लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। ऊसर भूमि वाले किसानों के लिए खुशखबरी है। अगर उनके खेत ऊसर यानि लवणता वाले हैं तो वहां भी वो अपनी मनचाही फसल ऊगा सकेंगे। यूपी के कई जिलों में ऊसर भूमि में आजमाई हुई कृषि वैज्ञानिकों की खोज जैविक दवा (जैव-फॉर्मूलेशन) जल्द पूरे देश में किसानों को उपलब्ध होगी। मिट्टी के ऊपयोगी जीवाणुवओं से भरी हुई 100 मिलीलीटर की एक शीशी एक एकड़ जमीन के लिए काफी होती है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थिति आईसीएआर के संस्थान केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान (Central Soil Salinity Research Institute) के क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने कुछ साल पहले लवण सहिष्णु पौध वृद्धक जीवाणुओं की खोज की थी। इस जैव फॉर्मूलेशन को 2015-16 से यूपी के कई ऊसर मिट्टी वाले जिलों में इस्तेमाल किया जा रहा था, जिसके सुखद परिणाण सामने आए थे। इन वैज्ञानिकों का दावा है कि इस जैव फॉर्मूलेशन के उपयोग से ऊसर जमीन में धान-गेहूं के साथ ही सब्जियों की फसलों भी लहलहलाने लगी हैं। जिसके बाद इस जैव फॉर्मूलेशन हॉलो मिक्स (Halo Mix) को ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचाने के लिए आईसीएआर ने इसके व्यवसायिक उत्पादन के लिए हैदराबाद की एक कंपनी को तकनीकी ट्रांसफर की है।
केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र के (ICAR-CSSRI, RRS Lucknow) प्रधान वैज्ञानिक और लवण सहिष्णु जीवाणु (salt tolerant bacteria)आधारित जैव फॉर्मूलेशन (हॉलो मिक्स) की खोज करने वाली वैज्ञानिक की टीम के सदस्य डॉ.संजय अरोड़ा से गांव कनेक्शन से बात की।
डॉ. अरोड़ा सरल शब्दों में ऊसर के नुकसान और हॉलो मिक्स के फायदे बताते हैं। “भारत लवणगस्त भूमि (ऊसर) बड़ी समस्या है। ऐसी जमीन में जो फसलें बोई जाती हैं, लवण उनकी जड़ों के आसपास जमा हो जाते हैं, जिससे पौधों को पानी और दूसरे पोषक तत्व नहीं मिल पाते। और पौधे सूख जाते हैं। हॉलो मिक्स में ऐसे जीवाणु हैं जो इस नमक को जड़ों के पास नहीं आने देते और पौधे को पोषण भी देते हैं। जिससे फसल अच्छी पैदा होती है।”
केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान ICAR-CSSRI, RRS-Lucknow) के आंकड़ों के मुताबिक भारत में लगभग 67 लाख हेक्टेयर भूमि लवणग्रस्त है। यूपी, बिहार, गुजरात, पश्चिम बंगाल समेत दक्षिण भारत के कई राज्यों के लिए ये बड़ी समस्या है। यहां तक की अकेले उत्तर प्रदेश में लगभग 13.7 लाख हेक्टेयर भूमि ऊसर है।
ऊसर या बंजर ऐसी भूमि होती है, जिसमें लवणों की अधिकता हो, (खासकर सोडियम लवणों की अधिकता हो)। ऐसी भूमि में कुछ नहीं अथवा बहुत कम उत्पादन होता है।
