लंबे समय से मध्य प्रदेश की पहचान रहे सोयाबीन की खेती से अब दूर हो रहे किसान

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लंबे समय से मध्य प्रदेश की पहचान रहे सोयाबीन की खेती से अब दूर हो रहे किसानअच्छी बारिश से फसल तो बर्बाद नहीं होगी लेकिन रकबा घटेगा ( फोटो साभार : गूगल)

इंदौर (भाषा)। मानसून की मौजूदा सक्रियता से देश के सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक राज्य मध्यप्रदेश में सोयाबीन की फसल के बर्बाद होने का खतरा फिलहाल टल गया लगता है। हालांकि दलहन की खेती की ओर किसानों के लगातार बढ़ते आकर्षण से सोयाबीन का रकबा पिछले साल के मुकाबले लगभग 20 प्रतिशत घटकर 43 लाख हेक्टेयर के आस-पास रह सकता है।

इंदौर के भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान (आईआईएसआर) के निदेशक वीएस भाटिया ने बताया कि पिछले एक हफ्ते से जारी मानसूनी बारिश से राज्य के लगभग सभी प्रमुख सोयाबीन उत्पादक क्षेत्रों में इस तिलहन फसल को नया जीवन मिला है। इससे पहले इन इलाकों में बारिश की गंभीर कमी के कारण सोयाबीन की फसल पर बर्बादी का खतरा मंडरा रहा था।

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भाटिया ने हालांकि कहा कि इस बार सूबे में सोयाबीन का रकबा करीब 43 लाख हेक्टेयर रहने का अनुमान है, क्योंकि परंपरागत रूप से सोयाबीन उगाने वाले कई किसान बेहतर भावों की आशा में मूंग और उड़द जैसी दलहन फसलों की बुआई मुनासिब समझ रहे हैं।

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प्रदेश सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि किसानों के रूझान को देखते हुए इस खरीफ सत्र के दौरान सूबे में सोयाबीन बुआई के लक्ष्य को 54.57 लाख हेक्टेयर से घटाकर 53 लाख हेक्टेयर कर दिया गया है। सूबे में अब तक लगभग 37 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन बोया जा चुका है। कई इलाकों में सोयाबीन बुआई जारी है।

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पिछले तीन खरीफ सीजन से दलहन की ओर आकर्षित किसान

अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2016 के खरीफ सत्र के दौरान सूबे में 54.01 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन बोया गया था। किसानों में 'पीले सोने' के नाम से मशहूर सोयाबीन मध्यप्रदेश की प्रमुख नकदी फसल है और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में इसका सामान्य रकबा 58.59 लाख हेक्टेयर है लेकिन पिछले तीन खरीफ सत्रों से देखा जा रहा है कि किसान उपज के बेहतर भावों की उम्मीद में दलहनी फसलों की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

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पिछले सीजन में एमएसपी से भी नीचे बेचनी पड़ी थी सोयाबीन की फसल

इससे सोयाबीन का रकबा घट रहा है। बीते खरीफ सत्र के दौरान भावों में गिरावट के चलते किसानों को सोयाबीन की फसल सरकार के तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी नीचे बेचनी पड़ी थी। इसे भी सोयाबीन के रकबे में कमी का प्रमुख कारण समझा जा रहा है।

       

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