नागालैंड के किसानों को भा रही मशरूम की खेती

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के नागालैंड सेंटर के वैज्ञानिकों के प्रयासों से नागालैंड मशरूम उत्पादक राज्यों में शामिल हो रहा है।

Divendra SinghDivendra Singh   1 Dec 2018 6:33 AM GMT

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नागालैंड के किसानों को भा रही मशरूम की खेती

पिछले कुछ वर्षें में देश में मशरूम की खेती का चलन तेजी से बढ़ा है, किसानों को इसमें बेहतर मुनाफा भी दिख रहा है। धान की खेती के लिए मशहूर नागालैंड के किसान भी मशरूम की खेती करने लगे हैं।


नागालैंड के दीमापुर जिले के किसान राजीब मोंडल ने भी मशरूम की खेती शुरू की है। आईसीएआर नागालैंड सेंटर की मदद से वो सफल उद्यमी और मशरूम उत्पादक बन गए हैं। उन्होंने एक कम लागत वाली स्पॉन उत्पादन इकाई भी शुरु की है, जिससे नागालैंड के दूसरे मशरूम उत्पादकों को आसानी से स्पॉन मिल रहा है।

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नागालैंड में लगभग 70 प्रतिशत लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती ही है, यहां के कुल कृषि योग्य भूमि में 70 प्रतिशत में धान की खेती करते है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के नागालैंड के वैज्ञानिकों के प्रयासों से नागालैंड मशरूम उत्पादक राज्यों में शामिल हो रहा है। यहां के वैज्ञानिक डॉ. राजेश जी. बताते हैं, "नागालैंड में ज्यादातर किसान धान की खेती करते हैं, जब हमने मशरूम की खेती की शुरूआत के बारे में सोचा तो यही आईडिया आया कि हम ऑयस्टर की उत्पादन गेहूं के भूसे के बजाए धान के पुवाल के भूसे का प्रयोग कर सकते हैं।"

वो आगे कहते हैं, "कई किसानों ने मशरूम उत्पादन के साथ ही स्पॉन उत्पादन की शुरूआत कर दी है, आने साल में नागालैंड भी मशरूम उत्पादन में पहचान बना लेगा।"


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पिछले कई वर्षों से मशरूम की खेती कर रहे राजीब मोंडल धान के पुवाल के भूसे में मशरूम उत्पादन कर रहे हैं, जिससे कम समय में मशरूम उत्पादन हो रहा है। स्पॉन उत्पादन इकाई में 200 ग्राम के मशरूम उत्पादन के सीजन में लगभग 200 ग्राम के 650-700 स्पॉन के पैकेट तैयार किए गए। इनमें से नागालैंड के किसानों को 8,750 रुपए के हिसाब से प्रति माह 300-400 पैकेट बेचे गए थे। उन्होंने अपने यहां भी मशरूम का उत्पादन शुरू किया। वो लगभग 360 किलोग्राम ऑयस्टर का उत्पादन करके हर महीने करीब 36000 रुपए कमा रहे हैं। स्पॉन और मशरूम बेचने से हर महीने उन्हें करीब 44,750 रुपए का मुनाफा हो रहा है।

आईसीएआर नागालैंड सेंटर पर मशरूम की खेती प्रशिक्षण दिया जाता है, यही नहीं किसानों को मशरूम के स्पान (बीज) भी उपलब्ध कराया जाता है। साथ ही किसानों को रोग-कीटों से बचने, कम्पोस्ट बनाने की सही तरीका भी बताया जाता है। ट्रेनिंग लेने के बाद किसान फोन पर लगातार वैज्ञानिकों के संपर्क में रहते हैं कि कैसे व कब मशरूम की खेती शूरू कर सकते हैं।

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राजीब मोंडल मशरूम उत्पादन के बारे में बताते हैं, "अभी हमारे यहां के किसानों के लिए से बिल्कुल नया है, हमारे यहां से दीमापुर, वोखा और मोकोकचंग जिलों में मशरूम जाता है और ज्यादा उत्पादन होने पर दूसरे जिलों में मशरूम भेजते हैं।"

नागालैंड में मशरूम उत्पादन काफी फायदेमंद साबित हो रहा है, क्योंकि नागालैंड में मशरूम की उपलब्धता बहुत कम है। मंडल आज नागालैंड में मशरूम स्पॉन और ऑयस्टर मशरूम के सबसे बड़े उत्पादक बन गए हैं। वो जल्द ही बटन मशरूम भी उगाने वाले हैं।

उन्होंने तरल स्पॉन उत्पादन तकनीक को भी कम समय में अधिक मात्रा में पैदा करने के लिए अपनाया और गुणवत्ता स्पॉन प्राप्त करने के लिए प्रदूषण को कम किया। स्पॉन उत्पादन के लिए अभिनव प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए उन्हें आईसीएआर नागालैंड सेंटर द्वारा सम्मानित किया गया था

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