ऊसर भूमि को सामान्तया खनिज जिप्सम के साथ जैविक संशोधन के उपयोग से सुधारा जाता है। लेकिन एक तो सभी किसानों को ये जिप्सम मिल नहीं पाता, दूसरे धरती में खनिज जिप्सम की उपल्बधता भी कम हो रही है। लगातार एक जैसी फसल (मोनो क्रॉप) लेने और रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से मिट्टी की सेहत लगातार गिर रही है, इससे न सिर्फ ज्यादा इनपुट (खाद-बीज, उर्वरक) लग रहे हैं बल्कि उत्पादन अपेक्षाकृत कम होता है।
पिछले कई वर्षों से तरल जैव-फॉर्मूलेशन का यूपी समेत कई राज्यों हो रहा था प्रयोग
डॉ. संजय अरोडा के मुताबिक उनका संस्थान पिछले कई वर्षों से जिप्सम के विकल्प पर काम कर रहा था, जिससे किसानों की भूमि को फसल लेने योग्य बनाया जा सके।
डॉ. अरोड़ा के मुताबिक “तरल जैव-फॉर्मूलेशन ‘हॅलो-मिक्स’ में लवण सहिष्णु जीवाणुओं की काफी संख्या होती है, जो कि वातावरण में उपस्थित नाइट्रोजन को एकत्र कर पौध वृद्धि करते हैं। साथ ही इस तरल जैव-फॉर्मूलेशन में फास्फोरस और जिंक घुलनशीलता में वृद्धि करने वाले लवण सहिष्णु जीवाणु हैं।”
उन्होंने आगे बताया, “बीते 6 वर्षो में लखनऊ, रायबरेली, उन्नाव, सीतापुर, हरदोई, सुल्तानपुर, कौशांबी, प्रतापगढ़, आगरा और इटावा के किसानों ने दोनों मौसमों (रबी एवं खरीफ) में लगभग 1400 एकड़ ऊसर भूमि में चावल, गेहूँ, सरसों, बैंगन, फूलगोभी, मटर, टमाटर एवं गन्ना की फसल में प्रयोग कर लाभ प्राप्त किया एवं गुजरात और पश्चिम बंगाल की लवण युक्त भूमि में भी इसके सकारात्मक परिणाम मिले हैं।”
लवण सहिष्णु जीवाणु की 100 मिलीलीटर की एक शीशी (Halo Mix) एक एकड़ जमीन के लिए पर्याप्त होता है। डॉ. अरोड़ा के मुताबिक किसान भाई इसे एक एकड़ के बीज को शोधित करने अथवा 40 किलो गोबर में मिलाकर भूमि शोधन के लिए खेत में छिड़काव कर सकते हैं। इस जैव कल्चर के वैक्टीरिया अपने आप मल्टीप्लाई करते (बढ़ते जाते हैं) और भूमि को फसल योग्य बनाते हैं।
अभी तक हॉलो मिक्स का उत्पादन लखनऊ स्थित केंद्रीय मृदा लवणता संस्थान में वैज्ञानिक किसानों के लिए कर रहे थे लेकिन अब इसका व्यवसायिक उत्पादन शुरु होगा ताकि हर राज्य के किसानों तक पहुंच सके।
हैदराबाद की कंपनी को ट्रांसफर की गई तकनीकी
26 अगस्त को एक वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग कार्यक्रम के जरिए इस जैव-फॉर्मूलेशन तकनीक को एग्रीइनोवेट इंडिया, नई दिल्ली के माध्यम से मैसर्स श्री बायो ऐस्थेटिक्स प्रा लिमिटेड, हैदराबाद, को वाणिज्यिक पैमाने पर उत्पादन और विपणन के लिए लाइसेंस भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा दिया गया है।
इस उत्पाद के निर्माण की पूरी विधि और तकनीनी (प्रौद्योगिकी) केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के अन्तर्गत क्षेत्रीय अनुसंधान ने मैसर्स श्री बायो ऐस्थेटिक्स प्रा लिमिटेड को हस्तांतरित की है।
समारोह में केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल (हरियाणा) के निदेशक डॉ. प्रबोध चन्द्र शर्मा की मौजूदगी, में बायो फॉर्मूलेशन halo mix तकनीकी विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ. संजय अरोड़ा एवं डॉ यशपाल सिंह ने ये तकनीकी हैंडओवर की।
