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खस के जरिए कम लागत में किसानों को ज्यादा मुनाफा दिलाने की कोशिश

खस की खेती

लखनऊ। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में खस वह फसल है जिसमें कम लागत और ज्यादा मुनाफा मिलता है। खस की खेती उन इलाकों में भी हो सकती है जहां पानी कि किल्लत है और वहां भी जहां बाढ़ आती है। इसीलिए पूरे देश में एरोमा मिशन के तहत इसकी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।

खस के पौधे झाड़ियों की तरह होते हैं, इसकी जड़ों से निकाला गया तेल काफी महंगा बिकता है। भारत समेत पूरी दुनिया इसकी मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। गुजरात में भुज और कच्छ से लेकर, तमिलनाडु, बिहार और उत्तर प्रदेश तक में इसकी खेती बड़े पैमाने पर हो रही है।

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उत्तर प्रदेश के सीतापुर के रहने वाले किसान हर्ष चंद्र वर्मा खस की खेती कर न सिर्फ हर साल लाखों रुपए कमाते हैं बल्कि उनकी खेती को देखने के लिए दूर-दूर से किसान आते हैं। हर्षचंद का कहना है, “ख़स की खेती करते हुए हमने यह देखा कि इसमें न तो किसी जानवरों का खतरा होता है और न मौसम का फर्क पड़ता है। सीमैप के वैज्ञानिकों ने मेरे खेत पर आकर इसकी अच्छी खेती सिखाई और नई किस्में दीं। अब मैं इसका तेल और नर्सरी भी बेचता हूं।’

क्यारियां बनाकर ख़स की करते हैं रोपाई

खेत की जुताई कर क्यारियां बनाकर ख़स की रोपाई कर देते हैं। फिर खेत में पानी भर देते हैं। एक तरफ पानी भरता रहता है। और दूसरी तरफ रस्सी के सहारे डेढ़ फिट पर पौधौं की बुवाई होती रहती है। थोड़े दिनों में हम खेत की गुड़ाई कर देते हैं।

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इसके बाद जरूरत पड़ने पर सिंचाई और खाद डाली जाती है। सितंबर में बरसात के समय सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती है। बरसात के बाद जब ख़स बिलकुल हरा-भरा हो जाता है तो नवंबर के अंत में इसकी कटाई पूरी कर ली जाती है।

दुनिया में प्रति वर्ष करीब 250-300 टन तेल की मांग

खस की जड़ों की रोपाई मई से अगस्त महीनें तक चलती है। करीब दो मीटर तक उंचाई वाले खस की पीली-भूरी जड़े जमीन में 2 फुट गहराई तक जाती हैं। करीब 15 -18 महीने में इनकी जड़ों को खोदकर कर उनकी पेराई की जाती है। एक एकड़ ख़स की खेती से करीब 6 से 8 किलो तेल मिल जाता है यानि हेक्टेयर में 15-25 किलो तक तेल मिल सकता है। भारत सरकार एरोमा मिशन के तहत पूरे भारत में खस की खेत को बढ़ावा दे रहा है।

जैसे-जैसे दुनिया शुद्ध और प्राकृतिक उत्पादों की मांग बढ़ी है, खस के तेल की कीमतों में न सिर्फ वृद्धि हुई है बल्कि खेती का दायरा भी बढ़ा है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक दुनिया में प्रति वर्ष करीब 250-300 टन तेल की मांग है,जबकि भारत में महज 20-25 टन का उत्पादन हो रहा है, जिसका सीधा मतलब है कि आगे बहुत संभावनाएं हैं। सीमैप ने खस यानि वेटिवर की उन्नत किस्मों की खोजकर किसानों की राहत और आसामन कर दी है।

एक एकड़ में करीब 6 से 8 किलो तेल मिल जाता है

खेत से कटाई के बाद कटी हुई ख़स की जड़ों को एक पक्के टैंक में 24 घंटे तक भिगोते हैं। जड़े भीग जाने के बाद इसमें लगी मिट्टी धुल जाती है। 24 घंटे बाद जड़ को हम टंकी में भर देते हैं और टंकी का ढक्कन ऊपर से बंद कर देते हैं।

इसके बाद दो से तीन दिन तक ( 60 घंटे तक) आग की आंच में रखी टंकी के अंदर रखे ख़स से तेल निकाला जाता है और एक एकड़ ख़स की खेती से करीब 6 से 8 किलो तेल मिल जाता है। ख़स की मार्केट कन्नौज, लखनऊ और कानपुर में है। इसे हम इन जिलों में बेचते हैं।ख़स की खेती से एक एकड़ में एक साल के भीतर एक से डेढ़ लाख रुपए तक बचा लेते हैं।

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