भोपाल/लखनऊ। मध्य प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में एक जून से 10 जून तक किसानों का गांव बंद शुरु हो चुका है। एक तरफ जहां देश के किसान संगठन इन 10 दिनों में गाँवों से खाने-पीने की चीजों की आपूर्ति न करने पर अड़े हैं, वहीं सरकार ने इसे रोकने की कोशिशें भी तेज कर दी हैं। मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और महाराष्ट्र के कई हिस्सों किसानों ने शहर में अपनी सब्जियां, दूध बेचने के बजाए सड़क पर फेक दिया है और लोगों में बांट दिया।
गाँव बंद के दौरान एक जून से 10 जून तक किसान अपने उत्पादन, फल, सब्जी, दूध और अनाज समेत दूसरे उत्पाद शहर नहीं भजेंगे। राष्ट्रीय किसान महासंघ की अगुवाई में करीब 170 किसान संगठन इसमें भाग ले रहे हैं।
छह जून को मंदसौर कांड की बरसी है और चुनावी साल में मध्य प्रदेश में सियासत भी तेज हो गई है। संपूर्ण कर्ज़माफी, किसानों को लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य, फल और सब्जियों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने, 55 साल की उम्र से ज्यादा के किसानों को 7वें वेतन आयोग के मुताबिक पेंशन (करीब 18 हजार रुपए प्रति माह) देने की मांग को लेकर मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में किसान संगठनों के एक धड़े ने गाँव बंद का ऐलान किया है।
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— GaonConnection (@GaonConnection) June 1, 2018
कारोबारी किसान की अहमियत समझेंगे
मध्य प्रदेश में सक्रिय किसान संगठन आम किसान यूनियन के कोर सदस्य केदार सिरोही ने ‘गाँव कनेक्शन’ को फोन पर बताया, “इन 10 दिनों में न तो किसान गाँव से कुछ बाहर भेजेंगे, न ही बाजार से खुद खरीदेंगे। गाँव बंद स्वावलंबन को बढ़ावा देगा और गाँव का बाजार विकसित होगा। अभी तक बड़ी कंपनियां गाँव के अरबों रुपए के बाजार को तवज्जो नहीं देती हैं, लेकिन इस बंद से वो भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समझ जाएंगे। कारोबारी किसान की अहमियत समझेंगे।”
किसानों से भरवाए जा रहे बांड
करीब 55 हजार गाँव वाले मध्य प्रदेश में गाँव बंद को लेकर सियासत गर्माई हुई है। सरकार ने पुलिस कर्मियों की छुट्टियां रद्द कर दी हैं तो सैकड़ों किसानों से 20-20 हजार रुपए के बांड भरवाए गए हैं कि वो गाँव बंद के दौरान शामिल नहीं होंगे। इसके साथ ही पुलिस विभाग में हजारों लाठियां मंगवाने और दूध न देने पर ऐस्मा लगाने की बात भी सुर्खियों में है। किसान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं।
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केदार सिरोही कहते हैं,” सरकार किसानों को डराना चाहती है, लेकिन वो ये नहीं समझ रही कि जिनता डराओगे डर उतना ही खत्म हो जाएगा। सरकार चाहे लाठी खरीदे या तोप। दूसरी बात लोकतांत्रिक देश में किसान को इतना तो अधिकार है कि वो अपना सामान कहां बेचे, जब किसान शहर जाएंगे ही नहीं तो कार्रवाई किस पर होगी। सरकार ने पुलिस, कृषि और राजस्व विभाग, आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों तक को आंदोलन के खिलाफ लगा दिया है, लेकिन किसानों की आवाज अब थमेगी नहीं।”