डॉ. अरोडा बताते हैं, “हमारा संस्थान पिछले कई वर्षों से न्यूनतम दरों पर किसानों के लिए ये हॉलो मिक्स बनाता रहा है। लेकिन संस्थान के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव नहीं। आईसीआर और दूसरे संस्थान ऐसे ही तकनीकी खोज और विकसित तक किसानों के ऊपयोग के लिए ट्रांफसर करते हैं। इस दौरान हमने एमओयू में ये शर्त रखी है कि हैलो मिक्स की कीमत कंपनी भी न्यूनतम रखेगी। ताकि किसान आसानी से खरीद सकें।” उनके मुताबिक ये उत्पाद किसान लखनऊ स्थित संस्थान से भी प्राप्त कर सकते हैं।
वैज्ञानिक और शोध संस्थान (ICAR और CSIR भी) तकनीकी विकसित और उसके सफल उपयोग के बाद व्यवासिक उपयोग के लिए तकनीकी ट्रांसफर करते हैं।
यह तरल फॉर्मूलेशन उपयोग करता के लिए मैत्रीपूर्ण (नुकसानदायक नहीं है) और प्रक्षेत्र पदाधिकारियों, शोधकर्ताओं, संबंधित विभागीय अधिकारियों के साथ उन किसानों के लिए भी उपयोगी है जो ऊसर मृदा को जैविक तरीके से सुधार कर उससे अधिक फसल उत्पादन लेकर अपनी आय में वृद्धि के साथ ही वातावरण को शुद्ध रखने में अपना योगदान दे सकते है। इस कंसोर्टिया माइक्रोबियल फार्मूलेशन का व्यवसायीकरण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के द्वारा अनुमोदित है।
ऊसर में पैदावार ही नहीं, उत्पादन भी बढ़ाता है हॉलो मिक्स- वैज्ञानिक
लवण सहिष्णु सूक्ष्म जीव द्वारा ऊसर मृदा सुधार कर अधिक उपज ली जा सकती है। खोजकर्ता वैज्ञानिकों के मुताबिक ऊसर भूमि में जहां अन्य प्रजाति के जीवाणु की खाद (बोया खाद) कम असरदार रहती है, वहीं लवण सहिष्णु जीवाणु बहुत लाभदायक होते है। यह मृदा स्वस्थ बनाये रखने के साथ कृषि में रसायन के उपयोग में कटौती करते हैं। इन लवण सहिष्णु जीवाणु के तरल जैव-फॉर्मूलेशन के प्रयोग से लवण प्रभावित मृदा में कम लागत से फसल उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ कम लागत से जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है।
केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के बयान के मुताबिक ये जैव उत्पाद मृदा में उपस्थित अघुलनशील सूक्ष्म पोषक तत्व जस्ते (ज़िंक) को घुलनशील कर पौधे को उपलब्ध कराते हैं। इन जीवाणु से फसलों की पैदावार में वृद्धि होती है। ऊसर भूमि में धान, गेहूं, चारा, सब्जी की फसलों एवं तिलहन फसलों आदि के लिए इस जैव-फॉर्मूलेशन के प्रयोग करने से 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 10 से 15 किलोग्राम बफास्फोरस एवं 2-4 किलोग्राम ज़िंक प्रति हेक्टेयर की बचत हो जाती हैं।
संस्थान ने अपने बयान में कहा है कि हालो मिक्स तरल जैव-फॉर्मूलेशन लवण सहिष्णु जीवाणुओं के कंसोर्टिया के प्रयोग से धान एवं गेहूं की फसलों में औसतन 11.5 एवं 14.03 प्रतिशत तक की वृद्धि पायी गयी। साथ ही ऊसर मृदा के पी.एच. मान में 9.7 से 8.9 तक की कमी देखी गयी। जिससे किसानों की आमदनी में बढ़ी है।
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