एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन से बढ़ेगी किसानों की आय 

Devanshu Mani TiwariDevanshu Mani Tiwari   8 Nov 2017 5:15 PM GMT

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एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन से बढ़ेगी किसानों की आय यांत्रिक प्रबंधन तकनीकों से 30 से 40 प्रतिशत घटेगी खेती की लागत 

लखनऊ। खेती में कम समय में अधिक उत्पादकता पाने के लिए किसान रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते हैं। इन कैमिकल कीटनाशकों के प्रयोग से फसलों के साथ-साथ किसानों की सेहत पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। ऐसे में अगर किसान सही समय पर एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन (आईपीएम) तकनीकों का प्रयोग करें, तो वो खेती में लागत के साथ साथ समय भी बचा सकते हैं।

केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र, लखनऊ (सीआईपीएमसी) में पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में आए किसानों और छात्रों को संबोधित करते हुए राजीव कुमार सहायक वैज्ञानिक सीआईपीएमसी ने बताया किसान खेती के दौरान एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन तकनीकों का प्रयोग करें, तो वो अपनी खेती की लागत 30 से 40 प्रतिशत कम कर सकते हैं। इन तकनीकों में व्यवहारिक नियंत्रण, यांत्रिक नियंत्रण, अनुवांशिक नियंत्रण और जैविक नियंत्रण तकनीके शामिल हैं।’’

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एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन पर हो रही पांच दिवसीय कार्यशाला में कई जिलों से आएं किसानों व कृषि विश्वविद्यालय और महाविद्यालय के छात्रों ने हिस्सा लिया है। इस कार्यशाला के दौरान उन्हें प्रयोगशाला में जैविक कीटनाशी बनाने और कीट प्रबंधन तकनीकों के बारे में जानकारी दी जाएगी। इसके अलावा उन्हें खेत पर ले जाकर एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन तकनीकों का प्रयोग करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा।

आईपीएम तकनीकों के बारे में सीआईपीएमसी के उप निदेशक (कीट विज्ञान) संजीव पांडेय ने बताया, “खेती में कीट नियंत्रण के लिए जैविक विधियों का प्रयोग किसानों में बढ़ रहा है। आईपीएम तकनीकों के इस्तेमाल होने फसलों में मित्रकीटों का प्रभाव भी बढ़ जाता है। इससे फसल कम समय में अच्छी पैदावार देती है।’’

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कार्यक्रम में शामिल हुए छात्रों को यांत्रिक नियंत्रण तकनीकों के बारे में जानकारी दी गई, पीले, काले, नीले, लाल और सफेद स्टिकी ट्रैप, लाइट ट्रैप व स्पाइन बुश नियंत्रण के बारे में बताया गया। इसके साथ ही छात्रों को प्रयोगशाला नें जैविक कीटनाशी बनाने का प्रशिक्षण भी दिया गया।

क्या है आईपीएम तकनीक -

आईपीएम तकनीक मुख्यतः पांच प्रकार की होती हैं।

व्यवहारिक नियंत्रण - खेतों से फसल अवशेषों को हटाना और मेड़ों को साफ करना।

यांत्रिक नियंत्रण - कीड़ो व अंडो के समूहों को एकत्र करके नष्ट करना, प्रकाश प्रपंच और स्टिकी ट्रैप का प्रयोग करना।

अनुवांशिक नियंत्रण- इस विधि से नर कीटों को प्रयोगशाला में या रासायनों से फिर रेडिऐशन तकनीकों से नपुंसकता पैदा की जाती है और फिर उन्हें काफी मात्रा में वातावरण में छोड़ दिया जाता है। इससे मादा कीट अंडे नहीं दे पाती हैं।

जैविक नियंत्रण - फसलों में नाशीजीवों को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक शत्रुओं को प्रयोग में लाना जैविक नियंत्रण कहलाता है। इसमें मित्र कीट व केंचुआ खाद शामिल है।

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