किसान का दर्द: स्क्रू बनाने वाले तक को उसका मुनाफा पता होता है, किसानों की फसल का नहीं

Arvind ShuklaArvind Shukla   15 Nov 2017 6:08 PM GMT

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किसान का दर्द: स्क्रू बनाने वाले तक को उसका मुनाफा पता होता है, किसानों की फसल का नहींफोटो: गाँव कनेक्शन

नई दिल्ली। "जब किसी फैक्ट्री मालिक एक स्क्रू बनाता है, जो उसे पता होता है कि वो बाजार में कितने का बिकेगा और उस पर कितना मुनाफा होगा, लेकिन एक किसान सिर्फ अनुमान पर जिंदा रहता है। उसे नहीं पता होता है जो अनाज उसके खेतों में तैयार हो रहा है वो कितने में बिकेगा, या फिर बिकेगा ही नहीं। हम हर साल ऐसे ही घाटा सहते आगे बढ़ते रहते हैं।" लवजी भाई नाकराणी, बताते हैं।

इस बार भी मूंगफली में घाटा उठाना पड़ा

लवजी भाई नाकराणी (58 वर्ष) उस गुजरात के भावनगर जिले के ऊंचड़ी गाँव के रहने वाले हैं, जो मूंगफली और कपास की खेती करते हैं, लेकिन हर साल की तरह इस बार भी उन्हें मूंगफली में घाटा उठाना पड़ा है। “मेरी मूंगफली 15 दिन पहले सरकारी मंडी गई थी, मगर मंडी खुली नहीं थी तो कारोबारी को बेचना पड़ा। सरकारी रेट (4450 एमएसपी) से 500-600 कम में बेचना पड़ा क्योंकि आगे खेत बोने थे, बुवाई करनी थी।”

बचत पर किया गुणाभाग

मूंगफली की खेती में क्या बचत हुई पूछने पर वो गुणाभाग करते हुए बताते हैं, "एक कुंतल मूंगफली उगाने में कम से कम 6000-6200 रुपए खर्च होते हैं, सरकार 7500 का रेट तय करे तब जाकर कहीं किसान को फायदा होगा, लेकिन ऐसा कभी नहीं होगा, क्योंकि सरकार की नीतियां बराबर नहीं है। पिछले 10 वर्षों में मूंगफली (और कपास) किसानों की हालत बदतर हो गई है, कारोबारी सिंडीकेंट चला रहे हैं।”

सरकार की नीतियों से नाराज और दुखी

लवजी भाई की तरह उनके गाँव से करीब 900 किलोमीटर दूर राजस्थान के रेतीले इलाके बीकानेर के आसुराम गोदारा भी सरकार की नीतियों से नाराज और दुखी हैं। आसुराम गोदारा जमीन के मामले में बड़े किसान कहे जा सकते हैं, उनके पास 6 हेक्टेयर जमीन है, जिसमें उन्होंने 4 हेक्टेयर में मूंगफली बोई थी। लेकिन मौसम की निगाहें किसानों पर टेढ़ी थीं। कम बारिश के चलते उत्पादन काफी कम हुआ, और जो पैदा हुआ उसे लेकर गोदारा मंडी पहुंचे तो उनके पैरों की जमीन खिसक सी गई। गोदारा जागरुक किसान हैं। उन्होंने खेत की बुवाई से लेकर मूंगफली की बिक्री तक पाई-पाई का हिसाब रखा है, गोदारा की डायरी के पन्ने अगर आप पलटेंगे तो ये समझने में देर नहीं लगेगी, कृषि प्रधान देश का किसान कर्ज में क्यों दबा और फिर आत्महत्या क्यों करता होगा।

कुल मिलाकर 89,240 रुपए का खर्च

एक हेक्टेयर मूंगफली की खेती का खर्च जुताई, बीज उपचार, लेवलिंग, सिंचाई, कीटनाशक, उर्वरक और कटाई, बिनाई मिलाकर कुल 89,240 रुपए का खर्च आया। गोदारा कहते हैं, "मूंगफली में खेती में शुरू से लेकर आखिरी तक मैं करीब 6 महीने लगा रहा, मैंने और मेरे परिवार ने रखवाली की। उसका कोई खर्च जुड़ा नहीं है। अब पैदावार हुई है करीब 12 क्विंटल। मैंने बेचा है 3500 रुपए में यानि 42000 रुपए की कुल मुंगफली निकली। अगर सराकरी रेट पर भी बेचते तो (53400 बिक्री- 83270 लागत) तो भी 35840 का नुकसान होता।”