किसानों की नाराजगी खतरे की घंटी
जून के तपते दिनों में मध्य प्रदेश में सियासी तूफान मचा है। ये लगातार दूसरा साल है जब यहां पर किसान आंदोलन कर रहे हैं। लगातार पांचवीं बार कृषि कर्मण्य पुरस्कार पाने वाले मध्य प्रदेश और मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के लिए किसानों की नाराजगी खतरे की घंटी है।
कृषि उत्पादन में कई रिकॉर्ड कायम किए
गेहूं उत्पादन के मामले में पंजाब-हरियाणा को पीछे छोड़ने वाले मध्य प्रदेश में कृषि उत्पादन में कई रिकॉर्ड कायम किए, गेहूं की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता पिछले कई वर्षो में लगातार बढ़ी है। 3115 किलोग्राम प्रति हेक्टयर उत्पादन पिछले वर्ष हुआ था। सिंचाई, सस्ता कर्ज़ और मंडियों की बेहतर व्यवस्था ने मध्य प्रदेश को चना, गेहूं, सोयाबीन, प्याज, लहसुन और दालों के उत्पादन ने प्रसिद्धि दिलाई।
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ज्यादा उत्पादन सरकार के लिए बना आफत
मगर इसी मध्य प्रदेश में प्याज से लेकर लहसुन तक सड़कों पर फेंका गया, टमाटर पशुओं को खिलाए गए, तो मंडी में अपनी उपज बेचने गया किसान तौल के इंतजार में दम तक तोड़ चुका है। कृषि जानकार मानते हैं कि मध्य प्रदेश की खेती का रुख दिग्जिवय सिंह के शासनकाल में रहते बदलने लगा था तो शिवराज की सरकार में परवान चढ़ा। लेकिन ज्यादा उत्पादन किसान के लिए नुकसान और सरकार के लिए आफत बन गया।
मध्य प्रदेश की नब्ज को पहचानने वाले वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र कुमार सिंह की बातों से इस भूचाल की दो वजहें नजर आती हैं। एक किसान को उनकी उपज का सही मूल्य न मिलना, दूसरी अपनी खोई सियासी जमीन वापस पाने में जुटी कांग्रेस की कवायद।
#Farmers will not send their #milk/#veg to the cities for 10 days i.e 1-10 June. Today we distributed #milk to the poor & the needy,but will not sell our produce in d cities for 10 days.
Hope @PMOIndia understands the pain of the #farmers & adress the issue of falling farm income pic.twitter.com/Crxpx9Jpbv— Ramandeep Singh Mann (@ramanmann1974) June 1, 2018
मालामाल हुए कारोबारी-व्यापारी
नरेंद्र कुमार सिंह, पहली वजह बताते हैं,”मध्य प्रदेश छोटी जोत की बहुलता वाले किसानों और आदिवासी लोगों का प्रदेश है। किसान कह रहे हैं सरकार ने जो बड़ी-बड़ी योजनाएं शुरू कीं, उनका फायदा बड़े व्यापारियों और कंपनियों को मिला। बीमा योजना से किसानों से ज्यादा कंपनियों को फायदा हुआ, भावांतर कारोबारी-व्यापारी मालामाल हुए।”
उन्होंने आगे कहा, “जिस दिन से भावांतर योजना लागू हुई, उसी दिन कई फसलों के दाम मंडियों में गिए गए। व्यापारियों पर अंकुश न होना शिवराज सरकार के लिए मुसीबत बन रहा है क्योंकि व्यापारी भाजपा का कट्टर समर्थक रहा है।”
‘कारोबारी उसी का फायदा उठा रहे हैं’
