान के वैज्ञानिकों के साथ ही भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने 65 गाँवों को गोद लिया है। ये संस्थान किसानों के साथ ही भूमिहीन किसानों व महिलाओं को भी रोजगारपरक प्रशिक्षण दे रहे हैं, जिससे ये लोग अपना खुद का रोजगार शुरु कर पाए।
लखनऊ ज़िले के सरोजनी नगर ब्लॉक के मुल्लाही खेड़ा गाँव के सुरेन्द्र सिंह बताते हैं, “फार्मर फर्स्ट योजना के तहत हमारे यहां पशुपालकों को बायोगैस संयंत्र लगाने का प्रशिक्षण दिया गया है, कई ज़िलों के किसान अब तक प्रशिक्षण लेकर अपना संयंत्र भी शुरू कर दिया है।
फार्मर फर्स्ट परियोजना के लिए पूरे देश को कई रीजन में बांटा गया है। बरेली जोन का प्रधान अन्वेशक आईवीआरआई के पशु अनुवांशिकी विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डा. रणवीर सिंह ने बताया, ”सीमांत, मध्यम व लघु श्रेणी के किसानों को इस स्कीम से जोड़ा गया है। इसके तहत किसानों को निशुल्क बकरी, भेंड़, सुअर और बागवानी में गेहूं, धान, दलहन, तिलहल समेत कई फसलों की नई प्रजाति के बीज किसानों को मुफ्त में दिए गए हैं ताकि उनकी आय दोगुनी हो सके। चार महीने पहले मंझगवां ब्लॉक के नौ गाँव के 21 परिवारों को उनकी जीविका चलाने और आमदनी बढ़ाने के लिए 63 बकरियों की नई प्रजाति बारबरी बांटी गई है।”