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घाटा तभी भी होता लेकिन उतना नहीं

आसूराम आगे कहते हैं, "इस बार सूखा पड़ा है। वर्ना 20-24 क्विंटल मूंगफली होती। घाटा तभी भी होता लेकिन उतना नहीं, लेकिन वसुंधरा राजे सरकार को ये दिखाई नहीं देता। पूरे बीकानेर संभाव (बीकानेर, चुरु, हनुमानगढ़, गंगानगर) और जोधपुर के कुछ इलाकों में मूंगफली होती है, और यहां बारिश बहुत कम हुई। लेकिन सरकार सूखा ही घोषित नहीं कर रही कि किसान को कुछ राहत मिल जाए।’

गोदारा जैसे किसानों की समस्या सिर्फ मौसम की मार नहीं है। सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य तो 4450 रुपए घोषित कर दिया है, लेकिन उस रेट पर किसानों को उपज बेचने में छींकें आ रही हैं।

सरकार रेट से कम पर क्यों?

बीकानेर जिले के रामसर गाँव के भरतराम कस्वां (33 वर्ष) के पास 30 बीघे (करीब 6 एकड़) मूंगफली थी, वो 62 क्विंटल मूंगफली बाजार में 3451 रुपए क्विंटल पर बेच चुके हैं। सरकार रेट से कम पर क्यों बेचने के सवाल पर भरतराम कस्वां गाँव कनेक्शन को बताते हैं, जो मैंने 1000 कुंटल घाटे पर मूंगफली बेची है, उसका फायदा कारोबारी उठाएंगे, क्योंकि उनके पास पैसा है, वो आराम से धीरे-धीरे बेचेंगे। किसान के पास रखने (स्टोर) के साधन नहीं हैं और अगली फसल बोने के पैसे भी, उसे तो औने-पौने दाम पर बेचना ही है।”

एक दिन में सिर्फ 25 कुंटल मूंगफली खरीद

कस्वां सरकार की उस व्यवस्था को किसानों के लिए काल बता रहे हैं, जिसके तहत सरकार किसानों से एक दिन में सिर्फ 25 कुंटल मूंगफली खरीद रही है। कस्वां गुस्से में कहते हैं, "सरकारी आदेश में लिखा है, इन ए सिंगल डे 25 क्विंटल, यानि दिन में 25 कुंटल लेकिन ये अधिकारी और सरकार किसानों से पूरे सीजन मे सिर्फ 25 क्विंटल की खरीद चाहते हैं, यानि बाकी फसल किसान कारोबारियों को बेचे या कूड़े में फेंक दें। कारोबारी भी जानते हैं किसान मजबूर है इसलिए जो रेट मिल जाए 2700 से लेकर 3500 तक प्रति क्विंटल खरीद रहे हैं।”

कम से कम 50 कुंटल एक किसान से खरीद की गुहार

गोदारा और कस्वां जैसे सैकड़ों किसान पिछले कई दिनों से राजस्थान सरकार और राजफेड (कॉपरेटिव सोसायटी) से लगातार कम से कम 50 कुंटल एक किसान से खरीद की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन उसका कोई रिजल्ट नहीं निकला। कस्वां बताते हैं, "पिछले दिनों अधिकारियों ने कहा कि अभी 25 कुंटल बेचो, बाकी नंबर दोबारा आएंगे और आपकी संदेश भेजे जाएंगे, सरकार से मैसेज भी आए लेकिन उसके बावजूद खरीद नहीं हुई। मैं समझ नहीं पाता रहा सरकार आखिर है किसकी तरफ और कैसे किसानों का भला करना चाहती है।’

