सब्जियों में शिमला मिर्च खाने में स्वाद बढ़ा देता है। ये अपने आकार और स्वाद की वजह से अन्य मिर्चों से अलग होता है। इसमें मुख्य रूप से विटामिन ‘ए’ तथा ‘सी’ की मात्रा अधिक होती है। इसलिए इसको सब्जी के रुप मे उपयोग किया जाता है। यदि किसान इसकी खेती उन्नत व वैज्ञानिक तरीके से करे तो अधिक उत्पादन एवं आय प्राप्त कर सकता है शिमला मिर्च उचित अंकुरण क्षमता रोगाणुओं से मुक्त स्वस्थ बीज को पैदा करने के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान रखना आवश्यक है।
शिमला मिर्च की उन्नत किस्में कैलिर्फोनिया वण्डर, येलो वण्डर, किंग आफ नार्थ, स्वीट बनाना, बुलनोज, अर्का मोहिनी, अर्का गौरव, रूबी किंग आदि तथा पैपरीका की के.टी.पी.एल.-19 प्रचलित है।
पहाड़ी क्षेत्रों में इसे गर्मियों के मौसम में तथा मैदानी भागों में गर्मी और बरसात में उगाते हैं। इसके पौधे कम गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह विकसित होते हैं। फसल पकाते समय शुष्क जलवायु उपयुक्त रहती है। बीज के अंकुरण के लिए 16-29 डिग्री सेल्सियस पौधे की अच्छी बढ़त के लिए 21-27 डिग्री सेल्सियस व फलों के उचित विकास और परिपक्वता के लिए तापमान 320 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होना चाहिए।
उत्तम बीज तैयार करने के लिए हर वर्ष भूमि को बदलना चाहिए अगर ऐसा सम्भव न हो सके तो यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि चयन की हुई भूमि में पहले सोलेनेसी वर्ग की सब्जी जैसे टमाटर, बैंगन या उसका बीज उत्पादन न किया गया हो। साथ ही साथ भूमि में खरपतवार कम हों और सिंचाई व पानी के निस्काशन की उचित व्यवस्था हो और आस-पास के क्षेत्र में कोई दूसरी किस्म की मिर्च का उत्पादन न किया जा रहा हो।
खेत जहां तक सम्भव हो सके वर्गाकार होना चाहिए क्योंकि यांत्रिक मिश्रण की सम्भावना खेत की बाहरी पंक्ति में ज्यादा होती है। आयताकार खेत की अपेक्षा वर्गाकार खेत से शुद्धता एवं ज्यादा बीज प्राप्त होता है।
उत्तरी भारत में फसल को पाले से बचाने के लिये बसन्त ऋतु की फसल की बुआई फरवरी से मार्च तथा खरीफ फसल की बुआई जून-जुलाई में की जाती है। शिमला मिर्च का बीजोत्पादन भारत में समशीतोष्ण क्षेत्रों में होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी बुआई का उपयुक्त समय मार्च से अप्रेल है।
नर्सरी की बुआई के लिये प्रति हैक्टेयर 600 ग्राम शिमला मिर्च का बीच पर्याप्त होता है। एक हेक्टेयर में पौधा रोपण करने हेतु 10-12 नर्सरी की क्यारियां बनाए। इनमें 5 से 6 सेंटीमीटर की दूरी में लाइन से जो 0.5 सेमी गहरी हो उसमें बीज को बोना है।
बीज को एग्रोसिन, थाइरम, कैप्टान आदि किसी एक से 2 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचार कर ही बोना चाहिये।