रांची (झारखंड़)। किसान परंपरागत फसलों के साथ फसलचक्र अपनाकर औषधीय एवं सगंध पौधों की खेती करके लाभ कमा सकते हैं। औषधीय पौधे लगाने से किसानों को मुनाफे के साथ-साथ भूमि कि उर्वरता शक्ति भी बढ़ेगी।
केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप), लखनऊ एवं झारखंड राज्य आजीविका प्रमोशन सोसाइटी, ग्रामीण विकास विभाग, झारखंड राज्य सरकार के बीच हुये समझौते के अंतर्गत एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ आज दिनांक 25 सितम्बर 2018 को किया गया।तीन दिन चलने वाले इस कार्यक्रम का उद्घाटन सीमैप मुख्य वैज्ञानिक डॉ. आलोक कालरा द्वारा किया गया। कार्यक्रम में उपस्थित 23 प्रतिभागियों में झारखंड राज्य आजीविका प्रमोशन सोसाइटी के कर्मचारी एवं किसान थे जिनमें महिलाएं भी शामिल थीं।
डॉ. आलोक कालरा ने कहा कि औषधीय एवं सगंध फसलों की खेती के साथ-साथ उनके प्रसंस्करण एवं भंडारण की जानकारी भी जरूरी है। इससे किसानों के उत्पादन को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता प्राप्त हो सकेगी और उन्हें उसका अधिक लाभ एवं उचित मूल्य मिल सकेगा।
डॉ. कालरा ने एरोमा मिशन की गतिविधियों के बारे में भी प्रतिभागियों को बताया। उन्होंने कहा कि परंपरागत फसलों के फसल चक्र मे औषधीय एवं सगंध पौधों की खेती का समावेश कर लाभ कमाया जा सकता है जिससे भूमि की उर्वरता भी बनी रहती है।
कार्यक्रम के दूसरे दिन कालमेघ, तुलसी, सतावर एवं सर्पगंधा के उत्पादन की उन्नत कृषि क्रियाओं पर जानकारी दी जायेगी एवं प्रतिभागियों को उन्नतशील कृषकों के प्रक्षेत्रों का भ्रमण भी कराया जाएगा। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम सत्र में औषधीय एवं सगंध पौधों की नर्सरी की विधियों का प्रदर्शन किया जाएगा और सुगंधित तेलों एवं औषधीय पौधों का विपणन विषय पर परिचर्चा की जाएगी।
इस अवसर पर डॉ. आलोक कालरा, डॉ. संजय कुमार, डॉ. आर के लाल, डॉ. आर के श्रीवास्तव, डॉ. एच पी सिंह, डॉ. राम सुरेश शर्मा, डॉ. राम स्वरूप वर्मा, डॉ. राजेश कुमार वर्मा व श्री राम प्रवेश यादव आदि उपस्थित रहे।