खरीद में उदासीनता से किसान काफी परेशान

मूंगफली की खेती राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में होती है। कई राज्यों में पैदावार ठीक, लेकिन राजस्थान और गुजरात में कम बारिश के चलते उत्पादन कम हुआ है, ऐसे में सरकार के कम मूल्य और खरीद में उदासीनता से किसान काफी परेशान हैं। आसूराम गोदारा कहते हैं, मेरे इलाके के लगभग हर किसान को घाटा हुआ है, ये जमीनी हकीकत है लेकिन बीमा कंपनियां इसका क्लेम करेंगी या नहीं कुछ कहा नहीं जा सकता। गोदारा की बात को कस्वां आगे बढ़ाते हैं, जब उत्पादन कम होता है (मौसम, कीड़े या किसी वजह से) किसान की लागत और घाटा दोनों बढ़ जाते हैं, लेकिन कृषि प्रधान देश में सरकारों को आजतक ये गणित समझ में नहीं आया।

आसूराम गोदारा के एक हेक्टेयर फसल का गणित

  • 3200 रुपए खेत जोताई
  • 1200 रुपए- बराबर (हेरा)
  • 2600 रुपए- डीएपी (उर्वरक)
  • 1200 रुपये- खेत लेवलिंग (समतलीकरण)
  • 1500 रुपये खरपतवारनाशक
  • 500 रुपए खरपतवारनाशक छिड़कने के लिए मजदूरी
  • 26400 रुपए (240 किलो बीज लगा, 110 रुपए में खरीद था)
  • 1200 रुपए- फफूंदनाशक से बीज उपचार किया
  • 3000 रुपए- गोजा कीटनाशक बीज उपचार (वाइट ग्रेव) बीज ट्रीटमेंट- करीब 14000 रुपए लीटर आती है)
  • 1600 रुपए- मूंगफली बीज बीजाई खर्च
  • 1200 रुपए- यूरिया दो बार
  • 2240 रुपए सल्फर- 16 किलो
  • 1600 रुपए माइक्रोन्यूट्रन 20 किलो
  • 3600 रुपए निराई-गुड़ाई खर्च
  • 6000 रुपए ऊपर से गोजा के लिए कीटनाशक- पौधे बचाने के लिए
  • 1600 रुपए टीकारोग के लिए स्प्रे दवा
  • 800 रुपए ग्रोथ प्रमोटर स्प्रे
  • 500 रुपए स्प्रे ट्रैक्टर खर्च
  • 6000 रुपए मूंगफली कटाई व चुगाई-बीनने में
  • 4800 रुपए नेणा कराने की मजदूरी 16 आदमी (बंडल बनाने के)
  • 3000 रुपए कटी फसल को इकट्ठा करने की मजदूरी 10 आदमी
  • 3600 थ्रेसर खर्चा
  • 3000 रुपए थ्रेसर पर मजदूर
  • 1200 रुपए मंडी पहुंच भाड़ा
  • 1350 रुपए मंडी में तुलवाई खर्च
  • 6350 रुपए बिजली बिल
  • कुल खर्चा - 89240
  • इसमें 6 महीने मैंने पानी लगाया रखवाली की उसका कोई खर्च नहीं जुड़ा हुआ है।
  • अब मूंगफली का उत्पादन हुआ है 1 हेक्टर में 12 क्विंटल वर्षा नहीं होने की वजह से, अच्छी वर्षा होती है तो लगभग एक हेक्टर में 20 से 24 क्विंटल मूंगफली का उत्पादन होता है गफली का बाजार में भाव है 3200- 3500 रुपए प्रति क्विंटल
  • 12×3500= 42000
  • खर्च आया=89240
  • घाटा हुआ एक हेक्टेयर में 47240 रुपए कुल 4 हेक्टेयर मूंगफली बिजाई कर रखी है
  • टोटल घाटा हुआ 188960 रुपए
  • अगर यह मूंगफली समर्थन मूल्य पर भी सरकार खरीदती है (जो अभी तक शुरू नहीं हुई है)
  • तो भी किसान को घाटा होगा समर्थन मूल्य और बाजार भाव में 950 रूपए का फर्क है जो एक हेक्टेयर पर 11400 रुपए का फर्क पड़ेगा और 4 हेक्टेयर पर 45600 रूपए का।

(नोट- गोदारा का प्रति हेक्टेयर लागत और मुनाफा खुद उनका आंकलन है)

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