पिछले काफी समय से शिवराज सिंह चौहान भी किसानों के मुद्दों पर लगातार बात कर रहे हैं। एनके सिंह शिवराज के तीन-चार दिन पहले दिए बयान का आशय और उसका असर बताते हैं। वो कहते हैं, “शिवराज सिंह ने कहा कि मध्य प्रदेश में बाहर से (दूसरे राज्यों से) माल लाकर व्यापारी यहां खपा रहे हैं, जिससे प्रदेश के किसानों का हक मारा जा रहा है। अब ऐसे व्यापारियों पर कार्रवाई होगी। मध्य प्रदेश में एमएसपी के साथ बोनस और दूसरी योजनाओं का लाभ मिलता है, कारोबारी उसी का फायदा उठा रहे हैं।”
किसानों के आंदोलन के बीच कांग्रेस की सक्रियता का वो नजरिया कुछ ऐसे बताते हैं। “शिवराज के मतदाता हैं किसान, महिलाएं और शहरी गरीब.. ये तीनों कभी कांग्रेस के कोर मतदाता हुआ करते थे। इन्हीं के दम पर शिवराज लगातार जीतते आए हैं, कांग्रेस अब अपनी खोई सियासी जमीन वापस लाने में जुटी है। दिग्विजय सिंह की पदयात्रा और राहुल गांधी की मंदसौर में रैली उसी कवायद का हिस्सा है।”
दिग्विजय सिंह ने 31 मई से ओरछा स्थित राम राज मंदिर से अपनी एकता यात्रा की शुरुआत की है, इस यात्रा का मकसद कांग्रेस के कार्यकर्ता को जोड़ना बताया जा रहा है। जबकि मंदसौर कांड की बरसी पर राहुल गांधी रैली प्रस्तावित है।
मंदसौर कांड की बरसी
छह जून को ही मंदसौर कांड के बाद बनी किसान संघर्ष समन्वय समिति किसान स्मृति दिवस का आयोजन कर रही है। ये आयोजन पूरे देश में होगा। लेकिन शिवराज के लिए तत्कालिक मुसीबत किसानों के महासंगठन ‘राष्ट्रीय किसान संगठन के गाँव बंद है। गाँव बंद में शिवकुमार शर्मा (कक्का) और आम किसान यूनियन के केदार शंकर सिरोही समेत कई किसान नेता ताल ठोंक रहे हैं।
किसान संगठनों ने आंदोलन को प्रभावी बनाने के लिए जहां गाँव-गाँव चौपाल लगाई है, वहीं सोशल मीडिया का भी ज्यादा भरपूर इस्तेमाल किया।
सोशल मीडिया का हो रहा भरपूर इस्तेमाल
मध्य प्रदेश ही सक्रिय राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के जुड़े कृषि अर्थशास्त्री भगवान मीना बताते हैं, “व्हाट्सअप पर हम लोग कई महीनों से लगे हुए थे, इसका पूरा फायदा मिला है। इसके साथ कई युवा किसान फेसबुक और ट्वीटर के माध्यम से भी अपनी बात रख रहे हैं। साल 2017 के आंदोलन के मुकाबले इस बार 70 फीसदी ज्यादा सोशल मीडिया का इस्तेमाल हम लोग कर रहे हैं, और इसका अच्छा असर आंदोलन पर दिखेगा।”
आम किसान यूनियन ने सोशल मीडिया पर अपील कर किसानों को शांतिपूर्ण तरीके से विरोध जताने की अपील की है। साथ ही जरूरतमंद लोगों तक सब्जी और दूध पहुंचाने का भी भरोसा दिलाया है।
शहरी आए तो अपने भाव पर बेचेंगे किसान
मध्य प्रदेश ही सक्रिय राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के जुड़े कृषि अर्थशास्त्री भगवान मीना बताते हैं, “ये आंदोलन किसानों का है और इसका कोई सियासी लाभ न लेने पाए इसके लिए किसानों को प्रशिक्षित किया गया है। किसान न हंगामा करेंगे न धरना प्रदर्शन, न किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचांएगे, न दूध सब्जी को। पिछली बार कई जगह सब्जी और दूध फेंक दिया गया था, इस बार वो गाँव में रख दिया जाएगा। जो गांव के लोगों के साथ ही शहर के जरूरत मंद लोगों को दिया जाएगा।” किसान संगठनों ने तय किया है कि वो शहर को आपूर्ति नहीं करेंगे, लेकिन अगर शहर के लोग गाँव सामान खरीदने आते हैं तो उन्हें किसान अपने तय रेट पर बेच सकेंगे।
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